बेचारे प्रदीप यादव, आज भाजपा में होते तो न उनके पीछे पुलिस होती और न ही वे कोई चुनाव हारते, निश्चय ही आराम से वे बम-बम कर रहे होते
बेचारे प्रदीप यादव, आज भाजपा में होते तो न उनके पीछे पुलिस होती और न ही वे कोई चुनाव हारते, निश्चय ही आराम से वे बम–बम कर रहे होते, सरकार उनकी जय-जयकार कर रही होती, उन्हे बचाने के लिए पूरा सिस्टम उनके आगे-पीछे लगा देती, उनके पीछे अगर कोई केस भी लगा होता तो उन केसों को हटाने के लिए जोर लगा दी होती।
जैसे कभी मुख्यमंत्री रघुवर दास के अतिप्रिय बाघमारा के दबंग भाजपा विधायक ढुलू महतो का सारा केस उठाने के लिए राज्य के मुखिया रघुवर दास ने जोर लगा दिया था, तथा आज भी ढुलू के खिलाफ किसी भी पुलिस पदाधिकारी की हिम्मत नहीं कि एक प्राथमिकी दर्ज कर लें, क्योंकि ढुलू के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करना, उसकी अपनी नौकरी के लिए आफत को निमंत्रण देना है।
जरा देखिये न झाविमो के नेता प्रदीप यादव को, बेचारे की क्या हाल हो गई है, वे यौन उत्पीड़न मामले में उनसे ढाई घंटे तक पुलिस ने पूछताछ की है, जबकि जो आरोप प्रदीप यादव पर लगे हैं, ठीक वैसा ही आरोप बाघमारा के दबंग विधायक ढुलू महतो पर भी भाजपा के ही धनबाद की जिला मंत्री कमला कुमारी ने लगाया है, कमला ने तो इसके लिए धनबाद से रांची तक आंदोलन भी खड़ा किया, वह विधानसभा के अध्यक्ष से भी मिली।
वह कतरास थाना पर आत्मदाह तक की कोशिश की, महिला आयोग तक का दरवाजा खटखटाया, वह राज्य के सभी विधायकों तक अपनी बात पहुंचाई, पर सच्चाई यहीं है कि आज तक कतरास पुलिस ने उसकी प्राथमिकी तक दर्ज नहीं की, और जब प्राथमिकी ही दर्ज नहीं हुई तो भला बाघमारा के दबंग विधायक ढुलू महतो पर कार्रवाई क्या होगी?
कमाल है, इसी मामले पर भाजपा के वरीय अधिकारियों ने ढुलू को कारण बताओ नोटिस भी जारी किया था, क्या हुआ उसका? आज भी कमला कुमारी को न्याय नहीं मिला और मुख्यमंत्री रघुवर दास का कृपा पात्र ढुलू महतो आज भी बम-बम है, कोई उसका बाल बांका नहीं कर सकता, पर प्रदीप यादव का हाल देखिये, उधर उन्हीं की पार्टी की एक नेत्री ने यौन-शोषण का आरोप लगाया और बेचारे तबाह हो गये, झाविमो ने उन्हें अपनी पार्टी के महत्वपूर्ण पद से हटा दिया, पुलिस अपने सामने उन्हें ढाई घंटे तक बिठाकर पुछताछ कर रही है, और उन्हें इस घटना से फिलहाल इतनी जल्दी रिहाई मिलते नहीं दिख रही, जबकि इसी मामले में ढुलू महतो के खिलाफ कुछ नहीं हो रहा।
इसे कहते हैं सत्ता का सनक, इसे कहते सत्ता का गुरुर, कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता, अगर साक्षात रघुवर दास के रुप में भगवान जब किसी विधायक के साथ है, और उस व्यक्ति को बहुत कुछ बिगड़ सकता है, जिस पर राज्य के भगवान स्वरुप रघुवर दास की कृपा नहीं है, तभी तो बेचारे प्रदीप यादव की हालत पस्त और ढुलू की बल्ले-बल्ले है।
प्रदीप यादव और ढुलू महतो दोनों के उपर एक ही मामला और दोनों दो तरह से जी रहे हैं, एक पर पुलिस का दबाव और दूसरे पर पुलिस की कृपा, यानी साफ बता रहा है कि इस राज्य में पुलिस किस प्रकार काम कर रही हैं, कालांतराल में अगर सत्ता बदल गई तो याद रहे भाजपा वालों को भी यह कहने में दस बार सोचना होगा कि राज्य में सत्ता बदलने के बाद पुलिस उनकी नहीं सुन रही, क्योंकि फिलहाल पुलिस किसकी सुन रही हैं, वो पूरा झारखण्ड देख व सुन रहा है।
राजनैतिक पंडित कहते है कि जिन पर कानून का भार है, कानून के संरक्षण का भार है, उन्हें किसी भी प्रकार से सत्ता के दबाव में नहीं आना चाहिए, अपना काम करना चाहिए ताकि लोगो को पुलिस पर भरोसा हो, कम से कम पुलिस काम करती या नहीं करती, कम से कम प्राथमिकी भी दर्ज कर लेती तो लोगों को लगता कि राज्य में कानून का शासन है, पर ऐसी स्थिति में यहां कानून का शासन कहना पूर्णतः गलत है।
राजनैतिक पंडित कहते है कि प्रदीप यादव और ढुलू महतो के प्रकरण पर पुलिस का गैरजिम्मेदाराना व्यवहार बताता है कि पुलिस हर मामले में दोहरे मापदंड अपनाती हैं, यानी विपक्ष के जनप्रतिनिधियों को तो गर्दन दबाने में तनिक संकोच नहीं करती, लेकिन अपने लोगों के लिए तो वह रस बरसाने में कोई कसर नहीं छोड़ती, प्रदीप यादव और ढुलू महतो का प्रकरण झारखण्डवासियों के सामने सब कुछ कह दे रहा है।