राजनीति

घोर आश्चर्य : ग्रामीणों ने कहा पुलिस हटाओ, सरकार वहां पुलिस कैंप ही बना दी

7 जुलाई को संपूर्ण विपक्षी दलों का प्रतिनिधिमंडल पत्थलगड़ी वाले इलाके में था, गांवों में सन्नाटा पसरा था, गिन के मात्र आठ या दस लोग होंगे, जो भी थे, लाचार थे, वे घर से निकल नहीं सकते थे, गांव में एक भी युवा नहीं दिख रहा था, पुलिस के जवानों की संख्या ग्रामीणों से भी अधिक थी, विपक्ष का प्रतिनिधिमंडल बात करें भी तो किससे? अंत में जो भी वृद्ध या रोगी मिले, उनसे बात करने की कोशिश की, सभी का यहीं कहना था कि पुलिस को यहां से हटाइये, क्योंकि अभी खेती का महीना है, अगर खेती नहीं करेंगे तो अनाज कहां से उपजायेंगे और जब अनाज नहीं होगा तो खायेंगे क्या और बच्चों को खिलायेंगे क्या?

ऐसे भी सरकार की कोई योजना उनके पास नहीं पहुंचती, इसलिए कुछ कर सकते हैं तो पुलिस को वहां से हटाइये, शायद यहीं कारण रहा कि जब विपक्षी दलों का प्रतिनिधिमंडल खूंटी के सर्किट हाउस पहुंचा, तब प्रतिनिधिमंडल में शामिल सभी नेताओं ने एक स्वर से खूंटी के उपायुक्त और एसएसपी को कहा कि यहां से पुलिस को हटाइये और राज्य सरकार की जो भी योजनाएं हैं, उसका लाभ ग्रामीणों को मिले, ये सुनिश्चित कराइये, पर ग्रामीणों की सुनता कौन है, उधर विपक्षी दल के प्रतिनिधिमंडलों की टीमों के सदस्य रांची तथा अपने-अपने इलाकों के लिए प्रस्थान किये और उसके ठीक दूसरे दिन कोचांग, कुरुंगा और शारदा में पुलिस कैंप का उद्घाटन हो गया।

यानी जो ग्रामीण सोच रहे थे, कि बड़े-बड़े नेता आये, बाबू लाल मरांडी, सुबोधकांत सहाय, सुप्रियो भट्टाचार्य, थियोडोर किड़ो और कई अन्य गण्यमान्य नेता पहुंचे, सामाजिक संस्थाओं से जुड़े लोग आये, कुछ समस्याओं का हल निकलेगा, पर यहां हल क्या? यहां तो पुलिस कैंप ही बन गया, ऐसे में उनके बच्चे गांव में कैसे आयेंगे? खेती कैसे होगी? जीवन-यापन कैसे होगा? यहीं सवाल उन्हें जीने नहीं दे रहा। पत्थलगड़ी जो उनकी परम्परा रही है, वहीं पत्थलगड़ी उनके लिए जीवन पर संकट ला दी है, सरकार के मुलाजिम और पुलिस वर्ग पत्थलगड़ी में लगे लोगों को चुन-चुन कर पकड़ेंगे, केस करेंगे, उन्हें जेल भेजेंगे और उनका रहा-सहा गांव श्मशान बन जायेगा।