जरा दिमाग पर जोर डालियेगा, बंगाल में भाजपा हारी नहीं, बल्कि दुसरी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है, अब वह बंगाल से भी राज्यसभा में अपने उम्मीदवार भेजेगी
क्या सचमुच बंगाल में भाजपा हार गई? क्या बंगाल में इसके पूर्व भाजपा का शासन था? क्या बंगाल में भाजपा जिस प्रकार से चुनाव लड़ी, उस प्रकार से उसे चुनाव नहीं लड़ना चाहिए था? क्या उसे कांग्रेस और वामपंथियों की तरह बंगाल में चुनाव लड़कर ममता बनर्जी का हाथ मजबूत करना चाहिए था? क्या केवल भाजपा के नेताओं ने बोलने की मर्यादा तोड़ी? क्या इस बार जो पांच राज्यों में चुनाव हुए, उन पांच राज्यों में भाजपा को लोगों ने ठुकरा दिया?
क्या जिस प्रकार से गोदी मीडिया कहकर चिल्लानेवालों ने आज रिपोर्टिंग की, वो मर्यादित थी? क्या भारत में काम करनेवाले मीडिया के लोग शत प्रतिशत दूध के धूले हैं? क्या वे राजनीतिक खूंटे से नहीं बंधे हैं? क्या धर्मनिरपेक्षता का मतलब सिर्फ और सिर्फ तुष्टिकरण है? क्या इस चुनाव में बांगलादेशी घुसपैठियों ने आसन्न संकटों को देखते हुए भाजपा को हराने के लिए गोलबंद होकर तृणमूल कांग्रेस के पक्ष में मतदान नहीं किया?
क्या ये सही नहीं कि जिन विदेशी चैनलों को उनके ही देश में कोई पूछता नहीं, वे विदेशी चैनल व अखबार आजकल भारत में सुर्खियां बटोर रहे हैं और भारत की बढ़ती जनसंख्या का अपने हित में लाभ उठाकर भारत को ही बर्बाद कर रहे हैं? क्या जिस भाजपा को बंगाल के विधानसभा में मात्र तीन सीटें थी, वो भाजपा आज 80 पार कर रही हैं, ये भाजपा की जीत नहीं हैं, क्या भाजपा आज बंगाल की दुसरी सबसे बड़ी पार्टी नहीं हैं?
क्या ये सच नहीं कि अब यही भाजपा, बंगाल से राज्यसभा के लिए अपने उम्मीदवार भेजना शुरु कर देगी, जो कि कल तक उसके पास राज्यसभा में भेजने के लिए पर्याप्त विधायक नहीं थे, यानी मात्र तीन विधायक थे? क्या आज पूरे बंगाल से माकपा और कांग्रेस साफ नहीं हो गई? वो माकपा, वो कांग्रेस जिसकी कभी सल्तनत बंगाल में हुआ करती थी? और इसकी भी कौन गारंटी लेगा कि ममता बनर्जी अगली बार सत्ता में रहेगी ही?
क्या जीत के बाद भाजपा कार्यालय में आग लगाना लोकतंत्र की खुबसुरती है? क्या जीत के बाद भाजपा कार्यकर्ताओं को निशाने पर लेना लोकतंत्र की खुबसुरती है? इस बात की गारंटी क्या एनडीटीवी या अन्य भाजपा विरोधी चैनलें देगी या पत्रकार या राजनीतिक दलों के लोग देंगे कि आनेवाले वक्त में भाजपा कार्यकर्ताओं की बंगाल में हत्याएं नहीं होगी, जैसा कि बंगाल में होता रहा है? क्या भाजपा विरोधी दलों के द्वारा की जानेवाली हत्याएं, हत्याएं नहीं होती और भाजपा शासित प्रदेशों में होनेवाली हत्याएं, हत्याएं होती है?
भाई ऐसे कई सवाल है जेहन में हैं, जो पूछने का मन करता है, पर इन सवालों का जवाब कौन देगा? किसमें हिम्मत है भाई। उसमें हिम्मत है, जिसका भाई लड़कियों के चक्कर में रहा, एक राष्ट्रीय दल के टिकट पर चुनाव लड़ा, और वो एक राष्ट्रीय चैनल में बैठकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, भाजपा और अन्य चैनलों को गोदी मीडिया कहकर दुत्कारता है, पर वो खुद अपना चरित्र नहीं देखता कि उसने क्या किया है?
