अपनी बात

हेमन्त ने रांची में हो रही पत्रकारिता पर चिंता जताई, वहीं सीएम रघुवर को आराम करने की दी सलाह

23 मई को प्रोजेक्ट बिल्डिंग में राज्य के मुख्यमंत्री रघुवर दास संवाददाता सम्मेलन कर रहे थे। इस संवाददाता सम्मेलन में उन्होंने झामुमो नेता पर कटाक्ष करते हुए कहा था कि जो नेता बाप, भाई-भाभी का नहीं हुआ, वह राज्य की जनता का क्या होगा? मुख्यमंत्री रघुवर दास की यह प्रतिक्रिया गोमिया और सिल्ली विधानसभा में एनडीए के प्रत्याशी की होनेवाली करारी हार को देखते हुए आई है।

अब सवाल उठता है कि जिस प्रकार की भाषा राज्य के मुख्यमंत्री अपने विरोधियों के लिए करते हैं, अगर उसी भाषा में राज्य के अन्य विपक्षी दलों के नेता उन्हें भी जवाब देने लगे और ये कहे कि जो नेता अपनी पत्नी का नहीं हुआ, अपने पूरे परिवार का नहीं हुआ, वह देश का क्या होगा? तब कैसा लगेगा? हमें इस बात की खुशी है कि अभी तक राज्य के किसी विपक्षी दल के नेताओं ने मुख्यमंत्री रघुवर दास को, उसी भाषा में जवाब नहीं दिया, जिस भाषा में वे बाते करते हैं।

याद करिये, एक समय था, भाजपा के नेताओं, कार्यकर्ताओं की भाषा, बोलचाल की इतनी तारीफ होती थी कि लोग कहा करते थे कि भाषण सुनना हो तो भाजपा के नेताओं का सुनिये, एक समय जनसंघ और बाद में भाजपा के नाम से जानी जानेवाली यह पार्टी अपनी मर्यादित भाषा और आचरण के लिए पूरी दुनिया में विख्यात थी, जबकि आज स्थिति यह है कि केन्द्र से लेकर राज्य तक अब इस पार्टी में गिने-चुने ही नेता बचे है, जिनकी भाषा को मर्यादित कहा जा सकता है, ज्यादातर तो अमर्यादित टिप्पणी के लिए ही जाने जा रहे हैं।

स्थिति तो इनकी यह हो गई है कि ये विपक्षी दलों के नेताओं को देखना ही नहीं पसन्द करते और अपनी जीत के लिए किसी हद तक नीचे गिर सकते है, जिसमें 23 मई का वह बयान भी शामिल हैं, जो मुख्यमंत्री रघुवर दास ने अपने विरोधी दल के नेताओं के लिए दिया। इससे अमर्यादित भाषा दुसरी कुछ हो भी नहीं सकती, और रही सही कसर निकाल दिया, रांची से प्रकाशित एक अखबार ने, जिसने मोटे-मोटे अक्षरों में इसी बयान को प्रमुखता देकर, मुख्यमंत्री रघुवर दास की जय-जय कर दी।

अब सवाल उठता है कि क्या कोई भी अखबार, किसी भी नेता के गलत अमर्यादित बयान, जिससे किसी की भावना को ठेस पहुंचती है, उस बयान को प्रमुखता दे सकता है, उत्तर होगा – नहीं, पर रांची में एक नई पत्रकारिता का जन्म हुआ है। हमें लगता है कि झारखण्ड के मुख्यमंत्री और रांची के अखबारों के संपादकों ने कबीर के उस दोहे को नहीं पढ़ें होंगे –

बोली एक अनमोल है, जो कोई बोले जानि। हिये तराजू तौलि के, तब मुख बाहर आनि।।

ऐसे लोगों को शर्म आनी चाहिए, जिन्होंने भाषा और बोल-चाल को इस प्रकार प्रभावित किया है, जिससे हमारे समाज में एक नई अमर्यादित संस्कृति का जन्म हो रहा है, जिससे राज्य की संस्कृति खतरे में हैं।

इधर मुख्यमंत्री रघुवर दास के इस बयान से नाराज, नेता प्रतिपक्ष हेमन्त सोरेन ने बड़े ही नपे-तुले में मुख्यमंत्री रघुवर दास और उस अखबार को जवाब दिया, जिन्होंने मर्यादा को तार-तार करके रख दिया है। नेता प्रतिपक्ष हेमन्त सोरेन ने कहा कि “मुख्यमंत्री जी भाजपा की घर में झाँकने की ओछी परम्परा को आगे बढ़ा रहे हैं। आज प्रदेश के मुखिया ने मेरे परिवार को लेकर बेहद ओछी टिप्पणी की – जिसे एक अख़बार ने बड़ी ही प्रमुखता से प्रथम पृष्ठ पर जगह दी। अफ़सोस है कि महंगाई/बिजली/पानी की जगह सरकार की जी-हुज़ूरी को प्रमुखता मिल रही है।

लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ को सत्ता की ऐसी चाटुकारिता करते देखना शर्मनाक है। मैं भाग्यशाली था की बाबा के रूप में संघर्ष, विकासत्मक राजनीति एवं झारखण्डियत के सर्वमान्य शिक्षक मुझे घर में मिले। आज मैं उन्हीं के द्वारा परिकल्पित सोना झारखंड के सपने को लेकर आगे बढ़ रहा हूँ। मुझे गर्व है उस संघर्षी परिवार का हिस्सा होने पर जिसे हर मूलवासी, शोषित, दलित अपना मानते हैं…और एक बात CM साहब – पूरा झारखण्ड मेरा घर है और हरेक झारखण्डी मेरा परिवार, झारखण्ड का बेटा हूँ मैं, पर आपको ये बातें समझ नहीं आती, ये पूरा झारखण्ड जानता है – आपको आराम की सख़्त आवश्यकता है ताकि आप अपने कथनों पर मंथन कर सकें।”