राजनीति

निजी विद्यालयों द्वारा विभिन्न शुल्कों के नाम पर की जानेवाली मनमानी का मुद्दा भाजपा के प्रदीप प्रसाद ने उठाया, स्पीकर व अन्य विधायकों ने प्रदीप के मांगों का किया समर्थन, सरकार से विसंगतियों को देख कानून बनाने को कहा

झारखण्ड विधानसभा के बजट सत्र के 18वें दिन सदन पांच मिनट विलम्ब से शुरु हुआ। जिसमें हजारीबाग के भाजपा विधायक प्रदीप प्रसाद ने आज प्रश्नकाल के दौरान राज्य के विभिन्न नगरों में चल रहे निजी स्कूलों के द्वारा रि-एडमिशन के नाम पर तथा अन्य शुल्कों के नाम पर अभिभावकों से लिये जा रहे मनमाना शुल्क का मुद्दा उठाया गया। हालांकि इसी प्रकार का मुद्दा कल ही भाजपा झरिया विधायक रागिनी सिंह ने उठाया था। जिसका कोई फलाफल नहीं निकला।

प्रदीप प्रसाद के इस प्रश्न पर आसन भी बेचैन दिखा। शायद यह मामला जन-जन से जुड़ा था और किसी न किसी रूप में कभी न कभी ये मामला जन प्रतिनिधियों को बेचैन जरुर किया है। शायद इसका प्रभाव दिखा। प्रदीप प्रसाद का कहना था राज्य के सभी जिलों के निजी स्कूलों में कक्षा एक से लेकर 12 वीं तक एडमिशन फीस, ट्यूशन फीस और कई मदों में विभिन्न फीस का राशि अलग-अलग हैं। इसलिए सरकार को चाहिए कि इस पर अंकुश लगाये ताकि आम जनता को लाभ हो।

सरकार का कहना था कि इन्हीं सभी बातों को लेकर झारखण्ड शिक्षा न्यायाधिकरण (संशोधन) अधिनियम 2017 के तहत अधिसूचित किया गया है कि निजी विद्यालयों द्वारा लागू किये जानेवाले शुल्क के विनियमन हेतु विद्यालयस्तरीय शुल्क निर्धारण समिति एवं मामले को स्वयं विद्यालय प्रबंधन द्वारा अग्रेषित किये जाने अथवा निर्धारण के विरुद्ध आवेदन की स्थिति में विचार  हेतु जिलास्तरीय समिति के गठन का प्रावधान है, जो प्राप्त अग्रेषण अथवा अपील का प्राप्ति की तिथि से अधिकतम 60 दिनों में सुनवाई उपरांत निबटारा करती है, जो दोनों पक्षों के लिए बाध्यकारी होता है।

सरकार का यह भी कहना था कि प्रमंडलीय आयुक्त को दंड अधिरोपित किये जाने हेतु सक्षम प्राधिकार घोषित किया गया है, जिनमें अधिनियम के प्रावधानों के उल्लंघन से संबंधित परिवाद प्राप्त होने की स्थिति में सुनवाई उपरांत अधिकतम 60 दिनों के अंदर आदेश पारित करने की शक्ति निहित है।

प्रदीप प्रसाद और मंत्री के बीच चल रहे वाद-विवाद के बीच नेता प्रतिपक्ष बाबूलाल मरांडी ने कहा कि शुल्क के विवाद के निपटारे के लिए जिलास्तरीय कमेटी तो बना दी गई। लेकिन सच्चाई यह है कि इसकी बैठक कभी नहीं होती। जो उपायुक्त कराते ही नहीं। होना तो ये चाहिए कि इसकी बैठक कम से कम एक महीने में एक बार, नहीं तो एडमिशन के पूर्व एक बार तो जरुर होने चाहिए।

जिसमें जनप्रतिनिधियों को भी शामिल करना चाहिए। जब बैठक हो तो इसकी सूचना कम से कम एक सप्ताह पूर्व जन-प्रतिनिधियों को अवश्य मिल जाने चाहिए। बाबूलाल मरांडी ने कहा कि जिलास्तरीय कमेटी बना दिये जाने के बाद भी कम से कम सरकार उपायुक्त से ये तो पूछे कि उसने साल में कितनी बार मीटिंग करवाई?

इसी बीच प्रदीप प्रसाद ने कहा कि स्थिति गंभीर है। राज्य की जनता निजी विद्यालयों की मनमानी से त्रस्त हैं। सरकार इनके एडमिशन शुल्क, री-एडमिशन शुल्क तथा अन्य शुल्कों में लगातार बढ़ोत्तरी पर नियंत्रण करने के लिए कानून बनाएं। जिसका समर्थन कांग्रेस पार्टी के सुरेश बैठा ने भी किया। आसन ने भी सरकार से अनुरोध किया कि निजी विद्यालयों में व्याप्त विसंगतियों को दूर करने के लिए सरकार कानून बनाएं। सरकार का कहना था कि जिलास्तरीय कमेटी की अनुशंसा के बाद इस पर कानून बनाने की दिशा में सरकार आगे बढ़ेंगी।

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