प्रधानमंत्री/रेलमंत्री जी, गरीब बेरोजगारों के साथ क्रूर मजाक मत करिये
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी और रेलमंत्री पीयूष गोयल जैसा भारत में महान व्यक्ति आज तक न कोई पैदा हुआ हैं और न कभी होगा, तभी तो इनके शासन काल में रेलवे में निकाले गये असिस्टेंट लोको पायलट और टेक्निशयन की वैंकेसी में शामिल होने के लिए भारत के विभिन्न राज्यों के बेरोजगार युवकों के शरीर से तेल निकल जा रहे हैं।
पहले तो इस बहाली के लिए, इन्होंने सभी से पांच-पांच सौ रुपये मांगे, जब बेरोजगार युवकों ने इसके खिलाफ बड़ा आंदोलन किया, तब इन्होंने पांच-पांच सौ रुपये की जगह एक सौ-एक सौ रुपये फार्म के साथ जमा करने को कहा और जिन्होंने पांच सौ रुपये जमा कर दिये थे, उन्हें चार-चार सौ रुपये लौटाने का वायदा किया, सच्चाई यह भी है कि जिन बेरोजगार युवकों ने पांच-पांच सौ रुपये देकर फार्म भरा था, उनके चार-चार सौ रुपये आज तक रेलवे विभाग ने नहीं लौटाये हैं।
देश में बेरोजगारी की स्थिति इतनी भयावह है, रेलवे में 26,502 पदों की बहाली के लिए करीब 47 लाख छात्रों ने फार्म भरे, अब चूकि परीक्षा की तिथि नजदीक हैं और पूरे अगस्त माह में परीक्षा ली जायेगी, जब अभ्यर्थियों ने अपने-अपने एडमिट कार्ड लोर्ड करने शुरु किये, तो उन्हें ये देखकर-जानकर हाथ-पांव फूल गये, उनके इक्जामिनेशन सेंटर उनके घर से करीब 1000 से 1500 किलोमीटर दूर रख दिये गये।
इन अभ्यर्थियों का कहना है कि केन्द्र सरकार ने पहले तो फार्म भरने में तेल निकाल दिया और अब परीक्षा में शामिल होने के लिए तेल निकाल रही हैं। आखिर केन्द्र सरकार, हमारे प्रधानमंत्री, हमारे रेलमंत्री, ये क्यों नहीं समझ रहे, हम गरीब घर के लड़के, जिनके पास खाने को नहीं, पहनने को नहीं, रहने को नहीं, जिनके मां-बाप जैसे-तैसे पालकर उन्हें बड़ा किया, आज भी तंगहाल जीवन जीते हैं, जैसे-तैसे फार्म भरने का पैसा दिया, और अब हैदराबाद, चेन्नई, बेंगलूरु जाने का खर्चा कैसे जुटायेंगे? क्या भारत सरकार और उसका रेल मंत्रालय पचास से सौ किलोमीटर की दूरी पर परीक्षा आयोजित कराने में असमर्थ हैं?
