अपनी बात

किसी से हंसकर मिले पीएम मोदी तो किसी को दिखा दी अपनी भृकुटि और किसी को यह ऐहसास भी करा दिया कि अब उनकी यहां दाल नहीं गलनेवाली, संभल जाये …

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के पास सभी की जन्मकुंडली रहती है। वे विदेश ही नहीं, बल्कि देश के सभी प्रमुख नेताओं की जन्मकुंडली और उनका भविष्य जानते हैं। वे उनकी जन्मकुंडलियों को पढ़कर ही उनसे निबटने व अपने लिये आगे का रास्ता बेहतर कैसे हो, इस पर काम करना शुरु करते हैं। वे भाजपा के अंदर बैठे कालनेमियों की कुंडली भी अपने पास रखते हैं, जो भाजपा के अंदर रहकर भाजपा की ही जड़ खोदने में लगे रहते हैं।

शायद झारखण्ड के भाजपाइयों को लगता है कि उनके नेताओं की उनकी गतिविधियों के बारे में पता नहीं, पर मोदी तो मोदी है, कभी-कभी वे अपने चेहरे पर भाव लगाकर इसे जता भी देते हैं, जो समझनेवाले हैं, वे चेत जाते हैं और जो नहीं समझते हैं, वे अपनी जड़ स्वयं खोद लेते हैं। ऐसे भी फिलहाल नरेन्द्र मोदी की कुंडली देखी जाये तो उन्हें भला अभी कौन चुनौती दे सकता है, एक ने तो चुनौती दी थी, बेचारा अपना मानसिक संतुलन ही खो बैठा, मतलब समझ ही गये होंगे। अपने ही राज्य के पड़ोसी राज्य के मुख्यमंत्री है।

अब हम बात करेंगे, अपने राज्य झारखण्ड की। कल प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी झारखण्ड में थे। उनकी अगवानी सबसे पहले झारखण्ड के राज्यपाल सी पी राधाकृष्णन् ने की। बेचारे राज्यपाल भी नरेन्द्र मोदी जी की कृपा से ही बने हैं। राज्यपाल ने बड़ी ही विनम्रता दिखाई। प्रधानमंत्री को हंसकर बूके दी, लेकिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के चेहरे पर कही भी हंसी या मुस्कुराहट नहीं दिखाई दी। उनके चेहरे का भाव तटस्थ था। मतलब न तो हम आपके कार्यों व क्रियाकलापों से ज्यादा न खुश है और न दुखी।

उसके बाद बारी थी। राज्य के मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन की। हेमन्त सोरेन झारखण्ड मुक्ति मोर्चा के नेता है। वे प्रोटोकॉल के तहत प्रधानमंत्री का स्वागत करने के लिए एयरपोर्ट पर पहुंच चुके थे। उन्होंने बड़ी ही विनम्रता व चेहरे पर प्रसन्नता लाते हुए प्रधानमंत्री की अगवानी की। लेकिन प्रधानमंत्री का चेहरा यहां तमतमाया हुआ था। आप स्वयं फोटो देखें। लगता है कि वे मुख्यमंत्री को पसन्द नहीं कर रहे थे। उन्होंने बूके लेने के क्रम में अपने एक हाथ से मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन द्वारा प्रणाम करते हुए दोनों हाथों को पकड़ भी रखा था। शायद वो यह कह रहे हो कि आप कितना भी अभिवादन करो, हम माफ करनेवाले नहीं।

इसी प्रकार भाजपा की सहयोगी आजसू प्रमुख सुदेश महतो भी कुछ ज्यादा ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से मिलने के क्रम में अपने चेहरे पर प्रसन्नता के भाव दिखा रहे थे, पर सच्चाई क्या था, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के चेहरे पर वैसा भाव नहीं था, जिसको देखकर कहा जाये कि वे सुदेश महतो से मिलकर ज्यादा खुश हो। पीएम मोदी के चेहरे पर मुस्कुराहट के तनिक भी भाव नहीं दिखे।

यही हाल अर्जुन मुंडा जैसे नेताओं का भी था। अर्जुन मुंडा जो नरेन्द्र मोदी कैबिनेट में मंत्री है। जनजातीय मंत्री है। उनका अच्छा टाइम भी उसमें पास हो रहा है। खुद प्रधानमंत्री जनजातीय गौरव दिवस कार्यक्रम में शामिल होने के लिए झारखण्ड में हैं, पर अर्जुन मुंडा से मिलकर वे खुश नहीं दिखे। फोटो तो यही कह रहा हैं।

जबकि इसके उलट भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी से मिलते वक्त प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के चेहरे का भाव कुछ और ही था। दोनों यानी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और बाबूलाल मरांडी दोनों के चेहरे पर मुस्कुराहट थी। शायद दोनों ये कह रहे हो कि झारखण्ड में ऑल इज वेल है। यह फोटो भी झारखण्ड में चर्चा का विषय बना हुआ है। राजनीतिक पंडितों की मानें, तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, बाबूलाल मरांडी से आश्वस्त है कि उनकी राजनीतिक अनुभवों का लाभ झाऱखण्ड में भाजपा को मिलेगा।

इधर राजनीतिक पंडितों की मानें तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का झारखण्ड आगमन, जनजातीय गौरव दिवस मनाना या बिरसा मुंडा को श्रद्धांजलि देने के बहाने भाजपा की राजनीतिक पकड़ का अंदाजा लगाना है कि भाजपा की स्थिति वस्तुतः यहां क्या है? यही कारण है कि प्रदेश के नेताओं ने यहां की मीडिया से हर-हर मोदी कहलवाने व मोदीमय हो जाने पर ज्यादा ध्यान दिया, जमकर उन्हें अपनी ओर से विज्ञापन देकर गोद भराई का रस्म एक तरह से पूरा किया है।

रोड शो के बहाने मोदी को रिझाने व बताने की कोशिश भी की है कि यहां 14 में से 12 सीटें भाजपा को मिलना तय है। लेकिन सच्चाई क्या है? ऐसा कुछ भी नहीं कि भाजपा को 14 में से 12 मिल जाये, कभी फील गुड ने यही झारखण्ड भाजपा को 14 में से एक पर भी धकेल दिया था। शायद भाजपाई उस समय को भूल गये हैं। आज भी स्थिति वैसी ही है।

उन्हें नहीं पता कि कोई भी मीडिया हाउस अब माहौल नहीं बना सकता। याद करिये 2019 के विधानसभा चुनाव में तो यहां की मीडिया फिर से रघुवर दास को मुख्यमंत्री बना चुकी थी, पर हुआ क्या? अंततः सारे मीडिया हाउस एक तरफ और विद्रोही24 एक तरफ, आये तो हेमन्त सोरेन ही। आप भले ही हेमन्त सोरेन को जो भी कह लें, लेकिन हेमन्त सोरेन की दृढ़-इच्छाशक्ति को भेद पाना उतना भी आसां नहीं।