अपनी बात

प्रभात खबर, भाजपा व रांची प्रेस क्लब के सुरेन्द्र सोरेन ने मिलाया एक दूसरे से हाथ, हेमन्त सरकार को जनता की नजरों में नीचा दिखाने के लिए शुरु किया एक सूत्री अभियान

प्रभात खबर ने आज फिर फ्रंट पेज और पृष्ठ संख्या छः को अपने संपादकों के हित में इस्तेमाल किया है। जमकर इन पृष्ठों को अपने हित में रंग दिया है। जिन-जिन राजनीतिज्ञों ने उसके हित में बयान जारी किये हैं। उसे खुब स्थान दिया है। उसे लगता है कि ऐसा करने से हेमन्त सरकार की छवि खराब होगी और भय खाकर राज्य की हेमन्त सरकार प्रभात खबर के आगे झूककर समझौता करने अथवा उसके हक में काम करने को मजबूर होगी।

प्रभात खबर के इस सोच को भाजपा के लोगों ने भी प्रश्रय दिया है। उनके राज्यस्तरीय शीर्षस्थ नेता व छुटभैये नेताओं ने प्रभात खबर के पक्ष में जमकर बयान देना शुरु कर दिया है। इधर रांची प्रेस क्लब के सुरेन्द्र सोरेन ने भी प्रभात खबर को महान अखबार समझकर उसके हित में बयान देकर राज्य सरकार और उनकी पुलिस को भला-बुरा कहने से नहीं चूक रहे।

आश्चर्य इस बात की है कि प्रभात खबर के अनुसार उसके संपादकों पर हुई प्राथमिकी को लेकर रांची के पत्रकारों व बुद्धिजीवियों में अलग-अलग राय हैं। कई पत्रकारों व बुद्धिजीवियों का मानना है कि अखबार ने खरखाई में इस मुद्दे को तूल देकर स्वयं के लिए सहानुभूति बटोरने की कोशिश की, लेकिन उसकी यह नीति धरी की धरी रह गई। खुद रांची में ही कई अखबार छपते हैं, जिसमें सैकड़ों की संख्या में पत्रकारों का समूह काम करता हैं। लेकिन अभी तक प्रभात खबर के संपादकों के पक्ष में किसी भी प्रमुख अखबारों (प्रभात खबर को छोड़कर) के संपादकों व पत्रकारों ने अपना बयान जारी नहीं किया है और न ही सरकार या पुलिस के कार्यों की आलोचना की है।

हालांकि प्रभात खबर अभी भी दम लगा रहा है कि लोग और यहां के पत्रकारों का समूह उसकी मदद करें, उसके लिए सड़कों पर उतरें। लेकिन ऐसा होता दिख नहीं रहा और न दिखने की संभावना बन रही हैं। ले-देकर जो भी आंदोलन हो रहा या दिख रहा हैं, वो प्रभात खबर के पन्नों में सिमट कर रह गया है। एक पत्रकार ने तो विद्रोही24 से कहा कि जिस धमकी की बात प्रभात खबर कह रहा है। आखिर उस पूरी धमकी को अक्षरशः प्रभात खबर क्यों नहीं छाप रहा। आखिर उसे दिक्कत क्या है? लोग भी तो समझें कि धमकी देनेवाले ने क्या कहा?

राजनीतिक पंडितों की माने तो वे साफ कहते है कि भाजपा को क्या? उसे तो सरकार के खिलाफ बोलने का मौका मिलना चाहिए। वो बोलेगी ही। इस बार यह मौका प्रभात खबर ने दिलवाया है। इसलिए उसके सभी नेता बयान देने से चूक नहीं रहे। लेकिन समझने के लिए तो भाजपा के अंदर भी बहुत सारे नेता हैं, जो इस मैटर को बहुत अच्छी तरह समझ रहे हैं। लेकिन उन्हें राजनीति तो करनी है।

उधर रांची प्रेस क्लब के सुरेन्द्र सोरेन खुब जमकर बयान दिये जा रहे हैं और प्रभात खबर उस बयान को प्रमुखता से छाप रहा है, क्योंकि डूबते को तिनके का सहारा में उसे रांची प्रेस क्लब का एक ही आदमी दिख रहा हैं, जो सुरेन्द्र सोरेन है। यह व्यक्ति अपने बयान के माध्यम से जो मन कर रहा है, बोले जा रहा है। हालांकि सच्चाई यह भी है कि खुद रांची प्रेस क्लब में ही ऐसे सदस्यों की संख्या अधिक हैं, जो इस पचड़े में नहीं पड़ना चाहता और न प्रभात खबर के इस प्रसंग में उक्त अखबार के साथ खड़ा हैं।

एक पत्रकार ने तो विद्रोही24 से यह भी कह दिया कि प्रभात खबर की ऐसी लाचारगी उसने कभी देखी नहीं। वो मदद की चाह में खड़ा हैं, लेकिन उसकी मदद में कोई आ नहीं रहा, जबकि एक जमाना ऐसा भी था कि प्रभात खबर के एक लेख पर सरकार, राजभवन और सचिवालय तक हिल जाया करते थे, पर बेचारा आज खुद हिला हुआ है। सुनने में आया है कि इन संपादकों ने जमानत भी ले लिया हैं।