प्रभात खबर ने ऐसे व्यक्ति को राज्यपाल और स्पीकर के हाथों झारखण्ड गौरव सम्मान दिलवा दिया, जो उसके योग्य है ही नहीं, संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों को ऐसे कार्यक्रमों से बचना चाहिए
आप स्वयं गुगुल में जाये और देखें 14 सितम्बर 2017 को जागरण अपने पोर्टल पर लिख रहा है कि शहर में खुला रोटी बैंक गरीबों को मिलेगी मुफ्त रोटी। वाईएमसीए कांटा टोली, कचहरी चौक स्थित लायंस क्लब के ऑफिस, कांके पेट्रोल पम्प पर अब रोजाना गरीब रोटी हासिल कर सकते हैं। योजना की शुरुआत शहर के युवा व्यवसायियों ने किया है। इसमें मुक्ति संस्थान, लायंस क्लब, यसमैन क्लब के सदस्यों की भूमिका अहम है।
4 मई 2019 को टेलीग्राफ ऑनलाइन ने लिखा कि सामाजिक संगठन अमन यूथ सोसाइटी ने रविवार को हिंदपीढ़ी के मुजाहिद नगर में सामुदायिक हॉल में एक रोटी बैंक शुरु करने और एक फ्रिज स्थापित करके और एक फ्रिज स्थापित करके नेक काम किया है।
ऐसे हम आपको बता दें कि झारखण्ड में कई ऐसे जिले हैं, जहां रोटी बैंक चलाकर युवा गरीबों को मुफ्त भोजन उपलब्ध करा रहे हैं और अब बात करते हैं, रांची के प्रभात खबर वाले रोटी बैंक और विजय पाठक की। रांची की रोटी बैंक कभी पं. रामदेव पांडेय चलाया करते थे। पं. रामदेव पांडेय को जैसे ही पता चला, उन्होंने विद्रोही24 को बताया कि प्रभात खबर में छपी खबर शत प्रतिशत झूठ है।
उन्होंने बताया कि पहली बात तो रोटी बैंक की परिकल्पना और उसकी स्थापना किसने सबसे पहले शुरु की, इस पर कई लोग अपना दावा प्रस्तुत करते हैं। पर जिस रोटी बैंक की यहां बात हो रही है, उसको शुरुआत उन्होंने समाज के विभिन्न वर्गों से मिली सहायता के आधार पर शुरु की थी। कई वर्षों तक चलाया। जिसका प्रमाण भी उनके पास हैं। उस वक्त की अखबार ने कई बार इस संबंध में समाचार भी प्रकाशित किया था। उसका प्रमाण उन्होंने विद्रोही24 से शेयर भी किया। जिसे आप यहां देख सकते हैं।
पं. रामदेव पांडेय ये भी कहते है कि जब कोरोना हुआ, तो वे भी कोरोना से प्रभावित हुए, तथा कोरोना के दूसरे काल में ऐसी परिस्थिति उनके पास आ गई, कि वे एक तरह से टूट गये। इधर विजय पाठक को लगा कि पं. रामदेव पांडेय को इस रोटी बैंक से अच्छी आमदनी हो रही हैं, तो उसने इस रोटी बैंक को लपक लिया और फिर इसने लगभग ढाई साल पहले अपने हाथों में ले लिया।
इसलिए प्रभात खबर का ये कहना कि रोटी बैंक की स्थापना विजय पाठक ने की। सरासर झूठ के सिवा कुछ है ही नहीं। वे आगे यह भी कहते है कि प्रभात खबर ने ये भी लिखा कि विजय पाठक इस काम के लिए पूरा खर्च खुद उठाते हैं। यह भी कोरा बकवास है। कई ऐसे लोग हैं, जो उन्हें मदद पहुंचाते हैं, तब ये रोटी बैंक चलता है। ऐसे भी विजय पाठक के पास कोई अलादीन का चिराग नहीं, कि वे रोटी बैंक जैसी संस्थाएं अकेले चला लें। ये बिना सभी के सहयोग के संभव ही नहीं।
इधर जब विद्रोही24 ने पता लगाया तो पता चला कि स्वयं प्रभात खबर के इस कार्यक्रम में जो लोग उपस्थित थे, उनमें से कई लोगों ने विद्रोही24 को बताया कि वे खुद रोटी बैंक को कई बार मदद पहुंचाये हैं, ऐसे में प्रभात खबर ने कैसे इस व्यक्ति को झारखण्ड गौरव सम्मान पुरस्कार के लिए चुन लिया। यह भी आश्चर्य है। मतलब साफ है कि झारखण्ड गौरव सम्मान एक तरह से प्रभात खबर ने रेवड़ी की तरह बांटने में विश्वास किया और उसे राज्यपाल सी पी राधाकृष्णन और विधानसभाध्यक्ष रबीन्द्र नाथ महतो के हाथों बंटवा दिया।
सवाल उठता है कि इस प्रकार के कार्यक्रमों व आयोजनों से किसे फायदा होता है? इस प्रकार के पुरस्कार से क्या सचमुच पुरस्कार पानेवाले महान सिद्ध होते हैं या देनेवाले और लेनेवाले की मंशा का पता लग जाता है। आश्चर्य है कि प्रभात खबर ने अपने आज के दसवे पेज पर लिखा है कि राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन ने कहा कि प्रभात खबर ने निष्पक्ष पत्रकारिता की मिसाल दी है।
हां भाई, निष्पक्षता का ही तो कमाल है, कि रोटी बैंक की स्थापना किसने की और यहां उसके नाम पर किसी और को पुरस्कृत कर दिया जाता है। यहां तक की उसे महिमामंडित करने के चक्कर में ये भी कह दिया जाता है कि वो व्यक्ति अपने पैसे से रोटी बैंक चला रहा हैं। इससे बड़ी निष्पक्षता का उदाहरण और क्या हो सकता है? धन्य है प्रभात खबर जो ऐसे कार्यक्रम आयोजित करता है और धन्य है महामहिम राज्यपाल, जो ऐसे कार्यक्रम में जाकर बिना सत्यता जांचे किसी भी अखबार को पीठ थपथपाकर चले जाते हैं।