अपनी इमेज ठीक करने को बेचैन हरिवंश ने शुरु की चाय की राजनीति, आंदोलनरत सांसदों ने चाय पीने से किया इनकार
जनाब हरिवंश उर्फ हरिवंश नारायण सिंह, हमारे देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी से इतने प्रभावित है कि आज अहले सुबह मोदी ब्रांड की चाय लेकर पहुंच गये, उन सांसदों से मिलने, जो कल से दिल्ली में संसद भवन के समक्ष गांधी प्रतिमा के पास धरने पर बैठे है। जनाब चाय पिलाने गये थे, पर ये क्या? सासंदों ने तो चाय पीने से ही इनकार कर दिया। इसलिए मैंने कहा – वेलडन सांसदों, आपने जनाब के अंदर चल रही राजनीतिक सोच को पूर्ण विराम लगा दिया, उनकी पोल पट्टी खोल दी, क्योंकि अगर आप चाय पी लेते, तो फिर ये देश के उन किसानों का अपमान होता, जो फिलहाल इस कृषि विधेयक के खिलाफ मोर्चा खोले हुए हैं।
चाय पिलाने पहुंचे हरिवंश के इस नाटक पर आम आदमी पार्टी के नेता संजय सिंह ने ठीक ही कहा कि वे कल रात से धरने पर बैठे हैं, देश के करोड़ों किसानों को न्याय दिलाने के लिए, देश के करोड़ों किसानों के खिलाफ जो काला कानून कृषि विधेयक के नाम पर लाया गया है, उसके खिलाफ। अभी आज सुबह डिप्टी चेयरमैन साहेब आये थे, उप सभापति जी आये थे, हमने उनसे भी कहा कि उस दिन नियम कानून को ताक पर रखके किसान विरोधी बिल संसद में पास कराया गया, जबकि उस वक्त बीजेपी के पास बहुमत नहीं था, हमलोग वोटिंग मांगते रहे, आपने वोटिंग नहीं कराई। यहां व्यक्तिगत रिश्ते निभाने का सवाल नहीं, हम यहां बैठे है किसानों के लिए, किसानों के साथ धोखा हुआ है, और यह पूरे देश ने देखा है, 130 करोड़ जनता ने देखा है।
कमाल है, हमारे देश में पत्रकार से नेता बने लोगों की क्या सोच है? जहां उन्हें ईमानदारी बरतनी है, जहां उन्हें देश हित में फैसले लेने है, जहां चरित्र की परीक्षा होनी है, वहां वे चरित्र की परीक्षा देने में चूक जाते हैं, पर जहां चरित्र की कोई परीक्षा ही नहीं होनी है, वहां चरित्र दिखाने के लिए चाय लेकर पहुंच जाते है, क्या सांसदों को डिप्टी चेयर मैन की चाय की जरुरत है या कृषि विधेयक को लेकर जो उप-सभापति ने गलतियां की, उसे सुधारने की। हरिवंश लगता है कि सोच रहे हैं, कि वे ऐसा करेंगे तो देश में एक मैसेज जायेगा कि वे महान है, पर उन्हें पता नहीं कि देश सब समझ चुका है कि चाय की राजनीति देश के लिए कितना घातक है।
सच्चाई है कि हरिवंश ने अब तक की जितनी कमाई की थी, वो सारी कमाई उनकी लूट चुकी है, वे सही मायनों में बर्बाद हो चुके है। कहा भी गया है कि “धन गया, कुछ नहीं गया। स्वास्थ्य गया कुछ गया पर चरित्र गया तो सब चला गया।” शायद हरिवंश भूल गये, कि उसी संसद में कभी जीएमसी बालयोगी और अटल बिहारी वाजपेयी जैसे लोग भी रहे हैं। शायद हरिवंश भूल गये कि उसी संसद में विपक्ष वोटिंग-वोटिंग चिल्ला रहा था, पर अटल बिहारी वाजपेयी ने कह दिया – “अध्यक्ष महोदय, हम जा रहे हैं, राष्ट्रपति जी को अपना इस्तीफा सौंपने।” जीएमसी बालयोगी लोकसभाध्यक्ष अगर चाहते तो वो भी वोटिंग कर सकते थे, पर धर्मसंकट हो जाता, लेकिन उन्होंने संसद को धर्मसंकट में नहीं डाला और उन्होंने कह दिया, सरकार एक वोट से गिर गई, पर आप रहते तो लगता कि उस वक्त अटल जी की सरकार बच जाती।
