प्रदीप वर्मा को सताने लगी अपनी छवि की चिन्ता, राज्यसभा पहुंचने के बाद मंत्री बनने के चक्कर में लगे, खुद को संत बताने में उप-राष्ट्रपति जगदीप धनखड़, PM मोदी व CM चम्पाई सोरेन को किया टैग
भाजपा के झारखण्ड के प्रदेश महामंत्री है प्रदीप वर्मा। जरा बुद्धि के तेज है। इसलिए झारखण्ड में बहुत सारे लोग जो महामंत्री बने, पर वो सांसद नहीं बन सकें। लेकिन ये जनाब राज्यसभा में अपना पांव जमा ही लिये। इनकी हरकते ऐसी अमानवीय है कि इनकी अमानवीय हरकतों की चर्चा झारखण्ड के कई पत्रकारों ने समय-समय पर की, जब इस व्यक्ति ने दुमका के ही एक भाजपा कार्यकर्ता विवेकानन्द राय के साथ की, जब उनके पिताजी का देहांत हुआ था।
आजकल इनकी इसी प्रकार की अमानवीय हरकतों की चर्चा जब कई लोगों ने शुरु कर दी। जिससे बेचारे व्यथित है और स्वयं को संत बनाने की कोशिश में लगे हैं। संभव है। बुद्धि के तेज है। लोग उनके संतत्व के चक्कर में आ जाये। जब कालनेमि के चक्कर में हनुमान आ सकते हैं तो ये प्रदीप वर्मा की बुद्धि क्या बला है? कलियुग का प्रभाव है, सफल हो ही जायेंगे।
जरा देखिये न, 12 जून को अपने स्वयं के फेसबुक पर एक पोस्ट करते हैं और उस पोस्ट को भारत के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़, जे पी नड्डा, बाबूलाल मरांडी, अमर कुमार बाउरी, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, लक्ष्मीकांत वाजपेयी, संजय सेठ, नागेन्द्र नाथ त्रिपाठी, मनोज सिंह, आदित्य साहू, समीर उरांव, कर्मवीर सिंह, चम्पाई सोरेन, अन्नपूर्णा देवी, आरएसएस, भाजपा आदि को टैग किया है। उन्होंने लिखा है कि
– “कुछ लोग आपको कभी पसंद नहीं करेंगे, क्योंकि आपके ‘मुक्तसंग’, ‘अहंकार रहित’, ‘धैर्यवान’ एवं ‘उत्साही स्वभाव’ के साथ-साथ ‘सफलता-असफलता’ में ‘सम’ बने रहने की शक्ति, उनके भीतर बैठे #दानव को क्रोधित, चिड़-चिड़ा एवं परेशान करतें हैं…! उनकी चिढ़-ईर्ष्या एवं हताशा अक्सर उनकी #वाणी– #लेखनी आदि में प्रगट होने लगती है…! उन्हें उनके कुत्सित विचारों की दुनिया में जीने दें, उनके अस्तित्व को अस्वीकार करें…..!, आप उन्हें संज्ञान में ले कर उनकी दुनिया, उनके #दानवलोक में प्रवेश न करें….!!”
मतलब साफ है कि जनाब ने जिन्हें-जिन्हें टैग किया है, वे उन्हें बता रहे है कि वे साक्षात् भगवान है, उन्होंने कभी कोई गलत कार्य किया ही नहीं है। जो भी लोग उनके बारे में बता रहे हैं, सभी दानव हैं। लेकिन वे संत है। भगवान प्रदीप है। वे कभी कुछ गलत नहीं कर सकते। लेकिन प्रदीप वर्मा को ये पता नहीं है कि जिन्हें वे टैग कर अपने चरित्र की झांकी दिखाना चाहते हैं। वे भले ही उनके चरित्र के आगे नृत्य करने लगे, लेकिन जो उनको जान चुका है। उनके आगे उनका (प्रदीप वर्मा का) चरित्र कुछ भी नहीं हैं। प्रमाण के लिए प्रदीप वर्मा को एक बार फिर दिखाना चाहता हूं और जिन्हें प्रदीप वर्मा ने टैग किया है, उन्हें भी दिखाना चाहता हूं।
ये फेसबुक पर 15 मई को डा. दिव्यांशु कुमार पोस्ट किये हैं। जो दैनिक जागरण के वरिष्ठ पत्रकार है। लीजिये पढ़ लीजिये। इसे पढ़ने के बाद अपना चेहरा देख लीजिये। एक बात और इसी पोस्ट पर कई लोगों ने आपके चेहरे पर …. भी हैं। उसे भी पढ़ लीजिये। ये जो आपमें स्वयं को महान दिखाने की भूत आपके सर पर चढ़कर बैठ गई है और जो अपने मातहत दो कौड़ी के लिए अपना ईमान बेच देनेवालों से जो अपना प्रदीपायन गवां रहे हो, उससे आपका ही अहित होगा, क्योंकि अंततः कर्मफल का सिद्धांतानुसार कर्मफल आपको ही भोगना पड़ेगा, दूसरे का आप कुछ नहीं लोगे, आप क्या हो। आपके बारे में केवल मैं ही नहीं कई लोग लिखे हैं, पहले दिव्यांशु जी का ये पोस्ट पढ़ लो …
