RPC अध्यक्ष व उसके साथ गये प्रतिनिधिमंडल ने MLA कल्पना सोरेन से क्लब में दारू की दुकान खुलवाने में मदद की लगाई गुहार, दारू पीने और पिलानेवाले पत्रकारों में हर्ष का दौर, महिला पत्रकारों ने आक्रोश जताया
पूरे रांची में दारू पीने-पिलानेवाले पत्रकारों में हर्ष का दौर है। खुशियां चरम पर हैं। खुशियां हो भी क्यों नहीं। उनके मन की बात पहली बार रांची प्रेस क्लब ने की है। पहली बार कोई प्रेस क्लब का अध्यक्ष आया हैं जो पीने-पिलानेवालों की सुध ली है। देश के महानगरों में फैली अपसंस्कृति को अपने प्रदेश की राजधानी में भी लाने की कोशिश की है। वह भी यह कहकर की देश के अन्य महानगरों में जब ये सब संभव हैं तो हमारे यहां क्यों नहीं।
रांची प्रेस क्लब के प्रदेश अध्यक्ष सुरेन्द्र सोरेन, पूर्व अध्यक्ष राजेश सिंह व पूर्व महासचिव जावेद तथा अन्य प्रेस क्लब के पदाधिकारियों ने एक साथ मिलकर पिछले दिनों नई- नई विधायक बनी कल्पना सोरेन से उनके आवास पर जाकर मिले और एक ज्ञापन दिया। उस ज्ञापन में दूसरे नंबर पर आप ध्यान दें। जिसमें साफ लिखा है कि देश के अन्य राज्यों के तर्ज पर रांची प्रेस क्लब को भी बार का लाइसेंस एक रुपये की टोकन मनी पर देने की कृपा करें।
जब विद्रोही24 ने इस मुद्दे को प्रेस क्लब के अन्य लोगों के समक्ष उठाया जैसे सुशील कुमार सिंह मंटू व अखिलेश कुमार सिंह के समक्ष उठाया। तो ये दोनों इसके पक्ष में दिखें। उनका कहना था कि हम अगर नहीं दारू पीते हैं और इसी के साथ और लोग भी दारू नहीं पीये। ये नहीं हो सकता। हर व्यक्ति की अपनी अलग-अलग इच्छा है। उन्हें पीने का अधिकार है। वे पी सकते हैं। उनके लिए भी व्यवस्था होनी चाहिए। जैसे अन्य प्रेस क्लबों में हैं।
इधर कई लोग ऐसे भी मिले, जिनकी सुबह ही दारू से प्रारंभ होती हैं और रात दारू पर खत्म होती हैं। वे तो झूम उठे। उनका कहना था कि इतनी सुंदर बात दुनिया में दूसरी कुछ हो ही नहीं सकती। अगर एक रुपये के टोकन पर बार का लाइसेंस रांची प्रेस क्लब को मिल जाये तो फिर क्या कहने? एक ने तो कहा कि ऐसी सोच रखनेवाले महान प्रेस क्लब के पदाधिकारियों का मन करता है कि माथा और हाथ चूम लें। ऐसे ही लोग तो रांची प्रेस क्लब के हीरे-मोती हैं। आखिर ये लोग अब तक कहां छूपे थे। इनकी जितनी प्रशंसा की जाये कम है।
दूसरी ओर कुछ पत्रकार ऐसे भी थे। जो ये सोच कर ही दंग रह गये। कि आखिर एक पुरुष प्रतिनिधिमंडल इस प्रकार की बेतुकी मांगों को लेकर एक नई-नई निर्वाचित महिला विधायक के पास पहुंच कैसे गया। जब वो कल्पना सोरेन इनकी मांगों पर नजर दौड़ाई होंगी तो वो क्या सोचती होगी। क्या ये सही नहीं है कि आज भी दारू को लेकर रांची प्रेस क्लब कितनी चर्चा में रहा है। कितने पत्रकार दारू के कारण ही मर गये और कई पंक्तिबद्ध हैं। कई पत्रकार तो आज भी अत्यधिक दारू पीने के कारण डाक्टरों के चक्कर में रांची व दिल्ली की सैर कर रहे हैं। कई तो दारू पीने के चक्कर में ही पैसों के अभाव में यमपुरी चल गये। जिनके परिवार आज भी तबाही के मंजर से जूझ रहे हैं।
