हेमन्त सरकार को अस्थिर करने के लिए झारखण्ड में “ज्योतिरादित्य” की खोज?, भाजपा में मगजमारी शुरु, सम्पर्क में हैं कई नेता
भारत का कोई मतदाता यदि वह यह विश्वास रखता/करता है कि जिसे वो चुना है अथवा जिसे वह अपना नेता मानता है, वह उसके विश्वास पर खड़ा उतरेगा, उसके मत का सम्मान करेगा तो वह मतदाता महामूर्ख है। भारत का कोई भी राजनीतिक पंडित, अगर किसी नेता के पाला बदलने पर उसके पूर्व के बयानों को लेकर, अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करता है, तो वह भी महामूर्ख है, क्योंकि भारत के राजनीतिज्ञ, राजनीतिज्ञ नहीं होते, बल्कि राजनीतिबाज होते हैं, और राजनीतिबाजी में जनता से किया गया सारा छल जायज है।
इसलिए आज अगर ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस छोड़कर भाजपा में जाने को देश-सेवा से जोड़ा हैं, और आप इसे देश-सेवा मान रहे हैं, तो समझ लीजिये आप खुद को धोखा दे रहे हैं, दरअसल ज्योतिरादित्य सिंधियां दूर का गेम खेल रहा हैं, उसे मध्यप्रदेश की मुख्यमंत्री पद चाहिए, इससे कम उसे मंजूर नहीं। जब वह कांग्रेस का दामन थामा था, तब राज्य में भाजपा की शासन चल रही थी, उसे लगा कि भाजपा के शासन समाप्त होने के बाद, जब भी कांग्रेस आयेगी तो उसके हाथों में मध्यप्रदेश का शासन आयेगा, पर ये क्या मलाई तो कमलनाथ खाने लगे, और लीजिये यही से शुरु हुआ, कांग्रेस के प्रति बगावत का उसका स्वर जो आज भाजपा ज्वाइन करने से पूर्ण हो गया।
जो लोग ये सोचते है कि ज्योतिरादित्य सिंधिंया के शासन में आ जाने से मध्यप्रदेश का भला हो जायेगा, वे भी महामूर्ख हैं, क्योंकि किसी भी देश या राज्य का भला तब तक नहीं हो सकता, जहां की जनता जागरुक नहीं हो, अगर जनता जागरुक हो जाये और ऐसे-ऐसे दलबदलू नेताओं को सबक सिखाने लगे तो मजाल नहीं कि कोई भी नेता किसी भी जनता की आंखों में धूल झोंक सकें और देश सेवा का नौटंकी खड़ा कर, अपनी निजी स्वार्थ के लिए जनता को नरक में झोंक दें।
ऐसा नहीं कि भारतीय जनता पार्टी के नेता दूध के धूले और कांग्रेस के सारे नेता या कार्यकर्ता बदमाश हैं, दरअसल इन पार्टियों में हमारे समाज से ही गये लोग हैं, जिन्होंने देश को अपनी जागीर समझ रखा है, और देश के संसाधनों को अपने ऐश के लिए प्रयोगशाला बना रखा है, नहीं तो 1947 में जो चीन भारत से बहुत नीचे था, वह आज सत्तर सालों में अमरीका को टक्कर देने लायक बन गया और हम अभी पाकिस्तान से ही टक्कर लेने में अपने को वीर समझ रहे हैं, हम इसके लिए वर्तमान भाजपा को भी दोषी नहीं ठहरा सकते है, इसके लिए कही न कही कांग्रेस भी उतनी ही दोषी हैं और उससे ज्यादा दोषी है, भारत की जनता, जिसने अपने मत का भय इन नेताओं को कभी दिखाया ही नहीं।
चुनाव आया जाति और धर्म में बंट गये और फिर जब इन नेताओं ने अपने स्वार्थ के लिए चाबुक चलाया, तो लगे इनके पांवों के जूतों को साफ करने, ऐसे में भारत अगर तबाह हो रहा हैं तो इसमें किसकी गलती है, समझते रहिये। आज देखिये, भारत में क्या हो रहा है? भारत की जनता कर क्या रही है? सभी ने अपना-अपना नेता चून लिया है और वे उसकी जय-जय कर रहे हैं? और ये नेता क्या कर रहे हैं? किसी ने बुद्ध को पकड़ लिया, तो किसी ने राम को पकड़ लिया तो किसी ने कुछ पकड़ लिया और सोशल साइट पर बैठकर एक दूसरे को गरियाने में लगे हैं, और इसे ही देश-सेवा समझ रखे हैं, इन्हें लगता है कि वे अपने लोगों को जागरुक कर रहे हैं, पर हो क्या रहा हैं, भारत हाथों से निकल रहा हैं।
