याद रखिये, पवित्र उद्देश्य से प्रारम्भ किया गया छोटा काम भी विशाल और महान बन जाता है
पवित्र उद्देश्य से प्रारंभ किया गया छोटा काम भी कैसे विशाल और महान बन जाता है, इसका उदाहरण है एसइ, एसइसी एंड इसीओ रेलवेज इम्पलाइज कोपरेटिव क्रेडिट सोसाइटी लि. कोलकाता। जिसकी स्थापना परमहंस योगानन्द के पिता श्री भगवती चरण घोष ने रेलकर्मियों की सुविधा के लिए अरबन बैंक के बतौर 1909 में की थी। सुखद आश्चर्य यह है कि आज की तारीख में इसकी कार्यशील पूंजी 1,757 करोड़ रुपये है।
यह भी कम सुखद नहीं कि यह कोपरेटिव सोसाइटी पिछले 111 वर्षों से सफलतापूर्वक चल रही है। फिलहाल यह सोसाइटी दक्षिण पूर्व रेलवे के संपूर्ण कार्यक्षेत्र में हजारों कर्मियों की सेवा कर रही है। सोसाइटी के संस्थापक के रुप में उनके योगदान को याद करते हुए सोमवार को गार्डर रीच रोड कोलकाता स्थित इस सोसाइटी के मुख्यालय के समक्ष स्व. भगवती चरण घोष की कांस्य प्रतिमा का अनावरण किया गया।
शारदीय नवरात्र के अवसर पर 19 अक्टूबर को इस प्रतिमा का अनावरण भगवती बाबू के परपोते सोमनाथ घोष और उनकी धर्मपत्नी सरिता घोष ने किया। अपने भाषण में सोमनाथ घोष ने भगवती चरण घोष के संत और निस्वार्थ स्वभाव की बात की और कैसे उन्होंने क्रिया योग की शिक्षाओं के प्रसार के लिए परमहंस योगानन्द की अमेरिका यात्रा को भी वित्तपोषित किया, इसकी भी चर्चा की।
दुनिया भर में प्रसिद्ध अपनी अमर आध्यात्मिक आत्मकथा ‘योगी कथामृत’ के लेखक परमहंस योगानन्द ने भारत में योगदा सत्संग सोसाइटी ऑफ इंडिया 1917 में और अमेरिका के लांस एंजिल्स में सेल्फ रियलाइजेशन फेलोशिप की स्थापना 1920 में की थी, जिसका भी शताब्दी वर्ष मनाया जा रहा है। इस दौरान परमहंस योगानन्द की आत्मकथा “योगी कथामृत” के उस अंश का भी जिक्र किया गया, जिसमें कहा गया है कि भगवती बाबू ने इससे कोई पैसा या लाभ नहीं लिया।
स्वामी अच्युतानन्द ने पिता-पुत्र द्वारा स्थापित दो अलग-अलग सोसाइटियों का साम्य बताते हुए कहा कि यह अपने आप में एक अद्भुत प्रयोग था, जिसके तहत पिता भगवती चरण घोष द्वारा रेलकर्मियों के लिए स्थापित क्रेडिट कोपरेटिव सोसाइटी और पुत्र परमहंस योगानन्द द्वारा मानवता की सेवा के लिए स्थापित योगदा सत्संग सोसाइटी ऑफ इंडिया सौ वर्षों से अधिक समय से अपने नीति-सिद्धांतों के तहत सफलतापूर्वक चल रही है।