इधर कई महिला पत्रकारों ने भी इसकी खिलाफत की है। सुप्रसिद्ध महिला पत्रकार वासवी का कहना है कि ऐसा नहीं होना चाहिए, बार नहीं खुलना चाहिए क्योंकि यहां के लोग पब्लिक माइन्डस का कल्चर मेन्टेन नहीं करते। पीने के लिए तो पश्चिम के देशों में भी लोग पीते हैं, परंतु वहां का कल्चर डेवलेप है, लेकिन यहां वैसा दृश्य देखने को नहीं मिलता। दिल्ली-कोलकाता के प्रेस क्लब जैसा यहां का प्रेस क्लब अभी तक बन कर नहीं उभरा है। इसलिए ऐसा होना यहां नहीं चाहिए। नहीं तो मुश्किलें होंगी।
जमशेदपुर की अंतरा बोस कहती है कि यहां पत्रकारिता कम और तामझाम ज्यादा है। ये अपने आप में नहीं रहते, पीने के बाद क्या खाक रहेंगे। ये किसी को उस वक्त समझ भी पायेंगे। पत्रकारिता के हित में तो और भी कई सारी बातें हो सकती है, यहीं क्यों? बार-लाइसेंस मिलने के बाद इसका परिणाम कितना खतरनाक होगा, ये तो सुनकर ही दिल हैरान हो जाता है। ये पीने-पीलाने की बात खतरनाक होगी।
वरिष्ठ पत्रकार अन्नी अमृता कहती है कि रांची प्रेस क्लब द्वारा ‘बार’ के लिए लाइसेंस के निवेदन की जानकारी विद्रोही.कॉम के माध्यम से मिली। यह सुनकर दुख हुआ। यह पत्रकारिता की गरिमा के खिलाफ है। निजी तौर पर मैं शराबबंदी की पक्षधर हूं और जहां तक मीडिया का सवाल है तो मीडिया को समाज हित में कार्य करना चाहिए।
इसी बीच वरिष्ठ राजनीतिज्ञ व समाजसेवी रमेश पुष्कर का कहना है कि भारतीय संस्कृति में दारू या शराब का सेवन आम जीवन के लिए वर्जित है या तामसिक है, राक्षस प्रवृति का द्योतक है। आज देश में सरकारें राजस्व वृद्धि या आमदनी के लिए शराब बेच रही हैं जो पूर्णतः सनातन विरोधी एवं समाज विरोधी है। यदि सरकारें दारू बेचना बंद नहीं करती है तो वो दिन दूर नहीं कि बहुसंख्यक समाज सड़क पर उतर कर इन दुकानों को बंद करा देगा। झारखंड की माताएं बहनें प्रतिदिन दारू के कारण पीटी जा रही हैं। बुद्धिजीवी वर्ग को भी सार्वजानिक रूप से शराब के सेवन से बचना चाहिए, ताकि समाज में उनकी प्रतिष्ठा बनी रहे।
रमेश पुष्कर ये भी कहते है कि रांची प्रेस क्लब के अधिकारियों को दिल्ली व कोलकाता के प्रेस क्लब नजर आ रहे हैं और बगल बिहार का प्रेस क्लब उन्हें नजर नहीं आ रहा। जहां पर सीधे नीतीश कुमार प्रशासन की नजर है। जो पूरे बिहार में शराबबंदी किये हुए हैं। आखिर शराबबंदी क्यों? वो इसीलिये न, ताकि बिहार के परिवार व समाज बर्बाद न हो। ऐसे में रांची प्रेस क्लब अपनी बर्बादी के लिए दारू के लाइसेंस के लिए इतना दिमाग क्यों लगा रहा है या इस प्रकार की मांग एक सभ्य व सुसंस्कृत महिला से क्यों कर डाली? इन्हें मांगना भी था तो सरकार के पास जाते?