झारखण्ड में लोकतंत्र के लिए खतरा बनकर उभर रहे हैं रांची के अखबार और चैनल, विपक्ष परेशान
जब से मीडिया में सरकार का दखल बढ़ा है, मीडिया के मालिक और कथित संपादकों ने सत्ता के आगे अपना मस्तक झूकाने व उनके चरणोदक हृदय से ग्रहण करने का कार्य प्रारम्भ किया है, देश में लोकतंत्र खतरे में पड़ गया है, इसे सभी को स्वीकार करना होगा। पूर्व में चुनाव के समय पेड न्यूज चला करते थे।
अब तो झारखण्ड में आसन्न विधानसभा चुनाव को देखते हुए अभी से ही पेड न्यूज का कार्यक्रम चल पड़ा है। देखने में आ रहा है कि राज्य के कई अति प्रतिष्ठित अखबारों ने मीडिया इन्शियेटिव के नाम से वह भी संपादकीय पृष्ठों पर समाचार के प्रारुप में विज्ञापन छापने शुरु कर दिये हैं, जिसको लेकर राजनीतिक पंडितों में स्पष्ट गुस्सा देखा जा रहा है।
राजनीतिक पंडितों का कहना है कि अरे पहले अखबार का प्रथम पृष्ठ बेचा, तो समझ में आया चलो मजबूरी है, अब तो संपादकीय पेज को भी मुंहमांगी विज्ञापन की रकम से भर दिया तो देश व समाज का भला कैसे होगा? आम तौर पर कई अखबार जिस दिन संपादकीय पृष्ठ नहीं देते, उस दिन वे उस संपादकीय पेज को विशेष पृष्ठों से भरते हैं, पर जब से रांची के कई अखबारों ने सरकारी विज्ञापनों से संपादकीय पृष्ठों को भरना शुरु किया, सभी अखबारों की प्रतिष्ठा उसी दिन धूल में मिल गई।
राजनीतिक पंडितों का कहना है कि यहीं हाल रहा तो लगता है कि आनेवाले विधानसभा चुनाव में विपक्षी दलों को अखबारों व चैनलों में उचित स्थान ही नहीं मिलेगा। पेड न्यूज के चक्कर में बड़े–बड़े अखबारों व चैनलों के संपादकों और मालिकों का समूह अपने सभी पृष्ठों व स्लॉटों को बेच देंगे और विपक्षी दल के नेता अपना स्थान पाने को तरस जायेंगे।
जिससे राज्य की सही वस्तु–स्थिति का यहां के मतदाताओं का पता नहीं चलेगा और एक प्रकार से सारे मतदाताओं का इस प्रकार से मानसिक शोषण किया जायेगा कि लोग समझ लेंगे कि वर्तमान सरकार का कोई विकल्प ही नहीं और लोग एकतरफा वोट गिरायेंगे, जिससे सत्ता में शामिल लोग, फिर से पुनः सत्ता में आयेंगे, जो एक सफल लोकतंत्र के लिए घातक है।
राजनीतिक पंडितों की मानें तो इसके लिए जन–जागरुकता चलाना जरुरी है, लोगों को बताना अब जरुरी है कि जो अखबार वे पढ़ रहे हैं या जो चैनल देख रहे हैं, दरअसल वे अखबार व चैनल न होकर सत्ता पक्ष के गुलाम हो चुके हैं, वे जनहित को छोड़ सरकार हित में पत्रकारिता कर रहे हैं और उसके बदले मोटी रकम प्राप्त कर रहे हैं, ये सत्तापक्ष को तो खुब स्थान दे रहे हैं पर विपक्षियों की आवाज को रोकने का भी काम कर रहे हैं, तथा जनता को जो सत्य जानने का अधिकार है, उस पर भी अंकुश लगा रहे हैं।
यानी जिसके पास जितना पैसा, उसका सीट उतना पक्का और जिसके पास पैसे का अभाव, वो सत्ता से दूर है जाव, वाली कहावत चरितार्थ होने जा रही है, आश्चर्य हैं कोई बोलनेवाला नहीं, कोई कलम बेच रहा है, कोई बूम बेच रहा हैं तो कोई पूरा का पूरा अखबार व चैनल ही सरकार के आगे गिरवी रखने को बेताब है, ऐसे में लोकतंत्र कैसे सुरक्षित रहेगा? इस पर चिन्तन करना जरुरी है।
वर्तमान में जो स्थितियां बन रही हैं, वो झारखण्ड के लिए खतरनाक है, इस खतरनाक स्थिति से उबारने के लिए राज्य की जनता को जागरुक होना होगा, वे अखबारों व चैनलों के मायाजाल में फंस कर आनेवाले समय में विधानसभा में वोट करेंगे, या जो पांच वर्षों तक झेले हैं, उसे ध्यान में रखकर वोट करेंगे, ये निर्णय आज ही करना है, क्योंकि जब आप निर्णय देर से करेंगे, तो फिर वह निर्णय प्रभावित होगा।
भूलिये मत इस राज्य में किसान आत्महत्या कर रहे हैं, झारखण्ड के बेरोजगार युवकों का हक मारा जा रहा है, लड़कियां दुष्कर्म की शिकार हो रही है, खुद सरकार बहादुर हाथी उड़ाते हैं, मोमेंटम झारखण्ड का क्या हाल है, आप सभी जानते है। राज्य में तकनीकी विश्वविद्यालय का क्या हाल हुआ, कृषि अनुसंधान केन्द्र का क्या हुआ, रांची में पांच जगह ओवरब्रिज बनना था, उसका क्या हुआ, हरमू नदी का क्या हुआ?
ऐसे कई घटनाएं हैं, जो जनता की नींद उड़ा दी हैं, पर अखबारों व चैनलों को देखिये, जिन्हें सरकार को जगाने का काम था, वे अपने संपादकीय पृष्ठ को भी विज्ञापन के नाम पर कुर्बान कर दे रहे हैं, क्या ऐसे अखबारों व चैनलों से झारखण्ड का भला होगा? इसका फैसला आज ही करिये, पीत पत्रकारिता के खिलाफ आवाज उठाइये।