प्रख्यात प्राध्यापक प्रो. सुभाष चंद्र मिश्र की लिखित पुस्तक कोयल की धारा का डालटनगंज में आयोजित एक भव्य कार्यक्रम में लोकार्पण
कल मैं डालटनगंज में था। अवसर था – पलामू के बहुमुखी प्रतिभा के धनी, प्रख्यात प्राध्यापक, साहित्यकार, कितनी विभूतियों से अलंकृत करुं, समझ नहीं आ रहा, प्रो. सुभाष चंद्र मिश्र द्वारा लिखित पुस्तक कोयल की धारा के लोकार्पण का। चूंकि दिन शनिवार हमारे लिए काफी मुश्किल का होता है, क्योंकि उसके ठीक दूसरे दिन रविवार होता है और रविवार के दिन प्रातःकाल की रांची में योगदा सत्संग मठ में होनेवाली आध्यात्मिक सभा हमें अपनी ओर खींचती हैं। लेकिन इसके बावजूद भी मैंने समय निकाला और अपने स्वाभावानुसार एक बैग में जरुरत की चीजें रखी और डालटनगंज के लिए निकल पड़ा, जिसकी जानकारी मैंने सिर्फ अपने प्रिय पलामू के अविनाश को दी। हमें लगा कि वो पलामू में होगा, लेकिन वो पलामू में नहीं था, उसकी उपस्थिति हमें खली।
ऐसे भी पलामू मे हमनें छः माह अपनी सेवा दी है। जब ईटीवी बिहार में था। उस वक्त जनवरी से लेकर जुलाई माह 2005 तक मैं पलामू में ही था और इन्हीं थोड़ी सी समय में मैं कुछ दिन प्रो. सुभाष चंद्र मिश्र व उनके परिवार से हमारी अंतरंगता बढ़ी। उनके दो बेटे भी बहुत ही संस्कारित और सुसंस्कृत हैं। जब भी मिलें – आत्मीयता से मिले। हमें याद हैं कि प्रभात जी से हमारी पहली मुलाकात दिल्ली दैनिक जागरण के कार्यालय में थोड़ी ही देर के लिए हुई थी, लेकिन वो मुलाकात बड़ी ही दिलचस्प रही।
पूरा परिवार ही आत्मीय है। कोई हो। ये सभी से आत्मीय भाव से मिलते हैं। जिनका ऋणी पूरा पलामू हैं। प्रो. सुभाष चंद्र मिश्र, इस उम्र में भी किताबें लिख रहे हैं। यह सुनकर हमें बड़ा ही आश्चर्य हुआ। हालांकि सच्चाई यह है कि उनके व्यक्तित्व और कृतित्व पर भी किताब लिखी जा सकती है। प्रयास इस पर होनी चाहिए।
चूंकि मेरे पास समय बहुत ही कम था। उस पर से इन्द्र भगवान की कृपा कार्यक्रम स्थल तक पहुंचाने में हमें अच्छी तरह भिंगो दिया। चूंकि अब हमारी तबियत भी ठीक नहीं रहती। कई बिमारियों ने हमें घेर रखा है। मैं अब कहीं जाना भी पसन्द नहीं करता। लेकिन प्रो. सुभाष चंद्र मिश्र के निमंत्रण पर वहां नहीं पहुंचना हमारे लिये पाप हो जाता, क्योंकि उनके प्रेम और आशीर्वाद हमारे उपर भी बरसे हैं, जब मैं छः महीने पलामू में था। भला उस ऋण को मैं कैसे भूल सकता हूं?
कार्यक्रम भव्य था। उनके परिवार के लोगों ने अच्छी व्यवस्था की थी। चूंकि कल प्रो. सुभाष चंद्र मिश्र जी का जन्मदिन था। यानी सोने पे सोहागा का दिन था। सभी ने मिलकर एक पंथ दो काज किया और सही में कल का दिन आनन्द वर्षा करा रहा था। एक वक्त तो लगा कि भगवान इन्द्र गुस्से में हैं। वे बड़ी वेग से अपनी उपस्थिति कार्यक्रम स्थल पर दर्ज कराना चाह रहे थे। मैं जब अंदर से बाहर गया। उनके मन को टटोलना चाहा।
पता चला कि सभी को निमंत्रण मिला है, लेकिन भगवान इन्द्र को ही नहीं। वह भी तब जबकि लोकार्पण कोयल की धारा नामक पुस्तक की थी। भगवान इन्द्र का कहना था कि कोयल को प्राण देने में उनकी प्रधानता रही है। इसलिए उन्हें क्यों नहीं बुलाया गया? इन्द्र तो ऐसे भी स्वभाव से गुस्सैल है। लेकिन विद्रोही के गुस्सैल प्रभाव से भी वाकिफ थे। जल्द ही शांत हो गये और सुक्ष्म भाव में जाकर अंदर अपने काफिले के साथ बैठ गये। कोयल की धारा के लोकार्पण में चार चांद लग गये।
मैं तो ऐसे भी स्वाभावानुसार किसी भी कार्यक्रम में आगे या सबसे पीछे बैठने से जी चुराता हूं, मध्यम वाली पंक्तियां अपनाता हूं। उससे हर चीजें स्पष्ट हो जाती है। सभी प्रसन्न थे। तालियों में कहीं कोई कंजूसी नहीं। सभी के चहेते, सभी को आनन्द देनेवाले, सभी पर खुशियां बरसानेवाले प्रो. सुभाष चंद्र मिश्र की पुस्तक का लोकार्पण था। बड़े-बड़े लोग उपस्थित थे। झारखण्ड विधानसभाध्यक्ष इंदर सिंह नामधारी, पूर्व मंत्री के एन त्रिपाठी, जीएलए कॉलेज के पूर्व प्राचार्य दया शंकर श्रीवास्तव, भौतिक शास्त्र के पूर्व विभागाध्यक्ष कमलाकांत मिश्र, मेदिनीनगर के प्रथम महापौर अरुणा शंकर मौजूद थी। उपस्थित गण्यमान्य लोगों की संख्या भी प्रशंसनीय थी।