“हरि बोल- हरि बोल” की तर्ज पर “रघुवर बोल- रघुवर बोल” बुलवाने में लगे हैं रांची के अखबार
कभी ओड़िशा जाइयेगा तो जरा ओड़िशा की राजधानी भुवनेश्वर से करीब 40 किलोमीटर दूर सनातन धर्मावलम्बियों की पवित्र धर्मस्थली पुरी जरुर जाइये, आप वहां जैसे ही रेलवे स्टेशन पर पहुंचेगे तो आपको बड़ी संख्या में लोग बड़े ही श्रद्धा भाव से “हरि बोल– हरि बोल” कहते मिल जायेंगे, यही नहीं आपको हर जगह श्रीकृष्ण भक्त “हरि बोल– हरि बोल” बोलते मिलेंगे।
ठीक इसी प्रकार झारखण्ड में भाजपा के कुछ लोग जिनकी संख्या मुट्ठी भर हैं, आजकल रघुवर स्तुति में लगे हैं, वे सभी से “हर–हर रघुवर, घर–घर रघुवर” बुलवाने पर तूले हैं, जिन्हें भाजपा का टिकट चाहिए, जिन्हें पीआर बनाना या बनवाना हैं, जिन्हें भविष्य में मंत्री बनना या किसी बोर्ड/निगम का अध्यक्ष बनना या बनवाना हैं, वे बड़े ही श्रद्धा भाव से “हर–हर रघुवर, घर–घर रघुवर” बोल रहे हैं।
और इसी श्रेणी में रांची से प्रकाशित कई अखबार भी आ गये हैं। वे भी बड़े ही श्रद्धा भाव से अपने पाठकों के मुख से “हर–हर रघुवर, घर–घर रघुवर” बुलवाने में लग गये हैं, पर इसके ठीक उलट जो पाठकों का एक बहुत बड़ा वर्ग हैं, वो इरिटेट होता जा रहा हैं, उनका कहना है कि अखबारों के मालिकों/संपादकों को सरकार से लाभ मिलता हैं, वे कुछ भी करें, पर पाठकों से “हर–हर रघुवर, घर–घर रघुवर” बोलवाने की प्रवृत्ति जो इधर निकल पड़ी हैं, उसका खामियाजा भाजपा के साथ–साथ उन अखबारों को भी भूगतना पड़ेगा, जो फिलहाल रघुवर भक्ति में ज्यादा डूब गये हैं।
ऐसे तो आप रांची का कोई अखबार या चैनल ले लें, सभी यहीं कर रहे हैं, पर अखबारों ने तो हद कर दी हैं, और उसमें भी स्वयं को झारखण्ड का सर्वाधिक प्रसारित कहा जानेवाला प्रभात खबर ने तो जैसे लगता है कि विश्व रिकार्ड बनाने में लगा है, जरा देखिये आज इन्हें दो पृष्ठों का विज्ञापन क्या मिल गया, ये शुरु हो गये रघुवर भक्ति में।
प्रथम पृष्ठ पर ही छः खबरें छाप दी और सारे खबरों से यह दिखाने की कोशिश की कि राज्य शिखर पर पहुंच रहा हैं, और इसका सारा श्रेय अगर किसी को जाता है तो वह सिर्फ और सिर्फ रघुवर है, रघुवर है, रघुवर है। इन खबरों को देख, एक पाठक विद्रोही 24.कॉम से चर्चा करते है कि अगर रांची के सुशांत ने पांच विकेट लेकर भारत को जीता दिया, तो इसमें रघुवर सरकार की क्या उपलब्धि है भाई।
जो इस खबर को खुलेंगी पांच फैक्ट्रियां 8000 को मिलेगी जॉब के साथ दिखला दिया। अगर प्रधानमंत्री मोदी ने पटमदा के बांगुड़दा में हुए कार्यों को सराहा तो उससे क्या हो गया, क्या बांगुड़दा की समस्याएं खत्म हो गई, पीएम मोदी तो बहुत बार, बहुत लोगों के नाम ले लेते हैं, उससे क्या हो जाता है? ये जो हर बात में या अच्छे काम में, जो सरकार को श्रेय देने, वह भी चुनाव के समय देने, की अनावश्यक बातों में होड़ लगी हैं, क्या ऐसे समाचारों से एक प्रतिष्ठित समाचार को बचना नहीं चाहिए?
राजनीतिक पंडित बताते हैं कि बचना तो चाहिए, पर बचेंगे कैसे, ये तो खुद स्वयं को सरकार के आगे, सरकार के चरणकमलों में मात्र चंद टूकड़ों के लिए स्वयं को नेस्तनाबूद करने को तैयार हैं तो आप और हम कर ही क्या सकते हैं? हां, जो आनेवाली पीढ़ी हैं, जो पत्रकारिता को अपना धर्म समझ रही हैं, उसके लिए यह सब खतरनाक सिद्ध होने जा रही हैं, क्योंकि वो आनेवाले समय में वही करेगा, जो आज वह देख रहा है।
अफसोस इस बात की है कि लोग ये सब चंद टूकड़ों के लिए कर रहे हैं, और सवाल रोजी–रोटी पर थोप दे रहे हैं, क्या रोजी–रोटी के लिए ईमान को दांव पर लगाया जा सकता है, क्या रोजी–रोटी इतनी बड़ी मुसीबत है कि उसके लिए ईमान का सौदा किया जा सकता है, हमें तो ऐसा नहीं लगता, दरअसल हमने स्वार्थ और लालच का दायरा इतना बढ़ा लिया है कि उस स्वार्थ और लालच के दायरे में हम अपने ईमान का सौदा सरकार के साथ कर बैठे।
ऐसे में, तो हमें वही करना पड़ेगा, जो सरकार करायेगी और जो उनके मातहत अधिकारी करायेंगे, तभी तो पृष्ठ संख्या 7 में मुख्यमंत्री के सचिव सुनील कुमार बर्णवाल को प्रधान सचिव बताकर उसकी न्यूज जिसमें कुछ भी नहीं हैं, सिवाय प्रचार–प्रसार के, उसे ऊपर में वह भी छः कॉलम में प्रकाशित कर दिया जाता है।
आम जनता ऐसे अखबारों से पूछ रही हैं कि क्या हम पांच रुपये में जो अखबार खरीदते हैं, वो सरकार के विज्ञापनों को पढ़ने के लिए, सरकार की आरती पढ़ने के लिए खरीदते हैं या जनसरोकार से संबंधित समाचार को पढ़ने के लिए, ये रांची की सारी अखबारें इस महत्वपूर्ण सवालों का जवाब जितना जल्दी दे दें, उतना ही अच्छा रहेगा।