जरा देखिये, कल तक जो माधव राव सिंधिया का बेटा ज्योतिरादित्य सिंधिया जो पानी पी-पीकर भाजपा और भाजपाइयों, मोदी और शाह को गरियाया करता था, आज उसी पार्टी में जाकर कांग्रेस पर सवाल उठा रहा है, जबकि राहुल गांधी का कहना है कि कांग्रेस में सिर्फ एक ही नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया थे, जो किसी भी समय उनके घर पर आ सकते थे, उनके लिए दरवाजे सदैव खुले रहते थे, जो लोग राहुल गांधी के इस बयान को सुने हैं या पढ़े हैं, वे इसे झूठला भी नहीं सकते।
रही बात मध्यप्रदेश में कमलनाथ की सरकार रहेगी या जायेगी, तो भाई जब भी केन्द्र में किसी भी एक दल की मजबूत सरकार बनी है और राज्य में बहुमत से मात्र पांच या छह सीट अधिक लानेवाली पार्टी ने सत्ता संभाला है, वो हमेशा तलवार की नोक पर रही है। ऐसे तो इन्दिरा जी ने कभी बहुत ही मजबूत मानी जानेवाली आंध्र प्रदेश की एनटी रामाराव सरकार तथा जम्मू कश्मीर की फारुख अब्दुल्ला सरकार तक को नाक में दम कर दिया करती थी।
कभी नरसिम्हा राव की सरकार में मध्यप्रदेश के ही एक दिग्गज नेता अर्जुन सिंह ने रामजन्मभूमि आंदोलन के समय भाजपा की चुनी हुई सरकार को राजस्थान, मध्यप्रदेश आदि राज्यों में बर्खास्त कर दिया था, ऐसे में अब मौका मिला है मोदी-शाह को तो वे अपनी लीला क्यों न दिखायें और हम उन्हें गलत क्यों कहें, क्योंकि हम तो स्पष्ट रुप से मानते है कि राजनीति में अब सही मायनों में संत तो आते नहीं, सभी आला दर्जे के भ्रष्ट, मायावी जो दैत्य को भी शर्मसार कर दें, यहीं तो आजकल सत्ता में हैं, ऐसे में इनसे रामराज की कल्पना क्यों करें।
एक समय था, जब वाजपेयी और आडवाणी युग में भाजपा कहा करती थी, “भाजपा के साथ चलें, राम राज्य की ओर चले।” अब भाजपा तो केन्द्र समेत कई राज्यों में हैं, ऐसे में कितना रामराज्य आया, वो तो सबको पता है। कभी संसद में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने डंके की चोट पर कहा था कि बाजार थी, सामान था, पर खरीदार नहीं था। उन्होंने यह भी कहा था कि हम खरीद फरोख्त कर लालच देकर सत्ता प्राप्त करने जैसी प्रवृत्तियो को चिमटे से भी छूना पसन्द नहीं करते और आज उनके चेले-चपाटी को देखिये, कितने गिर रहे हैं।
इसलिए महाराष्ट्र वाले नेता शरद पवार ज्यादा काबिल नहीं बने, अगर वे ये सोच रहे है कि मध्यप्रदेश वाली हाल महाराष्ट्र में नहीं होगी, तो वे भी महामूर्ख है, क्योंकि हिन्दुत्व के मामले में शिवसेना उनकी पार्टी से ज्यादा भाजपा के करीब है, और शिवसेना भाजपा के साथ चुनाव लड़कर ही इस स्थिति में आई है कि वो एनसीपी के साथ सत्ता में हैं। राजस्थान में भी देर-सबेर ये भाजपा कलाबाजी दिखायेगी, पर छत्तीसगढ़ में उसकी कलाबाजी फेल हो जायेगी, क्योंकि छत्तीसगढ़ में कांग्रेस बहुमत से कोई पांच-छह सीट अधिक नहीं, बल्कि इतनी ज्यादा है कि भाजपा को उसे तोड़ने में पसीने छूट जायेंगे।
झारखण्ड में तो ये खेल शुरु हो गया, गुपचुप तरीके से हेमन्त की सरकार को अस्थिर करने के लिए कांग्रेस के एक बड़े नेता ने मगजमारी शुरु कर दी है, वह भाजपा के एक बड़े नेता से संपर्क में हैं, इसलिए याद रखिये कि आज की भाजपा, सारे मूल्यों को तोड़कर, अपना मूल्य स्थापित करने के लिए अग्रसर है, केवल आप अपना घर देखिये कि उस घर में कौन नेता बिकने और किस भाव में बिकने को तैयार है।
अंत में आज सुभद्रा कुमारी चौहान की वो कविता याद आ रही है, जिसे मैंने बचपन में पढ़ा। पं. मोरोपन्त ताम्बे की बेटी महारानी लक्ष्मीबाई की कीर्तियों को समर्पित उस कविता में एक पंक्ति यह भी थी कि “अंग्रेजों के मित्र सिंधिंया ने छोड़ी रजधानी थी, खुब लड़ी मर्दानी वो तो झांसीवाली रानी थी।”