अपनी बात

रघुवर दास ओडिशा के राज्यपालः राजनीतिक पुरस्कार या झारखण्ड से सदा के लिए राजनीतिक विदाई, रघुवर समर्थक दुविधा में, अपने नेता को बधाई दें या चुप्पी साधे

झारखण्ड के पूर्व मुख्यमंत्री व भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रघुवर दास ओडिशा के राज्यपाल बनाये गये हैं। देर रात राष्ट्रपति भवन से इसकी जानकारी दी गई। जैसे ही राष्ट्रपति भवन से इसकी जानकारी मिली। भाजपा के बड़े नेताओं ने रघुवर दास को बधाई देनी शुरु कर दी। बधाई देनेवालों में भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी व गोड्डा सांसद निशिकांत दूबे प्रमुख हैं।

जबकि कई भाजपा नेता इस समाचार को सुनकर हतप्रभ भी हैं। वे यह नहीं सोच पा रहे हैं कि ये रघुवर दास के लिए पुरस्कार है या झारखण्ड से सदा के लिए राजनीतिक विदाई। वे यह भी नहीं सोच पा रहे हैं कि वे इसके लिए रघुवर दास को बधाई दे या चुप रहने में ही भलाई सोचे। सभी इस राजनीतिक दांव-पेंच को समझने व जानने में लगे हैं।

जो राजनीतिक पंडित है, वे तो सीधे समझ रहे है कि 2019 में सरयू राय ने रघुवर दास की जमशेदपुर पूर्व विधानसभा सीट पर पहली बार मिट्टी पलीद कर दी थी और यह दूसरी बार है जब प्रदेश व केन्द्र के नेताओं ने राज्यपाल बनाकर उनकी राजनीतिक कैरियर को ही सदा के लिए विराम लगाकर उनकी मिट्टी पलीद कर दी। साथ ही एक तरह से समझा दिया कि अब वे ओडिशा का राज्यपाल बनकर राजनीतिक विश्राम करें, ज्यादा झारखण्ड पर अब दिमाग न लगाएं।

राजनीतिक पंडितों की माने तो इसके लिए अगर कोई दोषी है तो वे स्वयं रघुवर दास है। जब उनकी तूती बोलती थी, तब वे किसी की नहीं सुनते थे। अगर उन्हें सुनना होता भी था तो वे सिर्फ कनफूंकवों की सुनते थें और इन्हीं कनफूंकवों के चक्कर में वे अपना मिट्टी पलीद करवाते रहे। जबकि उनके शासनकाल में भी झारखण्ड हित में कुछ अच्छे काम हुए हैं, जो झारखण्ड के लिए मील के पत्थर भी साबित हुए, पर जब उसका लाभ लेने को हुआ तो उनके नसीब में ये सब नहीं था, लेकिन कनफूंकवों ने उनकी तीन-तेरह कर दी, अपना उल्लू खुब सीधा किया।

आश्चर्य यह भी है कि जो भी उन्हें अच्छी सीख देता, वे उसी की बांट लगा देते। भला-बुरा करते और जितने गलत लोग थे, उन्हें गले लगाने में परहेज नहीं करते। इन्हीं गलत लोगों ने इनका खुब फायदा उठाया और आज ये कही के नहीं रहे। अब ये ओडिशा के राज्यपाल बनकर राजनीतिक विश्राम का आनन्द लेंगे और इनकी राजनीतिक मिलकियत अब झारखण्ड में दूसरे लोग संभालेंगे और इन्हीं की छाती पर मूंग भी दलेंगे।

ऐसे भी जो जैसा करता है, वैसा ही पाता है। राजनीतिक पंडित तो यह भी मानते है कि अगर रघुवर दास, सरयू राय के खिलाफ इतने मुखर नहीं होते और उनके टिकट काटने में इतनी दिलचस्पी नहीं दिखाते तो कम से कम रघुवर दास तो इस स्थिति में अवश्य होते कि वे आज नेता प्रतिपक्ष होते। कैबिनेट मंत्री का फायदा उठाते। राजनीतिक हैसियत होती, पर आज रघुवर दास क्या है? उन्हें खुद पता है।

भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष होने के बाद भी, वे जमशेदपुर पूर्व से बाहर नहीं निकल सकें। अब तो ओडिशा के राज्यपाल बने हैं। एक तमगा और उन्हें जरुर मिल गया। लेकिन इतनी जल्दी राजनीतिक विश्राम, मतलब उन्हें खुद पता लग गया होगा कि ये भाजपा के दिग्गज नेताओं ने उन्हें झारखण्ड से दूरी बनाने के लिए एक लॉली पॉप थमा दिया है, ताकि वे राजनीतिक रुप से खुश रहे और ज्यादा उछल-कूद न करें।

रघुवर दास हालांकि ओडिशा के राज्यपाल अवश्य बन गये, लेकिन जो उन पर भ्रष्टाचार के आरोप सरयू राय लगाते रहे हैं। वे क्या आरोप लगने खत्म हो जायेंगे। ऐसा फिलहाल दिख नहीं रहा, क्योंकि भ्रष्टाचार के मामले में सरयू राय किसी को छोड़नेवाले नहीं। अब सभी की निगाहें इस बात पर भी होगी कि रघुवर दास के राज्यपाल बन जाने के बाद, उनके चिरप्रतिद्वंदी सरयू राय क्या रोल अदा करते हैं?