अपनी बात

प्रभात खबर संयम बरते, सरकार जांच कराए, पत्रकार संगठन हाय-तौबा न करें, राजनीतिक दल बयानवीर न बनें, नहीं तो तीनों बताएं कि सामान्य पत्रकारों पर जब-जब गाज गिरी, इन्होंने क्या किया?

सर्वप्रथम प्रभात खबर के प्रधान संपादक और उसके स्थानीय संपादक को जेल से जिस भी प्रकार की धमकी मिली हो, उसे कोई भी सभ्य व्यक्ति सही नहीं ठहरा सकता। यह अपने आप में ही आश्चर्यचकित कर देनेवाली घटना है। निश्चय ही इस घटना से सरकार की छवि को धक्का लगा है, इस छवि से उबरने का सही उपाय यही है कि इसकी जांच सही ढंग से कराई जाये और दोषियों को दंड दी जाये। ऐसे हम नहीं भी कहेंगे तो इसकी सरकार जांच करायेगी ही, क्योंकि घटना बड़े लोगों के साथ घटी है। छोटे पत्रकारों के साथ यह घटना घटती तो इस पर किसी का अब तक ध्यान भी नहीं जाता और न प्रभात खबर इस प्रकार से खबरें छापता, जैसा कि उसने अपने लिये आज छापा है।

आश्चर्य यह है कि जिस दिन घटना घटती है। उसके दूसरे दिन यानी 30 दिसम्बर को प्रभात खबर प्रथम पृष्ठ पर एक कॉलम में खबरें बनाकर देता है और घटना के दो दिन बीत जाने के बाद अपने अखबार का प्रथम पृष्ठ और पृष्ठ संख्या चार खुद को समर्पित कर देता है। भाई, आपका अखबार, आपकी कलम, आपका पेज, आपकी स्याही आप जो करें, आपके पाठक तो आपकी मर्जी से चलते हैं। जो पढ़ायेंगे और वे पढ़ जायेंगे। आप तो गलती भी करेंगे, तो आपकी गलती क्षम्य है और दूसरे गलती करेंगे तो आपके पास उसके लिए क्षमा थोड़े ही हैं, आप तो जब तक उसे उलटा न लटका दें, आप चैन से नहीं बैठेंगे। लेकिन यही बात छोटे पत्रकारों या सामान्य पत्रकारों की होगी तो आप चुप्पी साध जायेंगे।

चुप तो वे भी हो जायेंगे, जिनका बयान आपने अपने अखबार में छाप रखा है। चाहे वे पत्रकार संगठनों से जुड़े नेता हो या वे राजनीतिक दल जो अपने शासनकाल में कई पत्रकारों को झूठे केस में फंसाकर आज भी उनकी जिंदगी से खेलने में बाज नहीं आ रहे। मैं तो देख रहा हूं कि कुछ दलों के नेताओं के बयान भी आपने खुब छापे हैं। हालांकि हमने पता लगाया तो यह भी पता चला कि उन नेताओं ने आपको जाकर प्रेस रिलीज नहीं दिया, बल्कि आपने उनसे फोन कर प्रतिक्रिया ली। बेचारा नेता, जो ठहरा, क्या करता। बात प्रभात खबर की है। बात छपास की बीमारी की है। बयान आपके अनुसार उसने डिलीवरी कर दी।

मैंने तो कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष राजेश ठाकुर से भी बात की है। उन्होंने भी कुछ बयान दिये हैं। लीजिये उनका बयान आप यहां पढ़ लीजिये। उनका कहना है कि जो घटना घटी है, वो गलत है। सरकार को इसकी जांच करानी चाहिये। जांच भी विस्तृत हो, ताकि पता चल सकें कि इसके पीछे कौन-कौन लोग है। ऐसे भी जिस व्यक्ति का नाम धमकी देने में आ रहा हैं। उसका संबंध पूर्व में किन-किन लोगों या नेताओं से रहा है, सभी जानते हैं। इसकी भी जांच होनी चाहिए कि किसके इशारे पर योगेन्द्र तिवारी ने धमकी देने का काम किया। उन्होंने तो ये भी कहा कि इस पूरी घटना से उन्हें षडयंत्र या साजिश की बू आ रही है। सरकार तो इन सब मामलों में हमेशा संजीदा रही है। वो जांच करायेंगी ही। अनर्गल बयान इस मुद्दे पर किसी को भी देना ठीक नहीं।

एक संवाददाता ने विद्रोही24 को यह भी बताया कि 28 दिसम्बर को एक खबर दो अखबारों में छपी थी। जिसमें दोनों अखबारों ने योगेन्द्र तिवारी की दो पत्नियां होने का दावा किया था। जिसमें प्रभात खबर भी शामिल था। 29 दिसम्बर को प्रभात खबर ने इस खबर का खंडन भी किया था कि योगेन्द्र तिवारी को सिर्फ एक ही पत्नी है। भाई आपकी महिमा किसी को भी दो पत्नी बना दीजिये, बाद में काट-छाटकर कह दीजिये कि दो नहीं, एक पत्नी थी। भाई, आप प्रभात खबर जो ठहरें।

आप ही के अखबार में एक पत्रकार संगठन चला रहा, ऐसा व्यक्ति का भी बयान है, जिसका पत्र व पत्रकारिता से दूर-दूर तक रिश्ता कभी नहीं रहा। मेरा भी झारखण्ड में पदार्पण हुए कम से कम 23 साल तो हो गये और बिहार में समय दिया सो अलग। लेकिन उस आदमी को कभी किसी पत्रकारिता में नहीं देखा, न सुना। लेकिन रांची तो महान है। यहां तो पत्रकारिता का एबीसीडी नहीं जाननेवाला भी पत्रकार बन जाता है। रांची प्रेस क्लब का मतदाता बन जाता है। लोग उस पत्रकार से अपने इच्छानुसार बयान भी मंगवा कर छाप देते हैं।

अच्छा रहेगा कि आपने प्राथमिकी दर्ज करवा ही दी, अब थोड़ा आप संयम बरतें। स्थानीय पुलिस इसे गंभीरता से लें और हर पहलूओं का जांच करें। गलत कोई भी हो, उसे दंडित करें। लेकिन यह भी याद रखें कि ऐसी ही प्राथमिकता उस वक्त उस पत्रकार को भी दें, जो सामान्य है, जिसकी कोई नहीं सुनता, जिनके पास कोई संगठन या कोई नेता या पत्रकार संगठन तक खड़ा नहीं रहता। साथ ही पत्रकार संगठन चलानेवाले महान पत्रकार नेता जो अपने संस्थान में ही अपने पत्रकार बंधुओं को अपमान करने का कोई मौका नहीं छोड़ते तथा वे राजनीतिक दल जो छपास की बीमारी से पीड़ित हैं, थोड़ा इस मामले में संयम बरतें।