सवाल “शुभम संदेश” के मालिक से, क्या आपके यहां अशुभ समाचार प्रकाशित नहीं होंगे? क्या आप अपने नामानुरुप जनता को सेवा देंगे?
एक जुलाई को रांची के बंगाल-नागपुर रेलवे होटल में रांची से प्रकाशित होनेवाले एक दैनिक समाचार पत्र “शुभम संदेश” का विमोचन हुआ। इस विमोचन कार्यक्रम में रांची लोक सभा से जीते व हारे हुए दोनों सांसदों व भाजपा-झामुमो-राजद से जुड़े नेताओं ने प्रमुखता से भाग लिया, तथा भाग उन छुटभैये नेताओं व भगवाधारियों ने भी लिया, जो छपास की बीमारी से ज्यादा प्रभावित रहते हैं, जो अपना चेहरा अखबारों में देखते ही दिव्य लोक में विचरण करने लगते हैं।
चलिए हम भी बधाई देंगे “शुभम संदेश” अखबार से जुड़े उन सारे संपादक मंडली, पत्रकारों के समूह तथा वे सारे कर्मचारी जिनका परिवार इस अखबार से जुड़ा हैं, रोजी-रोटी बंधी हैं, क्योंकि वर्तमान में आज किसी के लिए भी रोजी-रोटी जुटाना ही बहुत बड़ी समस्या है, ऐसे में जिन्हें भी इस प्रकार के कामों से किसी को रोजगार मिलती हैं, तो उसकी खुलकर प्रशंसा करनी चाहिए।
रांची की सबसे खराब बात यह है कि यहां छोटा अखबार हो या बड़ा अखबार, खुलकर एक दूसरे से द्वेष रखते हैं, तथा एक दूसरे से जुड़ी खबरों को अपने यहां स्थान नहीं देते, जबकि सबसे ज्यादा प्रेम सद्भावना की बातें रखने का धंधा यहीं करते हैं, लेकिन ये आपस में एक दूसरे से प्रेम नहीं करते, शायद यहीं कारण है कि मैंने कुछ बड़े अखबारों को आज पलटा तो उसमे इस अखबार “शुभम संदेश” के उद्घाटन से जुड़ी खबर ही नहीं हैं।
लेकिन जब से हमने अखबार का नाम “शुभम संदेश” सुना है। हमें आश्चर्य होता हैं और कभी- कभी सोचता हूं कि “शुभम संदेश” से जुड़े महान विद्वानों ने “शुभम संदेश” ही अखबार का नाम क्यों रखा? क्या इन्होंने संकल्प लिया है कि अपने अखबार में कोई अशुभ समाचार नहीं छापेंगे? या ऐसे ही कोई नाम रखना है, तो रख लिया, ठीक उसी तरह रांची से ही एक अखबार छपता है “खबर मंत्र”। लेकिन सच्चाई यह भी है कि उस अखबार में कोई मंत्र छपता ही नहीं और न ही कोई खबर, मंत्र की श्रेणी में आता है।
ठीक उसी प्रकार “शुभम संदेश” है, भाई आप तो अखबार है, आपको शुभ या अशुभ से क्या लेना-देना, आपको तो खबरें देनी है, तो क्या आप अपने नाम के अनुसार कोई अशुभ समाचार नहीं देंगे। अगर कोई कही घटना घट गई (भगवान न करें कि कोई ऐसी घटना घटे), दो बसों की कहीं कोई टक्कर हो गई, चार लोग मर गये, करीब 25-30 लोग घायल हो गये, तो क्या ये खबर आपके यहां नहीं छपेगी। आप इसे अशुभ समाचार मानकर, छापेंगे ही नहीं, क्योंकि आप ने तो अपने अखबार का नाम ही रखा है – “शुभम संदेश” ।
भाई अखबार का नाम ढूंढनेवाले साहेब चाहे आप कोई भी हो तथा इस नाम पर मुहर लगानेवाले महान व्यक्तित्व के धनी। आप दोनों महान है। जो मन किया, नाम रख दिया, ये तो वहीं बात हो गई, आंख का अंधा नाम नयनसुख। हमें लगता है कि जिन महान विद्वानों-राजनीतिज्ञों को आपने अपना अखबार मुक्त करने के लिए बुलाया होगा, उन्होंने भी इस पर चर्चा नहीं की होगी कि ये नाम कैसे आपने रखा, बस आये विमोचन किया, दिये जलाये, फोटो खिचायें और चल दिये होंगे।
इस देश व राज्य का दुर्भाग्य है कि कभी इसी देश में नाम रखने के लिए एक संस्कार होता था, जिसे नामकरण संस्कार के नाम से जाना जाता था, जो भारतीय 16 संस्कारों में से एक है, जो पूरी तरह से मिट गया है, अब तो लोग जो मन करता हैं, बच्चों का नाम औने-पौने रख लेते हैं, जिसका कोई अर्थ ही नहीं होता और न बच्चे वीर बालक-बालिकाओं जैसे होते है।
पूर्व में अखबारों के नाम क्या हो, इसके लिए भी माथापच्ची होती थी, पर अब तो इतने विद्वान हो गये है कि उन्हें इन सब से कोई मतलब ही नहीं होता, बस जो पाया रख दिया और लीजिये अखबार की दुनिया में कदम बढ़ा दिया, साथ ही अपने नाम के ठीक उलट, वो सब काम करने शुरु कर दिये, जो नाम आपको वो करने की इजाजत ही नहीं देता, इसलिए “शुभम संदेश” जी, झारखण्ड की जनता चौपारण से चाईबासा, उप राजधानी से राजधानी, कोयलाक्षेत्र से लौह नगरी, पलामू से संताल तक, देखेगी कि आप की कथनी और करनी में कितनी समानता है?