बिहार के कई अभ्यर्थियों का समूह परीक्षा का सेंटर देखकर-सुनकर हैरान हैं, बिहार के कई अभ्यर्थियों में किसी को बैंगलोर, किसी को हैदराबाद, किसी को चेन्नई, किसी को भुवनेश्वर, किसी को मोहाली, किसी को इंदौर, और पता नहीं कहां-कहां भेज दिया गया हैं। ये अभ्यर्थी परेशान हैं कि आखिर वे वहां जाये तो कैसे जाये? क्योंकि वहां जाने और वहां से आने तथा वहां ठहरने में इन अभ्यर्थियों के पसीने छूट जाने तय हैं, कई अभ्यर्थी तो कर्ज लेकर जाने को तैयार हैं, पर कई का कहना है कि उतनी दूरी तय करना, उनके लिए संभव नहीं हैं, क्योंकि उनके पास इतना पैसा हैं नहीं और न वे अपने माता-पिता पर इतना दबाव डालेंगे।
कुछ अभ्यर्थियों का कहना है कि रेल मंत्रालय ने जान-बूझकर ऐसा कदम उठाया है ताकि अभ्यर्थी परीक्षा देने जा ही नही पाये और वे अपने मकसद में काम आ जाये, कई अभ्यर्थियों ने रेलमंत्री व पीएम मोदी को ट्वीट कर अपना आक्रोश जताया है, किसी ने यह भी कह दिया कि केन्द्र ने उनकी बेरोजगारी के साथ क्रूर मजाक किया है, तथा किसी ने यह भी कहा कि पहले तो पांच सौ रुपये लिए और चार सौ रुपये लौटाने का वायदा किया, जो लौटाया भी नहीं और अब हजार से डेढ़ हजार किलोमीटर के बीच की दूरी तय कराना, वहां रहने-ठहरने की व्यवस्था कराने पर मजबूर करना, ये तो हम गरीब बेरोजगारों के खून चुसने के बराबर हैं।
सूत्र बताते है कि ये हाल केवल बिहार के ही अभ्यर्थियों का नहीं, बल्कि अन्य राज्यों का भी है, चूंकि बिहार के छात्रों/अभ्यर्थियों का समूह अपने अधिकारों के प्रति सजग होता है, इसलिए वह खुलकर अपने कष्ट का इजहार कर रहा हैं। जिन अभिभावकों को इस बात की जानकारी मिल रही हैं, वे भी बड़े दुखी हैं, उनका कहना है कि बार-बार, रेल में चाय बेचने की दुहाई देनेवाला प्रधानमंत्री, जब गरीबों के बच्चों के साथ इस प्रकार का क्रूर मजाक करता हैं, तो उसकी बातों पर संदेह स्वतः उभर जाता हैं, अब हम गरीब के बच्चे कहां से इतने पैसे लायेंगे और उतनी दूर बच्चों को परीक्षा देने के लिए भेजेंगे? क्योंकि बात केवल रेल का किराया का ही नहीं हैं, वहां रहने-ठहरने की भी व्यवस्था भी करनी होगी, क्योंकि रेल कितनी समय पर चलती है, वो तो सबको पता हैं, कुल मिलाकर हमारे प्रधानमंत्री और रेल मंत्री ने हम गरीबों के छाती पर मूंग दल दिये हैं।
आश्चर्य इस बात की है, इस ऑनलाइन इक्जामिनेशन के युग में अभ्यर्थियों को हजार से डेढ़ हजार किलोमीटर की दूरी तय करवाई जा रही हैं, एक तरह से देखा जाय, कि इस परीक्षा में केवल सम्मिलित होने में अभ्यर्थियों को न्यूनतम तीन हजार लगभग रुपये खर्च हो जायेंगे, क्या ये परीक्षाएं उनके गृह क्षेत्रों/शहरों में नहीं लिये जा सकते थे, अभ्यर्थी और उनके अभिभावक सोच-सोच कर परेशान हैं, रेलवे में एक तो वहां तक पहुंचने और वहां से आने के लिए रिजर्वेशन नहीं मिल रहे, अगर वे जैसे-तैसे लटकर कर पहुंच भी गये तो क्या वे परीक्षा देने की स्थिति में होंगे, ये चिंता की बात हैं, जो सबको सोचनी चाहिए, अगर आप नहीं सोचेंगे तो कल आपके बच्चों के साथ भी परेशानी आयेगी, ये समझ लीजिये।
क्या बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, इन मुद्दों को पीएम या रेलमंत्री के समक्ष उठाएंगे कि बिहार के गरीब बच्चे इतने दूर परीक्षा देने कैसे जायेंगे? या केन्द्र सरकार या राज्य सरकार ऐसी व्यवस्था करें, जिसमें बिहार या अन्य राज्यों के ये गरीब बच्चे, उतनी दूर जाकर, आराम से परीक्षा दे सकें, अगर ऐसा नहीं कर सकते तो कम से कम गरीब और गरीबी का मजाक न उड़ाएं, क्योंकि 2019 आने में कोई ज्यादा दिन दूर नहीं।
बोलों अन्ध भक्तो,,जय श्री राम