आदिवासी मामलों के विशेषज्ञ व नियमावली बनाने वाले कमेटी में शामिल सदस्य प्रेमंचद ने नई TAC पर अंगूलियां उठाई
राज्य में नई जनजातीय परामर्शदातृ परिषद् का गठन हो चुका है। नई नियमावली बनने के बाद, उस नियमावली के आधार पर झारखण्ड की राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू ने बिना किसी लाग-लपेट के उस परामर्शदातृ परिषद् को स्वीकृति भी दे चुकी है। राज्य की प्रमुख विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी ने इस पर हल्का सा प्रतिरोध जताया है, पर वो प्रतिरोध भी केवल दिखावा मात्र है।
मतलब राज्य के प्रमुख विपक्षी दल को भी इस नई जनजातीय परामर्शदातृ परिषद् को लेकर कोई शिकायत नहीं हैं, जो भी शिकायत है वो इस बात को लेकर है कि राज्य के प्रथम मुख्यमंत्री व भाजपा नेता बाबू लाल मरांडी को पांचवे पायदान पर क्यों रखा गया? लेकिन इस परामर्शदातृ परिषद् को लेकर बनी नियमावली के लिए बनाई गई समिति के प्रमुख सदस्य अर्थात् नियमावली समिति के कथनानुसार आदिवासी मामलों के विशेषज्ञ प्रेमचंद मुर्मू ने ही यह कहकर सनसनी फैला दी कि…
“TAC का निर्माण कितना संविधान सम्मत है, दरअसल इस पर किसी ने ध्यान ही नहीं दिया, जबकि सैकड़ों लोगों ने TAC निर्माण के लिए बधाई तक दे दी। लाइकिंग भेज दी। किसी ने संविधान जानने की जहमत नहीं उठाई। रूल्स बनाने में भी उनकी मतलब प्रेम चंद मुर्मू की पूरी सहमति नहीं थी। हां, मीटिंग में एक दिन और कुछ पल के लिए वे आमंत्रित थे। आदिवासी मामलों के विशेषज्ञ प्रेमचंद मुर्मू के अनुसार उनके आने के पहले ही रूल्स बन चुका था। इसके बावजूद रूल्स के 4 में यह कहा गया है TAC के सदस्यों का चुनाव उसकी कार्य-नीति राज्यपाल द्वारा किया जाएगा।
इसको नकारते हुए सरकार द्वारा बनाये गए रूल्स में TAC के सदस्यों के चुनाव के लिए संविधान के विरुद्ध मुख्यमंत्री को अधिकृत कर दिया गया। मतलब, यहां पूरी तौर पर कहा जाए तो TAC कानून और संविधान सम्मत नहीं बना। ऐसे भी अभी तक TAC बहुत ज्यादा फंक्शनल नहीं रहा। इस ओर किसी का ध्यान नहीं। यह सिर्फ संविधान तक ही सीमित रह गया है।”
और अब ग्लैडसन डुंगडुंग ने क्या कहा? ग्लैडसन डुंगडुंग जाने माने व सम्मानित व्यक्ति है, उन्होंने भी राज्य परामर्शदातृ समिति को लेकर अंगूलियां उठा दी। उन्होंने इसके लिए फेसबुक को अपना माध्यम चुना तथा अपने प्रियजनों को अपनी बाते शेयर भी की। जरा देखिये ग्लैडसन डुंगडुंग ने क्या लिखा है।
“झारखंड सरकार के द्वारा टीएसी की नियमावली बनाने और उसकी अधिसूचना जारी करने से असमंजस की स्थिति पैदा हो गई है। ऐसा दिखाई पड़ता है कि राज्य सरकार जानबूझकर महामहिम राज्यपाल के संवैधानिक अधिकारों को बाईपास करते हुए अपना काम कर रही है। राज्य सरकार के इस कार्य को देखकर मेरे जैसे बहुत सारे लोग सोच रहे थे कि जेएमएम और कांग्रेस की सरकार असंवैधानिक काम करने पर तुली हुई है।
लेकिन रतन दा के फेसबुक पोस्ट को पढ़ने के बाद बहुत सारे आदिवासी युवा, असमंजस की स्थिति में हैं कि क्या वे गलत सोच रहे थे? रतन दा ने टीएसी की नियमावली बनाने वाली टीम की सूची जारी की है, जिसमें झारखंड के जाने-माने लोग शामिल हैं। इसलिए मैं चाहता हूं कि टीम के माननीय सदस्य हम लोगों की उलझन दूर करें। हम इन प्रश्नों का जवाब ढूंढ़ रहे हैं।
- क्या झारखंड सरकार के द्वारा बनाया गया टीएसी की नियमावली संवैधानिक है?
