अपनी बात

एनडी ग्रोवर के सपनों को चकनाचूर करने में लगे डीएवी संस्थान से जुड़े लोग, अपने लक्ष्य से भटक रहे झारखण्ड के डीएवी स्कूल, जिम्मेवार कौन?

एक समय था, जब झारखण्ड में मिशनरियों की तू-ती बोलती थी, ऐसे तो इनकी तू-ती आज भी बोल रही हैं, पर इन्हें चुनौती अगर झारखण्ड में किसी ने दिया था, तो वे थे एनडी ग्रोवर। उन्होंने अपनी सूझ-बूझ से यहीं के उन लोगों को अपने साथ किया, जो वैदिक संस्कृति पर आधारित विद्या को जन-जन तक पहुंचाने का सपने संजोए हुए थे।

लीजिये उसका प्रभाव भी पड़ा, देखते ही देखते रांची समेत झारखण्ड के कई हिस्सों में डीएवी स्कूल धरा-धर खुलने लगे, और इन्हीं स्कूलों में झारखण्ड के उन अभिभावकों व माता-पिताओं का विश्वास भी बढ़ा और वे अपने बच्चों को इन स्कूलों में भेजना शुरु किया। इन अभिभावकों व माता-पिताओं का इन डीएवी स्कूलों में भेजने का मकसद यही था कि बच्चें शिक्षा के क्षेत्र में अग्रणी हो ही, साथ ही संस्कार युक्त हो।

अपने परिवार व देश के प्रति भी उनकी क्या भूमिका होनी चाहिए, इसका निर्धारण वे स्वयं करें, कुछ वर्षों तक तो डीएवी स्कूलों में ये सब कुछ देखने को मिला, पर पता नहीं कब इन स्कूलों में भी अन्य स्कूलों की भांति कुंसस्कारों ने अपना घर बसाना शुरु किया और ये कुसंस्कार की झांकी अखबारों की सुर्खियां बनने लगी।

आश्चर्य है कि अखबारों में बनी ये सुर्खियां रांची से लेकर दिल्ली तक बैठे डीएवी के कर्णधारों तक तो गुजरी, पर इन कुसंस्कारों पर कैसे लगाम लगे? इस पर ध्यान किसी का नहीं गया। नतीजा, आज बहुत सारे अभिभावक और माता-पिता यह सोचने पर मजबूर हो गये कि अन्य स्कूलों की भांति जब डीएवी में भी कुसंस्कार पनपने लगे तो हम अपने बच्चों को यहां क्यों भेजें?

आप पूछेंगे कि डीएवी में कुसंस्कार के होने के प्रमाण क्या है? तो इसका सीधा प्रमाण रांची के अरगोड़ा थाना का वह प्राथमिकी हैं, जिसमें डीएवी कपिलदेव स्कूल के प्राचार्य पर यौन शोषण के आरोप लगे हैं। उस प्राथमिकी में पीड़िता ने आरोप लगाया है कि डीएवी कपिलदेव का प्रिंसिपल उस पर जबर्दस्ती यौन संबंध बनाने का दबाव बना रहा था, उसके पास अश्लील विडियो भेजता था। हालांकि डीएवी स्कूल के इस प्रिंसिपल को निलंबित कर दिया गया, उसे जमानत भी मिल गई, पर जो डीएवी जैसी संस्था पर जो दाग लगा, उस दाग से क्या मुक्ति कभी मिल पायेगी? ये तो डीएवी को चलानेवाले महानुभाव ही इसका जवाब दें तो बेहतर होगा।

आज की ही खूंटी से खबर है कि मैट्रिक की प्री टेस्ट में कम नंबर आने से हताश छात्रा ने फांसी लगा ली, जिससे उसकी मौत हो गई। डीएवी स्कूल की छात्रा मोहनाटोली में रहती थी और पिता भी इसी स्कूल के टीचर है। सवाल उठता है कि एक 16 वर्षीया छात्रा का इस प्रकार का निर्णय करना और मौत को गले लगाना क्या बताता है?

डीएवी हालांकि कह सकता है कि इसमें उसका क्या दोष? पर क्या डीएवी यह झूठला सकता है कि वो छात्रा उसके स्कूल की नहीं थी, आखिर इतना बड़ा कदम वो कैसे उठा ली, क्या डीएवी के शिक्षकों व प्राचार्यों व कमेटी मेम्बरों को इस पर चिन्तन नहीं करना चाहिए, क्या ये संस्कार में नहीं आता? इसका मतलब है कि डीएवी स्कूल भी अन्य विद्यालयों की तरह काम निबटाने, धन जुटाने व बच्चों को भाग्य भरोसे छोड़ने में अपनी कला का निर्वहण करने में लगा हैं और जब डीएवी में भी ऐसी ही परंपरा का जन्म हो चुका हैं तो फिर लोग डीएवी में अपने बच्चों को क्यों दें?

