सलाम दोस्त तुम्हारी बहादुरी को, सलाम उस मां को, जिसने तुम्हें जन्म दिया, तुमने तो चंद मिनटों में…
वे बंदूक की गोलियों से दहशत फैलाना चाहते हैं। वे बंदूक की गोलियों से दहशत फैलाकर सत्ता पर काबिज होना चाहते हैं। उनके लोग अब गांवों से लेकर शहरों तक बसते हैं, और इन नक्सलियों को वैचारिक खुराक देते हैं, पर अच्यूतानन्द साहू की नक्सलियों द्वारा की गई नृशंस हत्या पर चुप्पी साधे हुए हैं। उनसे आप इसके अलावा कुछ दूसरे चीज की उम्मीद भी नहीं कर सकते, क्योंकि न तो उन्हें गांधीवाद पर भरोसा है और न ही भारतीय लोकतंत्र पर, उन्हें तो तब आनन्द प्राप्त होता है, जब किसी नक्सलियों की गोली से किसी निर्दोष की नृशंसा हत्या कर दी जाती है।
यहां पत्रकारिता में भी दो वर्ग है, एक वर्ग को थोड़ी खांसी भी हो जाती है या कोई एक छोटी सी धमकी भी दे देता हैं तो लोग बावेला मचा देते हैं, पर एक ऐसा बेटा, जो अपनी रोजी-रोटी के लिए जंगलों की खाक छान रहा है, जो अपनी जुनून के लिए जंगलों में समाचार संकलन करने के लिए निकला हैं, उसे कुछ हो जाय, तो खुद को पत्रकारिता में इलीट वर्ग कहलानेवाला, उसके परिवार से पूछने भी नहीं जाता कि तुम्हारे दर्द को हम कैसे कम करें?
दंतेवाड़ा के अरनपुर में नक्सलियों ने घात लगाकर दूरदर्शन के एक कैमरामैन अच्यूतानन्द साहू की नृशंस हत्या कर दी है। यह घटना तब घटी, जब अच्यूतानन्द साहू अपनी टीम के साथ पोटली गांव समाचार संकलन करने के लिए जा रहे थे। छत्तीसगढ़ का यह पोटली गांव ऐसा गांव है, जहां के लोगों ने कई वर्षों से मतदान में हिस्सा ही नहीं लिया था।
जब नक्सलियों ने घात लगाकर हमला किया, तब पत्रकारों और सुरक्षाबलों के जवानों ने उन नक्सलियों का डटकर मुकाबला किया और वे उनके आगे झूके नहीं, बल्कि उनके साथ दो-दो हाथ करने की ठानी। पूरा इलाका बंदूक की गोलियों से गूंज रहा था। पुलिसकर्मी बंदूक के सहारे नक्सलियों का मुकाबला कर रहे थे, और बेचारा पत्रकार-कैमरामैन क्या करता? वह अपने कैमरों के सहारे नक्सलियों से मुकाबला कर रहा था। इसी बीच नक्सलियों के इस हमले में एक ओर जहां मीडियाकर्मी अच्यूतानन्द साहू की मौत हो गई, वहीं दो पुलिसकर्मी शहीद भी हो गये।
इधर अच्यूतानन्द साहू के साथ गये एक अन्य मीडियाकर्मी मोर मुकुट शर्मा ने यह जानते हुए कि मौत उसके निकट है, मौत को सामने देख अपनी मां को मार्मिक संदेश दिया, उसका कहना था ‘मां यदि मैं इस हमले में बच जाता हूं तो बहुत किस्मतवाला साबित होउंगा, मां मैं आपसे बहुत प्यार करता हूं। यहां जिस तरह से गोलीबारी हो रही है, उससे लगता है कि मैं मारा जाऊंगा। पता नहीं, क्यों मौत को अपने सामने देखते हुए डर नहीं लग रहा है।’
सचमुच, उक्त मीडियाकर्मी मोर मुकुट शर्मा ने मौत को सामने देख, विपरीत परिस्थियों में अपनी मां को जो संदेश दिया, हमें यह सोचने पर मजबूर कर देता है कि हमें अपने जीवन को किस प्रकार से जीना चाहिए। उक्त मीडियाकर्मी मोर मुकुट शर्मा ने बता दिया कि जो मौत से डर गया, वो इन्सान ही क्या? पत्रकार ही क्या? वो नहीं डरता है, ऐसे बंदूकों और ऐसे मानवता के हत्यारों नक्सलियों से।
इसलिए हमें गर्व है, दिवंगत अच्युतानन्द साहू जैसे पत्रकार पर, उक्त मीडियाकर्मी मोर मुकुट शर्मा पर भी, जो मौत को सामने देखकर भी नहीं डरा और विपरीत परिस्थितियों में मां को बताया कि वह डर नहीं रहा। हमें गर्व हैं, ऐसे निर्भीक जाबांज पत्रकारों पर, जिसे दंतेवाड़ा के नक्सलियों की बंदूकें नहीं डरा सकी। सलाम दोस्त, तुम्हारी बहादुरी को। सलाम उस मां को। जिसने तुम्हें जन्म दिया। तुमने तो चंद मिनटों में पत्रकारिता की नई परिभाषा ही गढ़ दी। इतिहास रच दिया।