- क्या टीएसी गठन से संबंधित अधिसूचना राज्य सरकार जारी कर सकती है?
- राज्य सरकार ने पांचवीं अनुसूची के किस पैरा के आधार पर यह कदम उठाया है?
- क्या टीएसी के नये नियमावली के तहत टीएसी का गठन कर राज्य सरकार ने कोई असंवैधानिक कार्य किया है?
- टीएसी के नये नियमावली लागू होने के बाद पांचवीं अनुसूची क्षेत्र के संवैधानिक प्रमुख कौन होंगे मुख्यमंत्री या राज्यपाल?
- 6. टीएसी नियमावली बनाने वाली टीम में सरना धर्मावलंबी आदिवासियों एवं आदिम जनजाति समुदायों का प्रतिनिधित्व क्यों नहीं है?
ये प्रश्न सिर्फ चर्चा, स्थिति स्पष्ट करने एवं मार्गदर्शन के लिए है इसे अन्यथा न लें। उपरोक्त प्रश्न या टीएसी गठन से संबंधित बातों पर चर्चा करने के लिए मैं टीएसी नियमावली बनाने वाली टीम के माननीय सदस्यों से आग्रह करता हूं। रतन दा, प्रेमचंद दा, प्रभाकर दा, जोनसन दा, फादर महेन्द्र पीटर तिग्गा, रणेंद्र जी, सुधीर पाल जी, रेश्मा सिंह या नियमावली समिति के कोई भी सदस्य हमारा मार्ग दर्शन कर सकते हैं।”
इधर सामान्य आदिवासी भी टीएसी की नई नियमावली और उसके गठन को लेकर अंगूलियां उठा रहे हैं, और ये कही नहीं, उनके फेसबुक वॉल पर उठा रहे हैं, जो इसके बन जाने के बाद फूले नहीं समा रहे हैं। एक दूसरे को बधाइयां देने में लगे हैं, जबकि ऐसा कुछ है नहीं। जरा देखिये पौलूस मुर्मू ने क्या कहा –
“कैसे आप आदिवासी विद्वानों ने जनजाति सलाहकार परिषद नियमावली में असंवैधानिक प्रारूप तैयार किया? जनजाति विधायकों की संख्या तीन चौथाई से अधिक नहीं होगा अर्थात् परिषद में 15 सदस्य राज्य विधान मंडल के विधायक होंगे और शेष स्थान जनजाति समुदाय के बुद्धिजीवी, शिक्षाविद, समाजसेवी और अन्य क्षेत्र के विशेषज्ञों द्वारा भरा जाना चाहिए था परंतु ऐसा नहीं हुआ, जो पांचवीं अनुसूची का उल्लंघन है।”
सच्चाई यह है कि राज्य का मुख्यमंत्री पद संभालने के बाद मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन ने कुछ नया सोचा होगा, और इसके लिए उन्होंने कुछ लोगों को टीएसी के लिए नई नियमावली बनाने को कहा होगा। जिसे देखते हुए लोगों ने एक कमेटी भी बना ली हो, जिसमें अपने दोस्तों को शामिल कर लिया, पर प्रेमचंद मुर्मू के शब्दों में उनके मीटिंग में आने के पहले ही नियमावली यानी राज्य परामर्शदातृ परिषद् का संविधान बनकर तैयार हो गया था।
मतलब लोगों ने अपने से ही लोगों का नाम रख लिया और अपने ही सब काम करते रहे, इन महानुभावों से राय तक नहीं ली, तो फिर ये कमेटी बनी क्यों? राज्य परामर्शदातृ समिति का गठन और आदिवासी मामलों के विशेषज्ञ से कोई राय ही नहीं ली जाये, तो बड़ा गड़बड़ हैं, अगर आगे चलकर इस की गतिविधियों पर यह कहकर रोक लगा दी जाये कि पूरा मामला ही असंवैधानिक हैं तो इसके लिए कौन दोषी होगा, रणेन्द्र या रणेन्द्र की टीम। यह भी फैसला हो ही जाये, और अंत में अच्छा रहेगा की टीम में शामिल लोग ग्लैडसन डुंगडुंग के सारे प्रश्नों का ईमानदारी से जवाब दे दें।