रुपा तिर्की हत्याकांड, रेमडेसिविर कांड और बेमतलब की ट्रांसफर-पोस्टिंग ने हेमन्त की लोकप्रियता में लगाई सेंध
एक समय था, कोई विकास कार्य नहीं, फिर भी कोरोना काल में जनता को दी गई सेवा ने हेमन्त की लोकप्रियता का ग्राफ ऐसा बढ़ाया कि देखते ही देखते हेमन्त सोरेन पूरे देश में छा गये। बड़े-बड़े चैनलों व पत्रकारों ने हेमन्त की लोकप्रियता के हेमन्तचरितमानस गाये, पर आज क्या है, रुपा तिर्की हत्याकांड, रेमडेसिविर कांड और अंत में बेमतलब की ट्रांसफर-पोस्टिंग ने हेमन्त की लोकप्रियता में जमकर सेंध लगा दी है।
स्थिति ऐसी है कि अगर लोकप्रियता का ग्राफ इसी तरह नीचे जाता रहा तो फिर सत्ता में पुनः आना हेमन्त सोरेन के लिए टेढ़ी खीर साबित हो जायेगी। राजनीतिक पंडितों की मानें, तो इसके लिए सर्वाधिक अगर कोई जिम्मेवार है, तो वे हैं हेमन्त सोरेन के आगे-पीछे करनेवाले, उनकी परिक्रमा करनेवाले लोग, जो उन्हें सही राह नहीं दिखा रहे हैं तथा जो लोग सही राह दिखाना चाहते हैं, उन्हें मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन तक पहुंचने ही नहीं देते।
नाना प्रकार के बहाने बनाकर मिलनेवालों को गेट से ही विदा कर देते हैं, और जो घटिया स्तर के लोग हैं, जो अपना काम निकालनेवाले लोग हैं, वे आराम से इन सभी की कृपा से मुख्यमंत्री तक पहुंचकर अपना काम करा ले रहे हैं, जिससे आम जनता को कोई फायदा नहीं हो रहा।
राजनीतिक पंडित तो साफ कहते है कि गत् गुरुवार को झारखण्ड हाई कोर्ट के जस्टिस संजय कुमार द्विवेदी की अदालत ने रुपा तिर्की हत्याकांड मामले में सरकार के लोगों से ठीक ही पूछ लिया कि सीआरपीसी की किस धारा में न्यायिक जांच का प्रावधान है? दरअसल रुपा तिर्की मामले में अदालत का साफ कहना था कि यह पूरी तरह एक अपराधिक मामला है, और सीआरपीसी में न्यायिक जांच का कोई प्रावधान ही नहीं है, ऐसे में अदालत ने सरकार की न्यायिक जांच वाली दलीलें ठुकरा दी।
राजनीतिक पंडित तो रेमडेसिविर मामले में भी स्पष्ट रुप से मानते है कि झारखण्ड हाई कोर्ट ने सीआइडी एडीजी अनिल पालटा के स्थानान्तरण पर जो नाराजगी व्यक्त की है, वो एक तरह से सही ही है, क्योंकि वे रेमडेसिविर मामले की जांच कर रहे थे, और ऐसी भी क्या अर्जेंसी आ गई थी कि मात्र पन्द्रह दिनों के अंदर एडीजी अनिल पालटा को स्थानान्तरित करना पड़ा।
अदालत ने इस स्थानान्तरण पर कड़ी टिप्पणी भी की ओर कहा कि लगता है कि किसी को बचाने के लिए यह किया गया है। अदालत ने तो यहां तक कह दिया कि जब न्यायालय इस मामले की स्वयं मॉनिटरिंग कर रहा है तो फिर बीच में स्थानान्तरण का क्या मतलब? यह सीधे-सीधे कोर्ट की अवमानना है।
ऐसा करने के पहले अदालत को विश्वास में लेना था, नये एडीजी इस मामले को फिलहाल नहीं देखेंगे, सरकार ही बता दें कि ऐसे हालात में यह मामला सीबीआई को क्यों नहीं दे दिया जाये। इधर इस मामले पर हाई कोर्ट ने केन्द्र सरकार के अधिवक्ता से भी पूछ लिया कि अगर ये मामला सीबीआई को दे दिया जाये तो आपको कोई आपत्ति तो नहीं? केन्द्र सरकार के अधिवक्ता ने कहा कि कोई आपत्ति नहीं।
इधर इसी मामले में राज्य सरकार के महाधिवक्ता राजीव रंजन कोर्ट में इतने भोले बन गये कि पूछिये मत। जरा देखिये उन्होंने क्या कहा, उनका कहना था कि अनिल पालटा के स्थानान्तरण से जांच पर असर नहीं पड़ेगा, क्योंकि जांच अनुसंधानकर्ता को करना है और वह सही दिशा में जा रही है।
अब क्या महाधिवक्ता बतायेंगे कि उनके मातहत काम करनेवाले अधिवक्ता उनके कहने पर कार्य करते हैं, या अपने ढंग से कार्य करते हैं, क्या उनके मातहत कार्य करनेवाले अधिवक्ता अपने ढंग से काम करेंगे तो उनकी वकालत का कार्य ठीक से चल पायेगा, आखिर अनुसंधानकर्ता के उपर वरीय अधिकारी क्यों रखे जाते हैं? कहने का तात्पर्य है कि अब ये मामला चाहे वो रुपा तिर्की का हो या रेमडेसिविर का ये दोनों मामला हेमन्त सरकार के लिए गले की हड्डी सिद्ध होने जा रहा हैं। राजनीतिक पंडित कहते हैं कि जनता की नजरों में इन दोनों मामलों ने राज्य सरकार की साख पर बट्टा लगा दिया है।
मात्र कुछ ही महीनों में विधानसभा में पंकज मिश्रा की गूंज, वो भी अपने ही विधायक के द्वारा, दूसरी ओर बड़े पैमाने पर बिना किसी जरुरी के पुलिस अधिकारियों व आइएएस अधिकारियों का ट्रांसफर-पोस्टिंग होना, बता रहा है कि यहां कुछ ठीक नहीं चल रहा। अगर राज्य के मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन को संभलना है तो संभले, नहीं तो रघुवर जैसी स्थिति का सामना करने के लिए तैयार रहे।
राजनीतिक पंडित तो साफ कहते है कि रघुवर दास को उनकी आगे-पीछे करनेवाली मंडली ही ले बैठी और कुल मिलाकर वहीं स्थिति अब हेमन्त सोरेन की हैं, तो अभी तो लोकप्रियता और साख गिरी है, कल सरकार गिरने की नौबत आ जाये तो इस पर किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए।
इधर आम जनता में झारखण्ड हाई कोर्ट द्वारा दोनों मामलों में की गई टिप्पणी को लेकर हर्ष व्याप्त है, जनता को लग रहा है कि रुपा तिर्की हत्याकांड में अब सही से न्याय मिलेगा, साथ ही रेमडेसिविर मामले में जो बड़े-बड़े मठाधीश शामिल हैं, वे भी बच नहीं पायेंगे, ट्रांसफर-पोस्टिंग का अब खेल भी रुकेगा, साथ ही रुकेगा उन पुलिस पदाधिकारियों/प्रशासनिक अधिकारियों का अपमान भी, जो फिलहाल ट्रांसफर-पोस्टिंग के नाम पर किया जा रहा है।