आप सरकार बचा लेते, जैसे कृषि विधेयक के दौरान सारी संसदीय परम्पराओं को आपने चूना लगा दिया, लेकिन आज आपकी देश में किस प्रकार का सम्मान है, जरा पता लगा लीजिये। देश का किसान सड़कों पर है। विपक्ष आपसे बात करना नहीं चाहता, चाय पीना तो दूर, क्योंकि मैंने विजयूल देखा है, कई सांसद आपसे बात करने को तैयार नहीं। रही-सही जो पत्रकार मूल्यों की पत्रकारिता करते हैं, उन्होंने तो पहले से ही किनारा कर लिया। अब आपके पास क्या है? संसद है, मोदी है, धन-दौलत, ऐश्वर्य है, पर आपके पास एक ऐसा इन्सान नहीं, जिसने जिंदगी में कभी उसूलों से कोई समझौते ही नहीं किये। चलिये आपकी जिंदगी आपको मुबारक।
हरिवंश का अपमान, बिहार का अपमान कैसे हो गया?
इधर देख रहा हूं कि भाजपा के सांसद कुछ ज्यादा ही उछल रहे हैं। एक केन्द्रीय मंत्री जो अधिवक्ता भी है। आपके अपमान (जो अपमान है ही नहीं) को बिहार के अपमान से जोड़ दिया। भाई आपका अपमान, बिहार का अपमान कैसे हो गया? क्या आप ही बिहार है क्या? पीएम मोदी ने आपके चाय वाली राजनीति पर कुछ ट्विट किया है, तो उससे क्या होगा, वे तो आपकी संसद में कुछ विशेष शब्दों से आपकी आरती भी उतार चुके हैं, पर उससे आम आदमी को क्या? याद रखियेगा – एपीजे अब्दुल कलाम को राष्ट्रपति के कारण नहीं, उन्हें एक बेहतर इन्सान के कारण सम्मान दिया जाता है, पर दो दिन पहले की आपके द्वारा की गई संसद में घटना ने बता दिया कि आपके मन में और भी कुछ चल रहा है, आप कुछ विशेष पद पाना चाहते है, मैंने आपको अग्रिम बधाई भी दे दी हैं, पर याद रखिये जनता के कोप से बचिये, क्योंकि जनता के कोप से आज तक कोई नहीं बचा।
यकीन मानिये, अगर हरिवंश विपक्ष में या पत्रकारिता धर्म निभा रहे होते तो वे भी इस बिल का विरोध कर रहे होते
मैं यह भी जानता हूं कि आपके आउट ऑफ वे जाकर नीतीश की, की गई भक्ति ने आपको राज्यसभा तक पहुंचाया। आज आप उप-सभापति भी है, लेकिन ये भी जानता हूं कि अगर आप किसी अखबार में संपादक होते, और आपको पूर्ण स्वतंत्रता होती तो, आप भी आज किसानों के हित में खड़े होते। मैं यह भी जानता हूं कि अगर नीतीश, मोदी के खिलाफ होते तो आज आप कृषि विधेयक को पास कराने की जहमत नहीं उठाते, आप भी इस कृषि विधेयक के खिलाफ होते। खुलकर आप चर्चाएं करा रहे होते, क्योंकि मैंने आपको पत्रकार के रुप में देखा है, लेकिन आज जो देख रहा हूं तो मुझे खुद के पत्रकार होने पर भी घृणा सी होने लगी है। आखिर आपने ये क्या अपना गत कर लिया कि आप चाय लेकर पहुंचे और लोग आपकी चाय पीने से भी इनकार कर रहे हैं। सोचिये, चिन्तन करिये। कहा भी गया है – धर्मों रक्षति रक्षितः अर्थात् जो धर्म की रक्षा करता है, धर्म उसकी रक्षा करता है।