रघुवर दास की छवि आम जनता की नजर में कुछ भी नहीं, लोकप्रियता में सरयू आगे
संसदीय कार्य मंत्री सरयू राय, जो नित्य नये धमाके करने के लिए जाने जाते हैं, जो खुलकर मुख्य सचिव राजबाला वर्मा और प. सिंहभूम के जिला खनन पदाधिकारी को कटघरे में रख रहे हैं। उन्हें मुख्यमंत्री रघुवर दास से भी यह पूछना चाहिए कि जिस अधिकारी ने अपने उपर के मुख्य सचिव स्तर के अधिकारी की बात नहीं मानी, उनके द्वारा मांगे गये स्पष्टीकरण का जवाब नहीं दिया, वह अपने से नीचे स्तर के कार्मिक विभाग के अधिकारी का जवाब कैसे और क्यों दे देगी या नैतिकता के आधार पर अपने पद से क्यों हटेगी? ऐसे में जबकि सारी चीजें स्पष्ट है, तो फिर मुख्यमंत्री रघुवर दास को दिक्कत क्या हो रही है, राजबाला वर्मा को मुख्य सचिव पद से हटाने में, आखिर बिना एसीआर के राजबाला वर्मा को प्रोन्नति कैसे दे दी गई, वह अधिकारी कौन था? उसने किसके दबाव में राजबाला वर्मा की एसीआर बनाई और राजबाला वर्मा को प्रोन्नति दे दी गई।
जब मुख्यमंत्री रघुवर दास के मंत्रिमंडल में शामिल एक जिम्मेदार मंत्री मुख्य सचिव राजबाला वर्मा के खिलाफ अंगूली उठा रहा है, जब मुख्य विपक्ष झारखण्ड मुक्ति मोर्चा, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और झाविमो जैसी पार्टियां राजबाला वर्मा के खिलाफ एक्शन लेने की डिमांड सरकार से कर रही है और ऐसा नही करने पर विधानसभा में बवाल होना तय है तो फिर सरकार पन्द्रह दिनों का समय राजबाला वर्मा को कैसे और क्यों दे दी, क्या उन्हें लगता है कि 15 बार नोटिस जारी करने के बाद, इस 16वे नोटिस का जवाब, वह अपने जूनियर अधिकारी को सौप देगी?
झारखण्ड में भ्रष्टाचार की गंगा कैसे बह रही है? कैसे विकास के नाम पर, सबका साथ सबका विकास के नारे दे-देकर गलत करनेवाले लोग ऐसे स्थानों पर बैठ गये हैं, जहां से विकास की धारा निकलने की बात की जाती है, उसका सबसे सुंदर उदाहरण है – राजबाला वर्मा प्रकरण और ये 36 सौ करोड़ का घोटाला, जिसकी बात स्वयं संसदीय कार्य मंत्री सरयू राय ने की है।
इधर सरयू राय ने जमशेदपुर में पत्रकारों को बयान दिया है कि राजबाला वर्मा को नैतिकता के आधार पर स्वयं इस्तीफा दे देना चाहिए। सवाल उठता है कि वह नैतिकता के आधार पर इस्तीफा क्यों दें? यहीं काम रघुवर दास स्वयं मुख्यमंत्री पद पर विराजमान है, वह राजबाला वर्मा को हटाकर एक सम्मानजनक निर्णय क्यों नहीं ले रहे? इसका मतलब है कि पारदर्शिता और भ्रष्टाचारमुक्त झारखण्ड बनाने की बात करनेवाले सीएम रघुवर दास की हिम्मत नहीं कि वे राजबाला वर्मा के मुद्दे पर त्वरित एक्शन ले लें। कुछ न कुछ मजबूरियां तो रघुवर दास की भी है, और वे इस मजबूरी को सार्वजनिक नहीं करना चाहते और यह मामला कार्मिक सचिव के माध्यम से नोटिस देकर, वे अपना पिंड छुड़ा लेना चाहते हैं, पर इसमें सीएम कितने कामयाब होते हैं या अपना राजनीतिक कद कितना गिराते हैं, ये जैसे-जैसे समय बीतेगा, पता चलता जायेगा, लेकिन आम जनता की बात करें तो सीएनटी-एसपीटी मुददे, मोमेंटम झारखण्ड, राजबाला वर्मा प्रकरण और अब 36 सौ करोड़ का घोटाला, साफ बता रहा है कि सीएम रघुवर दास की छवि आम जनता की नजर में कुछ भी नहीं… ऐसे में सीएम रघुवर दास से ज्यादा नाम, संसदीय कार्य मंत्री सरयू राय ने कमा लिया है।