सत्ता के मद में चूर रघुवर सरकार ने हमेशा लोकतंत्र को लहु-लूहान किया
झारखण्ड को बिहार से सीखना चाहिए, एक ओर बिहार हैं जो अपनी छवि सुधार चुका है, दूसरी ओर झारखण्ड है जो अपनी खरीद-फरोख्त व लोकतंत्र के चीर-हरण की संस्कृति को बरकरार रखा है, राज्यसभा की छः सीटों के लिए बिहार में हो रहे चुनाव में मात्र 6 प्रत्याशियों ने ही पर्चे दाखिल किये, सातवें ने पर्चा दाखिल ही नहीं किया, इसलिए यहां मतदान होना संभव नहीं हैं, सारे के सारे प्रत्याशी निर्विरोध निर्वाचित घोषित कर दिये जायेंगे, जबकि झारखण्ड में राज्यसभा की दो सीटों के लिए तीन की उम्मीदवारी बता रहा है कि यहां आनेवाले समय में क्या होनेवाला है?
झारखण्ड में भाजपा ने दो प्रत्याशी खड़े किये हैं, जबकि विपक्ष ने एक प्रत्याशी खडे किये हैं, विपक्ष ने जो प्रत्याशी खडे किये हैं, उसकी जीत में दम भी हैं, पर येन-केन-प्रकारेण एकमेव जीत का स्वाद चखने का स्वभाव लोकतंत्र की खुबसूरती पर बदनुमा दाग लगा चुका हैं, चूंकि पूर्व में साम-दाम-दंड-भेद की प्रणाली अपनाकर भाजपा ने दो सीटें राज्यसभा की जीत ली थी, तो उसे लग रहा है कि इस बार भी ऐसा ही होगा, पर इससे राज्य की छवि को कितना धक्का लगेगा, उसकी उसे परवाह नहीं।
हाल ही में पूर्व में हुए राज्यसभा के चुनाव पर, जिस प्रकार से चुनाव आयोग ने टिप्पणी की तथा राज्य सरकार को पत्र लिखकर दो लोगों पर कार्रवाई करने का आदेश दिया, वह बताता है कि पूर्व में यहां कैसे चुनाव संपन्न कराये गये हैं, उसके बाद भी राज्य सरकार द्वारा उसी ढर्रे को अपनाना सब कुछ बयां कर देता हैं। भाजपा के वरिष्ठ नेता हरेन्द्र प्रताप ने तो साफ कह दिया कि झारखण्ड में हर बार राज्य सभा का चुनाव लोकतंत्र को लहु-लूहान कर रहा हैं। अनैतिकता के सहारे सफलता की डगर खतरनाक हैं, पर इनके बयान को भी भाजपा के नेता हवा में उडा दे रहे हैं, जबकि ध्यान रहें, कभी हरेन्द्र प्रताप भाजपा के झारखण्ड प्रभारी भी रह चुके हैं।