सूत्र बता रहे है कि खूंटी के ही कई विद्यालयों में बच्चों को वैसी शिक्षा दी जा रही हैं, जो मिशनरी स्कूलों में अनिवार्य हैं, ऐसे में जब मिशनरी टाइप शिक्षा डीएवी में भी प्रचलित हो तो लोग अपने बच्चे डीएवी में क्यों दें? ऐसे में इन दिनो डीएवी से जुड़े एक वरीय अधिकारी के नाम खुला पत्र खुब वायरल हैं, आप स्वयं पढ़े, क्या लिखा है इसमें…

श्री पुनम सुरी जी,

सादर नमस्ते

डी.ए.वी विद्यालयों की स्थापना महर्षि दयानन्द सरस्वती के द्वारा स्थापित एवं प्रचारित वैदिक सिद्धांतों के संरक्षण के लिए स्मारक के रूप में किया गया था। यह स्मारक स्वामी जी के कार्यों को स्मरण कराता है। इस कार्य के लिए अनेकों आर्य कार्यकर्ताओं ने तन मन एवं धन लगाया था जो आज वटवृक्ष बन गया है। वटवृक्ष पर जिस तरह गिद्ध एवं चील कभी कभी डेरा डाल देते है। वर्तमान में डी.ए.वी संस्थान में अनेकों गिद्ध एवं चील भर गए हैं।

आप भी इन पंचसितारा शराबी, कबाबी और लेन देन, बलात्कारियों, भ्रष्टाचार लंबी सी फेरहिस्त लोगों की, महात्मा ग्रोवर के परलोक वासी होने के बाद बाढ़ सी आ गयी है। जो संस्था ईसाई कोंनवेंट, सैकड़ों स्कुलों ईसाई संस्थाओं के समकक्ष लंबी लकीर जो महात्मा ने 200 के लगभग स्कूल खड़े किये, वही महर्षि दयानन्द सरस्वती जी के कीर्ति को धूमिल करने में लगे है।

आज के डी.ए.वी के प्राचार्य स्वामी श्रद्धानन्द, महात्मा हंसराज, महात्मा नारायण दास ग्रोवर इनके नाम तो जानते हैं लेकिन इनके द्वारा किये गए काम नहीं जानते, महर्षि दयानन्द सरस्वती जी जो योग साधना में समाधि अवस्था को प्राप्त कर लिये थे उनके तपस्या को नष्ट करने में लगे हैं। स्वामी जी ने जो आर्य समाज के दस नियम दिये हैं, उन पर चलने से सारे संसार में शांति आ सकती है, लेकिन डी.ए.वी संस्थान के प्राचार्य एवं अधिकारी इसका पालन नहीं करते। क्या यह विडम्बना नहीं है? डीएवी के प्राचार्य एवं अधिकारी सत्य सुनना नहीं चाहते अपितु वो जो कह दे वही सत्य है यह प्रचलित है।

डी.ए. वी की कार्यशैली इसके लिए जिम्मेदार है। जो सत्यनिष्ठ एवं समर्पित है उनको कोई नहीं सुनता। आर्य समाज के कार्यक्रमों एवं गतिविधियों से दूर का रिश्ता है, इसके कारण चारित्रिक पतन हो रहा है। पूर्वजों ने जो तपस्या की है उसे नष्ट करना सबसे बड़ा पाप है। बिहार एवं झारखण्ड में डीएवी का फैलाव अनेकों कार्यकर्ताओं के त्याग एवं तप से हुआ है।

अब आर्य समाज के लोगों को नहीं पूछा जाता है। यहाँ पर कभी आर्य समाज एवं डीएवी साथ साथ दिखाई देते थे। डीएवी के प्राचार्यों की छवि आजकल धूमिल हो गई है। चारित्रिक पतन संस्थान को नष्ट करता है, इसलिए सभी प्राचार्यों का स्थानांतरण हर पांच साल में अवश्य करना चाहिए। आप के पूर्वजों की कीर्ति आर्य जगत में फैली है इसे आप भी धूमिल न होने दें। संस्थान के लोग पहले आर्य समाज को माता का सम्मान देते थे। लेकिन अब केवल आय का माध्यम समझते हैं जो उचित नहीं है। डीएवी का आर्य समाज से समन्वय स्थापित किया जाना चाहिए।