अथ चुनाव संवेदनहीनता
लोकसभा चुनाव में प्रमुखता से लगे एक राजनीतिक दल के देवतुल्य कार्यकर्ता के पिताजी का निधन हुआ। पिता को मुखाग्नि देकर स्वजनों के साथ चिता के भस्म होने की प्रतीक्षा में थे कि तभी रांची से प्रभारी जी (भाईसाहब) का फोन आया। आहत मन शिष्टाचार की निष्ठा में फोन उठा बैठा। भारी भरकम काया वाले भाईसाहब बोले- आपकी बहुत शिकायत मिल रही है, आप चुनाव में लगे नहीं हैं। चिता की लपटों को निहारते हुए कार्यकर्ता ने कहा कि मैं श्मशान में हूं, पिताजी का निधन हो गया है।
निजी शिक्षा संस्थान की दुकानदारी चला रहे प्रभारी भाई साहब बोले फिर तो हमलोगों ने आपको काम में लगाकर गलती की। हमने गलत आदमी का चयन कर लिया। बता दें कि जो कार्यकर्ता हैं वो अपना खर्च कर तीस साल से पार्टी के साथ लगे हैं। जबकि प्रभारी भाईसाहब पार्टी में पैदा लेते ही विधानसभा लोकसभा टिकट की रेस में लग गए थे। फिलहाल राज्य सभा कम्फर्म करा लिए हैं।
और अब ये विजय देव झा का पोस्ट पढ़ लीजिये। ये भी वरिष्ठ पत्रकार है। आपकी हरकतों पर लिखी है। आपने अपने ही भाजपा कार्यकर्ता के साथ जो गंदी हरकत की। उसका ये कोप है। लेकिन आप समझ ही नहीं सकते। क्योंकि आपको तो किसी न किसी प्रकार से राज्यसभा की सीटे चाहिए थी या कार्यकर्ताओं की लाशों पर लोकसभा की सीट चाहिए थी। कोई न कोई सीट आपको चाहिए था। आपको मिल गया और अब आप स्वयं को संत बनाने की कोशिश कर रहे हो। हो सकता है कि कलियुग है।
आपको लोग संत भी बता दें और कहें कि आप तो स्वामी प्रदीपानन्द हैं। पेट कद-काठी सभी अनुकूल है और अब संघ में भी काफी गिरावट आई है। उनके अंदर भी कई ऐसे लोग हैं, जो आपके एक से एक हरकत पर बमबम हो जायेंगे, आपको संत का खिताब दिलवा देंगे। फिलहाल आप अपनी हरकत के बारे में विजय देव झा से भी सुन लो, देखों विजय देव झा क्या कह रहे हैं …
विवेकानंद राय (दुमका) को अपने पिता की तरफ से भाजपा से परमिशन लेना चाहिए था कि वह (पिता) बीच चुनाव में मर सकते हैं कि नहीं। प्रदीप वर्मा को विवेकानंद राय के विरुद्ध अनुशासत्मक कारवाई करनी चाहिए। ऐसे कैसे कोई चुनावी दायित्वों को इग्नोर कर सकता है।
एक भाजपा के ही नेता कहते है कि इनकी महानता तो यही है कि खिजरी विधानसभा से दो – दो राज्यसभा सांसद, जिसमें एक स्वयं आप हैं। परिणाम खिजरी विधानसभा से भाजपा हार गई। अविभाजित बिहार के 2010-12 से लेकर अब तक संथाल परगना में विधायकों की 10 से 15 सीट मिली हैं कभी भाजपा को दस सीट से कम नहीं मिली है लेकिन जब से प्रदीप वर्मा प्रभारी बने हैं संथाल परगना की सीट लगातार घटते जा रही है और आज घट कर चार हो गयी है।
भाजपा नेता कहते है कि आगामी विधानसभा चुनाव में ये भी घट कर एक या दो रह जायेगा अभी राजस्थान के नागौर लोकसभा के भी प्रभारी हैं वहां भी इन्होंने अपने क्रियाकलाप से हरवा दिया वो सीट भी भाजपा के हाथों से चली गयी। इससे साबित होता है कि प्रदीप वर्मा संथाल परगना के साथ नागौर लोकसभा क्षेत्र के लिए पनौती साबित हुए हैं। संथाल परगना के मामले में तो ये पूरी तरह अखण्ड पनौती साबित हुए हैं।
कार्यकर्ताओं का मानना है कि ऐसे तथाकथित डॉक्टर साहेब को जो पार्टी के लिए अखण्ड पनौती साबित हुए है। ऐसे व्यापारी और तथाकथित नेता को सभी जिम्मेदारी से केन्द्रीय नेतृत्व को अविलम्ब मुक्त कर देना चाहिए और घर में या जब तक राज्यसभा सदस्य हैं तब तक राज्यसभा में ही बैठा देना चाहिए ऐसे लोग संगठन के लिए कोई काम के नहीं हैं ये लोग वास्तव में व्यापारी हैं। कोई नेता या कार्यकर्ता नहीं।