क्या जब उसका भाई चरित्रहीनता की पराकाष्ठा पर पहुंच चुका था तो उसने अपने स्लॉट में उस खबर को कभी जगह दी थी, उत्तर है – नहीं, तो भाई तुम किस मुंह सें दुसरे को गाली देते हो। ये बकवास आखिर कब बंद करोगे? मेरे विचार से तो उपर्युक्त सारे प्रश्नों का जवाब सिर्फ वही दे सकता है, जिसने कभी भी चरित्र के साथ कोई समझौता नहीं किया हो, लेकिन दूसरे को चोर कहनेवाला, अपनी चोरी पर चुप्पी साध लेता हैं तो मुझे हैरानी होती है?
रही बात नेता की, तो जो जीत या हार में समान भाव रखता है, मैं उसे ही नेता मानता हूं, उसी से कुछ आशाएं हैं, नहीं तो जिन्हें ममता बनर्जी में महिषासुरमर्दिनी, दिखाई पड़ता हैं, वे जान लें कि यही ममता बनर्जी हैं, जो बंगाल में लोकतांत्रिक रुप से चल रही वामदल की सरकार को हटाने के लिए कभी अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार को संकट में डाल दी थी, लेकिन अटल बिहारी वाजपेयी, ममता बनर्जी के इस अनैतिक कार्य में सम्मिलित नहीं हुए।
ऐसे आज भी कई भारत में नेता हैं, जिन्हें हार या जीत कोई मायने नहीं रखता, दोनों स्थितियों में वे स्वयं को कूल रखते हैं, अगर आपको देखना है तो जाकर नवीन पटनायक, ओड़िशा के मुख्यमंत्री को देखिये और समझिये कि वो व्यक्ति क्या है, वो कैसे अपनी राज्य को सेवा दे रहे हैं, वे कैसे अपने देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का सम्मान करते हुए, राज्य व देश के साथ बेहतर संबंध बना रहे हैं? जाकर देखिये नवीन पटनायक को कि कैसे जब पता चला कि देश में ऑक्सीजन की कमी हो रही हैं, तब उन्होंने बेहतर ढंग से सभी प्रमुख स्थानों पर ऑक्सीजन से भरी गाड़ियों को भेजने का काम शुरु कर दिया।
लेकिन ममता बनर्जी क्या करती है? वो किसी से छुपा नहीं है, वो कैसे अपने भक्त पत्रकारों को राज्यसभा में भेजती हैं, वो भी सभी को पता है, वो कैसे अपने लोगों को उपकृत करती हैं, वो भी सब को पता है, वो कैसे तब आग-बबूला हो जाती है, जब कोई दुसरा दल उनके बंगाल में चुनाव लड़ने की कोशिश करता है, याद हैं न कि भूल गये कि कैसे ममता बनर्जी ने झारखण्ड के मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन को झिड़की लगाई थी, जब हेमन्त सोरेन ने बंगाल में चुनाव लड़ने की सिर्फ घोषणा की। नतीजा क्या हुआ? हेमन्त सोरेन ने अपने सारे सपने ममता बनर्जी के आगे रख दिये, तो क्या ऐसे ही नरेन्द्र मोदी करते?
मैं तो कहूंगा कि भाजपा ने बंगाल की ममता बनर्जी को उसकी औकात बता दी हैं, ममता की रातों की नींद हराम कर दी हैं, क्योंकि अब विपक्ष कांग्रेस नहीं, सामने भाजपा होगी। अब उनकी हिम्मत नहीं होगी कि वे माघ शुक्ल पंचमी में किसी विद्यालय में सरस्वती पूजा होगी तो वहां सरस्वती पूजा करने में रोक लगा देगी। अब दुर्गा पूजा विसर्जन पर भी रोक लगाने में दस बार उन्हें सोचना पड़ेगा। बंगाल की जनता जाग चुकी है। वो इस बार नहीं तो अगली बार जरुर धमाल मचायेगी।
एक बात और भाजपा के लोगों को भी जान लेना चाहिए कि ये जो किसी भी राज्य में आठ-आठ चरणों में जो चुनाव कराने की सोचते हैं, उसे बंद कराये, क्योंकि जितना लंबा चुनाव होगा, उतना ही उस पार्टी को जीतने का खतरा होता है, जो गाल बजाने में उस्ताद होता है, या जो नौटंकी करने में तेज होता है और जिसका चुनावी वैतरणी पार करानेवाला प्रशांत किशोर जैसा नौटंकीबाज हो, तो फिर उसके क्या कहने? अंततः कोई ये भी नहीं सोचे कि प्रशांत के कारण बंगाल में ममता बनर्जी आ गई। ममता बनर्जी के आने के कारण कुछ और हैं, जिसे भाजपा अच्छी तरह जान चुकी हैं और हमें नहीं लगता कि वो इस गलती को फिर दुहरायेगी।