राजनीति

संबित पात्रा ने बिना नाम लिए झूठ फैलानेवाले एक पत्रकार राजदीप को जनता के सामने कर दिया नंगा

भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता एवं राष्ट्रीय प्रवक्ता संबित पात्रा ने बिना नाम लिए ही झूठ फैलानेवाले एक वरिष्ठ पत्रकार राजदीप सरदेसाई को जनता के सामने नंगा कर दिया। उन्होंने एक राष्ट्रीय चैनल ‘आज तक’ पर डिबेट के दौरान जमकर राजदीप सरदेसाई के खिलाफ अपने आक्रोश को प्रकट किया। उन्होंने डिबेट में साफ कहा कि –

“एक पत्रकार है, आप जानती है कौन है? वह कल से फेक न्यूज फैला रहा है। बैठ के टीवी में भी कह रहे थे और ट्वीट भी कर रहे थे कि एक जो किसान की मृत्यु हुई है, वो दिल्ली पुलिस की गोली चलाने से हुई। कांग्रेस भी हां में हां मिला रही थी बाद में पकड़ा गया। वो जो पत्रकार है, मैं नाम नहीं लूंगा, मगर जाने-माने पत्रकार है, वो पकड़े गये बाद में। अंजना जी ये जो झूठ फैलाया गया, ये जो उस तथाकथित पत्रकार ने जो ट्विट किया कि ये जो पुलिस ने गोली चलाई और एक किसान मर गया, ये खाली में नहीं जायेगा, इसका बदला लिया जायेगा।

अरे क्यूं, आपने झूठ ट्विट कर दिया, आपने पुलिस के सामने खड़े होकर झूठ बयानबाजी भी दे दी और आज आप एंकरिंग भी कर रहे हैं, ऐसा कैसे चलेगा? मैं तो कहता हूं कि ऐसे लोगों को तो नेम और शेम करना चाहिए, जो झूठी बातें करते हैं, बिल्कुल उनको नेम एंड शेम करना चाहिए।”

सच्चाई यह है कि 26 जनवरी को ट्रेक्टर रैली के दौरान, यहां तक कि तथाकथित किसानों द्वारा हिंसक प्रदर्शन, पुलिस पर लाठियां चलाने तलवारबाजी करने, लालकिले पर धार्मिक ध्वज फहराने के बावजूद दिल्ली पुलिस ने धैर्य और संयम का अद्भुत उदाहरण पेश किया। एक गोली तक नहीं चलाई, खुद सैकड़ों की संख्या में घायल हो गये, पर किसी पर लाठी तक नहीं उठाई, लेकिन राजदीप सरदेसाई जैसे पत्रकारों को पता नहीं कहां से क्या दिख गयी और उसने झूठ फैला दिया।

संबित पात्रा को इस बात को लेकर ज्यादा अफसोस था कि जो व्यक्ति झूठ फैला रहा है, झूठ ट्विट कर रहा है, वैसा व्यक्ति टीवी में एंकरिंग कैसे कर रहा है? जबकि सच्चाई यह है कि जिस कथित किसान की मौत बताई जा रही है, उसकी मौत ट्रेक्टर पलटने से हुई थी, जिसमें पुलिस का कोई रोल ही नहीं था। दरअसल राजदीप सरदेसाई अपने करतूतों से कई बार अपने खुद के सम्मान से खेल चुके हैं, इसलिए उन्हें कोई तवज्जों भी नहीं देता।

लोग कहते है कि ये हाल दिल्ली ही नहीं, देश के अन्य शहरों में खुद को नामी-गिरामी समझे जानेवाले ज्यादातर पत्रकारों की हो गई है, जो किसी न किसी को खुश करने के लिए पत्रकारिता कर रहे हैं और उसमें वे पत्रकारिता को नुकसान कर ही रहे हैं, खुद का भी नुकसान कर रहे हैं, लेकिन उन्हें इससे लगता है कि कोई फर्क नहीं पड़ता, नहीं तो राजदीप जैसे लोग कब के सुधर जाते।