रांची रेलवे कॉलोनी की सड़कें बदहाल, रेलवे के वरीय अधिकारियों को इससे कोई मतलब नहीं
रांची जंक्शन के दक्षिण में हैं रेलवे कॉलोनी, जहां बड़ी संख्या में रेलवे में कार्य करनेवाले टीटीई, स्टेशन मास्टर, गार्ड, व फोर्थ ग्रेड के रेलवे कर्मचारियों का परिवार रहता हैं, पर सच्चाई यह है कि ये सारे रेलवे कर्मचारियों के परिवारों की जिन्दगी नरकमय बनी हुई हैं, उनकी ओर देखने की फुर्सत किसी को भी नहीं। रांची रेल मंडल में बैठनेवाले बड़े अधिकारियों का समूह फिलहाल इनकी समस्याओं को हवा में उड़ाते हुए, मस्ती काट रहे है।
हां ये अलग बात है कि जब उन्हें कभी इस ओर आना होता हैं तो इनके इशारे पर कभी-कभार यहां की सड़कों की मरम्मत हो जाया करती है, ताकि रेलवे के इन बड़े अधिकारियों को कार से आने पर इनके बॉडी का हुलिया न बिगड़ जाये, पर यहां रहनेवाले रेलवे कर्मचारियों के परिवारों का इन सड़कों से जान ही क्यों न निकल जाये, इसकी फिक्र रांची रेल मंडल में कार्यरत वरीय अधिकारियों को नहीं हैं।
सच्चाई आप इधर आकर देखिये, सड़कों पर बने जानलेवा गड्ढे आपको बता देंगे कि यहां की क्या हालत हैं, यहां से गुजरनेवाले बस हो या टैक्सी, स्कूटर हो या बाइक अथवा पैदलयात्री अपने जान हथेली पर लेकर चलते हैं, बताया जाता है कि कई कर्मचारियों ने इसकी सूचना अपने उपर के अधिकारियों को दी, पर क्या मजाल कि रेलवे के इन अधिकारियों की कान पर जू रेंगे।
यहीं हाल यहां से वोट लेकर बननेवाले सांसदों और विधायकों का हैं, ये वोट तो लेते हैं, पर कभी आकर पूछा नहीं कि आपको दिक्कत क्या हैं? और इन दिक्कतों को कैसे दूर किया जा सकता हैं? लोग कहते हैं, पंचवटी चौक से लेकर, कृष्णापुरी तक सड़कों की यह दुर्दशा है कि कब इन सड़कों पर रिक्शा पलट जाये, बाइक पलट जाये, कुछ कहा नही जा सकता, सड़कों की हालत इतनी खराब है, कि पूछिये मत। कभी-कभी स्थानीय लोग, अपने –अपने तरीके से ईट और उसके धूलों से भरने की कोशिश की पर, सफलता नहीं मिलती, क्योंकि अधिक बारिश की वजह से यहां स्थिति नारकीय हो गई हैं, पर किसी भी रेलवे के बड़े अधिकारियों का इस ओर ध्यान ही नहीं जाता।
अगर यहां के रेलवे कर्मचारियों की बात करें या परिवारों की बात करें, उनका कहना है कि कई बार इन समस्याओं को लेकर रांची रेल मंडल ही नहीं, बल्कि रेलवे मंत्रालय तक इसकी सूचना दी गई, पर क्या मजाल, कि कोई सून ले, सभी कान में तेल डालकर, सोये हैं और यहां के लोग भगवान भरोसे इन सड़कों पर जान देकर चलने को तैयार हैं, आखिर उनके पास विकल्प ही क्या है?