अपराध

रांची प्रेस क्लब ब्लैकमेलर न्यूज 11 भारत के मालिक अरुप चटर्जी के पक्ष में नहीं करेगा आंदोलन

शुक्रिया रांची प्रेस क्लब, आपने ब्लैकमेलिंग के लिये कुख्यात न्यूज 11 भारत के मालिक अरुप चटर्जी के पक्ष में आंदोलन खड़े करने के फैसले से स्वयं को अलग कर लिया, अगर आप ऐसा फैसला नहीं लेते, तो राज्य की जनता के समक्ष मुंह दिखाने लायक भी नहीं होते, हालांकि आपके ही एक अधिकारी ने ब्लैकमेलिंग के आरोप में गिरफ्तार अरुप के पक्ष में अलबर्ट एक्का चौक पर कल आंदोलन करने का फैसला लिया है, पर उसने इसके लिए रांची प्रेस क्लब का बैनर न इस्तेमाल कर, झारखण्ड यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट का बैनर इस्तेमाल करने का फैसला लिया है, तथा अपना नाम जावेद अख्तर बताया है।

जावेद अख्तर स्वयं को झारखण्ड यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट का महानगर अध्यक्ष बता रहा है। इस महानगर अध्यक्ष ने ब्लैकमेलर अरुप के पक्ष में जो बयान जारी किया है, उस बयान को देख कोई भी हंसे बिना नहीं रह सकता। मैंने इस संबंध में जब इस झारखण्ड यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट के बड़े नेताओं को फोन जैसे रजत कुमार गुप्ता के मोबाइल पर रिंग किया, तो उन्होंने फोन उठाया ही नहीं।

सवाल उठता है कि पत्रकारों को बुद्धिजीवी समूह में रखा जाता है। अब झारखण्ड यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट ही बताएं, जैसा कि सूत्र बता रहे हैं कि इस यूनियन के जो कर्ता-धर्ता शिव कुमार अग्रवाल और रजत कुमार गुप्ता है, इनलोगों ने अपने महानगर के अध्यक्ष के इस फैसले पर सहमति जता दी है। रजत कुमार गुप्ता ने ब्लैकमेलर अरुप चटर्जी के पक्ष में सारे पत्रकारों को आहवान भी किया कि वे इस आंदोलन में शामिल हो।

अब झारखण्ड यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट के बड़े-बड़े नेता ही बताये कि जब भारतीय प्रशासनिक सेवा की एक बड़ी अधिकारी पूजा सिंहल पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे और खूंटी में कार्यरत भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी पर यौन शोषण के आरोप लगे तो किसी भी भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी ने उनके पक्ष में आंदोलन करने की बात कही या उनका समर्थन किया। नहीं न।

तो फिर आप अपने पत्रकार ग्रुप में से ब्लेकमेलर के रुप में विख्यात अरुप चटर्जी, जिसे धनबाद पुलिस ने न्यायालय के आदेश पर गिरफ्तार किया, उसके लिए आप किस मुंह से आंदोलन करने की बात कर रहे हैं। जब आप आंदोलन करेंगे तो आप जनता के सामने कौन सा मुंह लेकर जायेंगे। यह मुंह लेकर जायेंगे कि वे भी इस भ्रष्टाचार का समर्थन करते हैं, ब्लैकमेलिंग का समर्थन करते हैं, आनेवाले पत्रकारों को क्या संदेश देंगे कि ब्लैकमेलिंग करो, यूनियन तुम्हारे साथ हैं। अरे थोड़ा सा भी शर्म हैं, तो कही डूब मरो, या अपने आंदोलन पर पुनर्विचार करो।

इधर विद्रोही24 ने जब रांची प्रेस क्लब के अध्यक्ष संजय मिश्र से बात करनी चाही तो उन्होंने फोन ही नहीं उठाया, जबकि विद्रोही24 ने सुबह से लेकर रात तक यानी आधा दर्जन बार उन्हें कॉल किया, जिसका प्रमाण विद्रोही 24 के पास है। बताया जाता है कि रांची प्रेस क्लब में भी ब्लैकमेलर अरुप चटर्जी को समर्थन दिया जाये या नहीं, इसको लेकर चर्चाए हुई थी।

जिस पर ज्यादातर रांची प्रेस क्लब के अधिकारियों ने इस पर नकारात्मक ढंग से प्रतिक्रिया व्यक्त की और इसे गलत बताया। ज्यादातर रांची प्रेस क्लब के अधिकारियों ने कहा कि अरुप चटर्जी कोई अच्छे कार्यों के लिए, देश-सेवा के लिए जेल नहीं गया, बल्कि ब्लैकमेलिंग के आरोप में जेल गया हैं। इसलिए ऐसे लोगों के लिए सड़कों पर उतरना, पत्रकारिता में गंदे आचरणों को बढ़ावा देना ही है।