रांची में छा गये राहुल, कांग्रेस को अभी बहुत मेहनत की जरुरत, हवा-हवाई नेताओं से नहीं भला होगा पार्टी का
आज का दिन राहुल गांधी का था, राहुल गांधी रांची में थे, उन्होंने खूब बोला और जनता ने उनकी बातें ध्यान से सुनी भी और उनके सुर में सुर भी मिलाया, ये संकेत था, कि रांची की जनता बदलाव के मूड में हैं, वो चाहती है कि राज्य में परिवर्तन हो, देश में परिवर्तन हो, क्योंकि सर्वाधिक नुकसान झारखण्ड में यहां के आदिवासियों, मूलवासियों और उनका हुआ, जिन्होंने 2014 में भाजपा को वोट देकर, अच्छे दिन की परिकल्पना की थी।
शायद यहीं कारण था कि जैसे ही राहुल गांधी ने कहा चौकीदार, भीड़ ने आवाज लगाई – चोर है। राहुल गांधी और जनता का इशारा सीधे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की ओर था। आम तौर पर राहुल गांधी के भाषण में भाजपा के बड़े नेताओं की तरह वो कशिश नहीं होता, पर इस बार राहुल गांधी ने बाजी मारी, और वो सारी बातें कही, जो जनता सुनना चाहती थी। उन्होंने देश के पीएम पर छींटाकशी से लेकर राफेल का राग भी छेड़ा, और खुलकर कहा की पीएम मोदी ने अनिल अंबानी के जेब में पैसे डाले, जो शर्म की बात है।
उन्होंने रांची की जनता को याद दिलाया, ये जल, जंगल, जमीन, आपकी है, किसी अंबानी या अडाणी की नहीं है, क्योंकि 2013 में उन्होंने ही एक भूमि अधिग्रहण कानून लाया था, जिसमें इस बात का उल्लेख था कि बिना आपसे राय लिये, जमीन का अधिग्रहण नहीं होगा, और किसी कारणवश लेना भी पड़ा तो उसके पहले सोशल ऑडिट की जायेगी, पर यहां की सरकार ने उस कानून को ही बदल डाला, आज आपकी जमीन छीनकर उद्योगपतियों को दे दी जा रही है।
उन्होंने कहा कि पीएम मोदी हमेशा झूठ बोलते हैं, वे कहते है कि जैसे हम चुनाव जीतेंगे, किसान का कर्जा माफ कर देंगे, पर वे कर नहीं पाते, जबकि हमने चुनाव जीतने के दो दिनों के अंदर ही तीनों प्रदेशों में किसानों का कर्ज माफ कर दिया। उन्होंने जनता को याद दिलाया कि उनकी सरकार आई तो वे गरीबों को न्यूनतम आय देने का प्रबंध करेंगे। ये तो राहुल गांधी का भाषण था, पर जिन बातों पर कांग्रेस को ध्यान देने की जरुरत है, उन बातों पर लगता है कि प्रदेश के बड़े नेताओं ने ध्यान नहीं दिया।
आज भी प्रदेश के अंदर नेताओं में सामंजस्यता का अभाव दिखा, नहीं तो राहुल गांधी की सभा में इससे भी ज्यादा भीड़ दिखती, क्योंकि लोग राहुल गांधी को सुनना चाहते थे, आपसी सिर–फुटोव्वल और बाहरी प्रदेश अध्यक्ष इसका मूल कारण बना। आज भी बहुत सारे पुराने कांग्रेसी नेताओं व कांग्रेस का समर्थन करनेवाले लोगों का यही कहना है कि अगर रघुवर दास बाहरी है, छत्तीसगढ़ी हैं तो हमारे प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार कौन से झारखण्डी है।
स्थिति यह है कि अभी तक पार्टी में संगठनात्मक चुनाव तक नहीं हुए, सारी चीजें उपर से थोप दी जा रही है, ऐसे में आप कांग्रेस को ऊंचाई तक कैसे ले जायेंगे? आज भी पूरा प्रदेश कार्यालय प्रभार पर चल रहा है, ऐसे में कांग्रेस कैसे मजबूत होगी और जो पदाधिकारी हैं भी, उसमें आदिवासियों और मूलवासियों की संख्या नगण्य हैं और न ही उन्हें भाव दी जाती है, कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रामेश्वर उरांव जैसे नेता उपर नहीं जाते, वे नीचे बरामदे में बैठकर ही सभी लोगों से मिलते है, वे तो बरामदा कमेटी से ही काम चला लेते हैं।
बड़े शर्म की बात है कि आज कांग्रेस की इतनी बड़ी सभा थी, पर किसी नेता ने अपनी ताकत के बल पर भीड़ लाने की कोशिश नहीं की, जितने लोग आये भी वे जनसंगठन से जुड़े लोग थे या कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता सुबोधकांत सहाय तथा कांग्रेस के जमीनी कार्यकर्ताओं द्वारा लाई गई भीड़ थी, जिनके दिलों में आज भी कांग्रेस धड़कता हैं।
कांग्रेस को चाहिए कि कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सुबोध कांत सहाय, रामेश्वर उरांव, सुखदेव भगत, थियोडोर किरो, फुरकान अंसारी आदि नेताओं के अनुभवों का लाभ लें, नहीं तो लोकसभा में सीटों के बंटवारों के बावजूद भी आप लाभ ले लेंगे, उसकी कोई गारंटी नहीं है, क्योंकि आप ये न भूले, आपकी लड़ाई एक बहुत ही ताकतवर राजनीतिक संगठन भाजपा से है।
बाहरी-भितरी जैसी कोई मुद्दा नही होता,राजनीति मे,नये जुडे लोगो ने जी-जान लगा कर भीड जुटाई,कांग्रेस कि बहुत दिनो बात या यु कहे झारखण्ड बनने के बाद ऐसा उत्साह देखा गया है,पुराने नेता लोग अच्छे युवा नेता को आगे आने नही देते, पुर्ब से ही गठबन्धन कर चुनाव लडना भी कांग्रेस कि जोश को ठंडा कर दिया है,प्रदीप बालमुचु तो स्थानिय थे,क्या कर पाय,संगठन पर ऐसे लोग है,जो पंचायत चुनाव भी नही जीत पाते,जो जीते भले वो नया प्रत्यासी हो या दुसरे दल से नया आया हो,अपना जिसका कुछ जनाधार हो टिकट देकर पार्टी नया रूप मे आ सकती है,जोड-तोड वाले नेता को हासिय पर भी धकेलना आवश्यक है।