शायद माननीयों को इंतजार हैं इस खबर की “पत्रकारों की भीड़ ने माननीयों को रौंदा, कई माननीय घायल”
झारखण्ड विधानसभा के पंचम विधानसभा का प्रथम सत्र आज से प्रारम्भ हो गया। नव-निर्वाचित सदस्यों को आज पद एवं गोपणीयता की शपथ दिलाई गई। कल तक जो सदन में सत्ता पक्ष में बैठते थे, आज वो विपक्ष में थे। कल जो शिखर पर थे, जनता ने उन्हें सदन जाने का अधिकार ही छीन लिया। जो विपक्ष में थे, उनके हाथों में सत्ता थी, चेहरे पर खुशियां साफ झलक रही थी, और जो भगवा बंडी पहनकर फूदकते थे, आज उन्होंने भगवा बंडी ही बदल लिया था, क्या करे बेचारे से मंत्री पद जो छिन गया था।
चूंकि आज पंचम विधानसभा का प्रथम सत्र का पहला दिन था, बड़ी संख्या में राष्ट्रीय, क्षेत्रीय, लोकल चैनल, ठीक इसी स्तर के अखबार, कुकुरमुत्ते की तरह उगे पोर्टल (जिनकी कोई ओर-छोर नहीं) विधानसभा की पोर्टिकों को बदरंग कर रहे थे। पता नहीं इस ओर विधानसभा का ध्यान जायेगा भी या नहीं, कि ऐसे तथाकथित पत्रकारों के भय से विधानसभा भी सदन के पोर्टिकों को बदरंग होती दिखती रहेगी।
हालत ऐसी थी कि जैसे ही कोई नवनिर्वाचित सदस्य पोर्टिकों तक पहुंचता, तथाकथित कैमरामैन, तथाकथित पत्रकार, तथाकथित मोबाइलधारी पत्रकारों का झूंड, उन पर लूझ जाता, स्थिति ऐसी थी कि कब कौन विधायक जमीन पर गिर जायेगा और तथाकथित पत्रकारों के चरणों से पवित्र हो जाता, कहना मुश्किल था। ये मजमा जो सुबह दस बजे से प्रारंभ हुआ, वह जब तक सदन की घंटी बजनी खत्म नहीं हुई, तब तक चलता रहा।
आश्चर्य इस बात की भी है कि सदन को चलाने की जिन पर जिम्मेवारी अब तक रही हैं, इस दृश्य को मनोहारि बनाने तथा सदन की पोर्टिकों की बदरंग होती छवि को सुधारने पर किसी ने ध्यान ही नहीं दिया, और जैसे-जैसे समय बीतता गया, हनुमान और अंगद की पूंछ की तरह तथाकथित पत्रकारों की संख्या बढ़ने लगी, जबकि सच्चाई यह है कि इनमें से कई, को पत्रकारिता की एबीसीडी भी मालूम नहीं, पर अखबारों, चैनलों व पोर्टलों में आने की ललक ने विधानसभा की मर्यादा को छिन्न-भिन्न करने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
सच्चाई यह है कि मैंने कई स्थानों पर विधानसभा की रिपोर्टिंग की हैं, तथा देखी है, प्रत्येक जगह एक खास स्थल होता है, जहां ये पत्रकार मौजूद होते हैं और वहीं से वे इन माननीयों को विजूयल लेने का प्रयास करते हैं, उस स्थल पर मार्क भी दिया होता है, अगर वे उस मार्क से बाहर आते हैं, तो उन पर कार्रवाई भी होती है, इसलिए कोई उस मार्क का उल्लंघन नहीं करता, मर्यादा में रहते है।
अगर किसी पत्रकार को किसी नेता की बाइट लेनी होती हैं तो वह मार्शल के माध्यम से उस नेता तक अपनी बात पर्ची से पहुंचाता है, माननीय अपनी आवश्यकतानुसार उक्त पत्रकार को बाइट दे देते हैं, पर उसी स्थल पर जहां पत्रकारों के लिए स्थान सुरक्षित की गई है, यह नहीं कि कोई भी पत्रकार हाथ हिलाया-डूलाया और नेताजी के साथ बातचीत शुरु कर दी।
पर झारखण्ड विधानसभा को तो जैसे यहां के पत्रकारों ने दलान बना दिया हैं, जो जिसे मन कर रहा हैं, उस मनमर्जी को अंजाम दे रहा हैं, हालांकि झारखण्ड विधानसभा के मार्शल इन पत्रकारों से अच्छा सलूक करते हैं, जिसके कारण स्थिति अभी तक संभली हुई है, पर जिस प्रकार की स्थितियां दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही हैं। देखियेगा, मार्शल और तथाकथित पत्रकारों में भिड़न्त न हो जाये, या कोई माननीय कही बूम या कैमरे से घायल न हो जाये या तथाकथित पत्रकारों द्वारा विजूयल लेने के क्रम में कोई माननीय, तथाकथित पत्रकारों की भीड़ के नीचे न आ जाये।
क्योंकि ये जो भीड़ हैं न, उसका एक अपना ही संस्कृति और विचारधारा होता है, इसलिए भीड़तंत्र पर जितना जल्द अंकुश लगे, झारखण्ड के नये विधानसभाध्यक्ष को इस पर विचार करना चाहिए, नहीं तो आनेवाले समय में अखबारों के प्रथम पृष्ठ पर ये समाचार पढ़ने के लिए तथा चैनलों पर ब्रेकिंग न्यूज देखने के लिए अभी से तैयार हो जाइये, “पत्रकारों की भीड़ ने माननीयों को रौंदा, कई माननीय घायल”।
जोहार..