प्रभात खबर आम को इमली बोले तो इमली बोलो, जाड़े को वसंत कहे तो वसंत कहो, ज्यादा दिमाग मत लगाओ
रांची से प्रकाशित अखबार प्रभात खबर ने 14 फरवरी यानी वैंलेंटाइन डे को वसंत ऋतु के रुप में आम जनता यानी अपने पाठकों के बीच में पेश कर दिया। जिसमें उसने अपनी लाइफ संडे पेज को मोहब्बत का मौसम के रुप में प्रस्तुत किया। एक से एक रांची के धुरंधर प्राध्यापकों, चिकित्सकों व कवियों के इस पर उद्गार भी आम पाठकों के बीच रख दिये गये, जैसे लगा कि 14 फरवरी यानी वैलेन्टाइन डे को जाड़ा अपना सारा दुकान समेट कर चल दिया और वसंत ऋतु ने अपनी सत्ता संभाल ली।
प्रभात खबर ने अपने पहले पृष्ठ पर लिख डाला – अंग-अंग में उमंग, लो वसंत आ गया, विशुद्ध भाव प्यार का हृदय समा गया। प्रभात खबर ने लाइफ संडे पेज पर निराला, संत कबीर व कालिदास को भी लाकर पटक दिया और इन महान विभूतियों के माध्यम से कहलवा दिया कि सबने वसंत के सौंदर्य को अपनी कविताओं और पद में उभारा है। यह सच्चाई भी है, पर सवाल उठता है कि क्या सचमुच वसंत आ गया?
क्या सचमुच कोयल की कूक सुनाई देने लगी? आम के पेड़ों में मंजर आ गये? वृक्षों से पुराने पत्ते अलग होने लगे अथवा झड़ने लगे और उन जगहों पर नये-नये पल्लव दिखाई देने लगे? क्या सचमुच पूरे वातावरण में मादकता छाने लगी? और अगर ऐसा नहीं, तो फिर इस प्रकार की प्रस्तुतिकरण कर, प्रभात खबर या उसके लेखक क्या संदेश देना चाहते है?
यह संदेश की जो हम बोले वो करो, वो ही समझो, हम आम को इमली कहे तो इमली कहो। हम जाड़े को वसंत बोले तो वसंत बोलो। ज्यादा दिमाग मत लगाओ, कौआ की कांव-कांव में कोयल की कूक ढूंढ लो और कहो वसंत आ गया।
सच्चाई तो यह है कि वसंत का अभी जन्म ही नहीं हुआ है। आज भी भारत के गावों में जो लोग रहते है, वे जानते है कि वसंत का जन्म, माघ शुक्ल पंचमी को हुआ है, इसलिए इस दिन को वसंत पंचमी कहा जाता है, ठीक उसी प्रकार जैसे जिस चैत्र शुक्ल नवमी को भगवान राम ने जन्म लिया, उस दिन को श्रीरामनवमी के नाम से जाना जाता है।
ऐसे भी इस वर्ष वसंत पंचमी 16 फरवरी को हैं, और जो जिस दिन जन्मता है, वो तुरन्त उसी दिन जवान भी नहीं हो जाता, उसकी बाल्यावस्था भी होती है। जो लोग भारत के ऋतुओं के बारे में जानते हैं, उन्हें पता होना चाहिए और खासकर प्रभात खबर में अपने आलेखों व उद्गारों को छपवानेवाले कथित महान विभूतियों को यह जान लेना चाहिए कि भारत में छह ऋतुएं पाई जाती हैं, ये सारी ऋतुएं दो-दो महीने की होती है। जैसे – चैत्र-वैशाख में वसंत ऋतु होता है। ज्येष्ठ-आषाढ़ में ग्रीष्म, श्रावण-भाद्रपद (सावन-भादो) में वर्षा, आश्विन-कार्तिक में शरद, मार्गशीर्ष-पौष में हेमन्त व माघ-फाल्गुन में शिशिर ऋतु होता है।
आज भी भारत के किसी भी इलाके में चले जाइये, लोग यही कहेंगे कि अभी माघ ही चल रहा है, वसंत आने में अभी डेढ़-दो माह है, क्योंकि वसंत आने पर किसी को बोलने की जरुरत ही नहीं होती, सारा वातावरण ही खुद कहने लगता हैं, हवांए कहने लगती है, वो खुद होली की उमंग लेते हुए आकर कहती है – रंग खेलो, वसंतोत्सव मनाओ, उमंग प्रकट करो, प्रकृति हंस रही हैं तुम भी खिलखिलाकर हंसो।
लेकिन ये क्या वेलेन्टाइन को वसंत से मिलाने का कुत्सित प्रयास तो हमारी संस्कृति को ही नष्ट कर डालेगा और ये नष्ट कर कौन रहे हैं, नये-नये प्राध्यापक, नये-नये कवि, नये-नये चिकित्सक और नये-नये संपादक, जिन्होंने पूरे समाज को ही बंटाधार करने का लगता है कि एक तरह से प्रण कर लिया है, ऐसे में अपने बच्चों व युवाओं को ऐसे लोगों से बचाने की आवश्यकता है, नहीं तो आनेवाले समय में आपके बच्चे व युवा शिक्षित होने के वावजूद आला दर्जे के मूर्ख ही कहलायेंगे।