राजनीति

स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता द्वारा लगाये गये भ्रष्टाचार के आरोपों को देख सरयू राय ने खुद ही CM को पत्र लिख इन सारे मामलों की जांच कराने की मांग CS या महाधिवक्ता या CBI या ACB से कर डाली

झारखण्ड के स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता द्वारा बार-बार विभिन्न आरोपों को लगाने के बाद, निर्दलीय विधायक सरयू राय ने राज्य के मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन को एक पत्र लिखा है। उस पत्र में सरयू राय ने लिखा है कि वे वहीं आरोप हैं, जो पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास के करीबी पिछले चार वर्षों से लगाते रहे हैं। सरयू राय ने उन आरोपों को खुद ही पत्र में लिख डाला है। साथ ही इस बात का भी जिक्र किया हैं कि जो भी स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता ने उन पर आरोप लगाये हैं। उसकी जांच संबंधित संचिका मंगाकर अपने स्तर से मुख्य सचिव या महाधिवक्ता या सीबीआई या एसीबी से करवा लें ताकि इस मामले में दूध का दूध और पानी का पानी हो जाये

सेवा में,

माननीय मुख्यमंत्री,

झारखण्ड सरकार।

महोदय,

आपके स्वास्थ्य मंत्री मेरे विरूद्ध उन्हीं आरोपों को दुहरा रहे हैं, जो आरोप पूर्व मुख्यमंत्री श्री रघुवर दास के करीबी पिछले चार वर्षों से मेरे उपर लगा रहे हैं। ये निम्नवत हैं –

पहला आरोप है कि मैंने एक पणन पदाधिकारी (मार्केटिंग ऑफिसर) को बहाल कर दिया। इसमें तथ्य यह है कि जब मैं खाद्य, सार्वजनिक वितरण एवं उपभोक्ता मामले विभाग का मंत्री था तब विभाग में पणन पदाधिकारियों की काफी कमी हो गई थी, तो विभाग ने निर्णय किया कि विभाग से जो लोग सेवानिवृत हुए हैं, उनसे आवेदन मांगा जाए और जिनपर कोई आरोप नहीं है, उन सेवानिवृत पदाधिकारियों को संविदा पर रख लिया जाए। इसी क्रम में एक सेवानिवृत पणन पदाधिकारी, श्री सुनील शंकर मेरे पास अपना आवेदन लेकर आए।

मैंने उस आवेदन को संचिका में लगाकर विभागीय सचिव को भेजा कि यदि इनपर कोई आरोप नहीं है और ये योग्य हैं तो इन्हें संविदा पर पुनः नियुक्त कर लिया जाए। विभागीय सचिव ने जाँचोपरांत इसकी अधिसूचना जारी कर दी। इसके साथ ही कई अन्य सेवानिवृत पणन पदाधिकारियों का आवेदन आया तो विभाग ने उनकी छानबीन की और एक समिति बनाकर उनमें से जिनपर कोई आरोप नहीं है उन्हें नियुक्त किया। इस प्रक्रिया के तहत श्री सुनील शंकर की नियुक्ति भी दुबारा कर ली गई। आपके मंत्री आरोप लगाते हैं कि मैंने श्री सुनील शंकर को नियुक्त करने का आदेश देकर गलत किया है।

उनका दूसरा आरोप है कि जब मैं मंत्री था तो विभाग की नीतियों एवं कार्यक्रमों तथा केन्द्र सरकार के निर्देशों से जिला पदाधिकारियों, राशन डीलरों और उपभोक्ताओं को अवगत कराने के लिए एक पत्रिका निकालने का निर्णय हुआ। इसकी 10 प्रतियाँ प्रत्येक राशन दुकान पर रखने का निर्णय भी हुआ। यह कार्य करने का जिम्मा जिला आपूर्ति पदाधिकारियों को दिया गया। शुरूआती दौर में वित्त विभाग का परामर्श लेकर सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग के द्वारा निर्धारित दर पर पत्रिका का प्रकाशन विश्व खाद्य दिवस के अवसर पर शुरू कराया गया।

इस बारे में संचिका में झारखण्ड सरकार के तत्कालीन वित्त सचिव, श्री अमित खरे की टिप्पणी अवलोकनीय है। तीन माह बाद पत्रिका प्रकाशन के लिए निविदा प्रकाशित की गई। उस निविदा में यह शर्त रखा गया कि पूर्व से इसका मुद्रण करने वाले मुद्रक को भुगतान की जो दर निर्धारित है, यदि निविदा में उससे कम न्यूनतम दर आता है तो दोनों का अन्तर मुद्रक से वसूल कर लिया जाए। संयोगवश निविदा में उसी मुद्रक की दर न्यूनतम आई जो पहले से इसका मुद्रण कर रहा था। इस न्यूनतम दर और जिस दर से मुद्रक को पहले भुगतान किया जा रहा था, दोनों के अन्तर के हिसाब से उस मुद्रक से पैसा वसूल लिया गया। इसमें कहीं भी राज्य के खजाने का एक पैसा भी नुकसान नहीं हुआ है। परन्तु आपके मंत्री इसे भारी भ्रष्टाचार बता रहे है।

उनका तीसरा आरोप आउटबाउंडिंग कॉल के बारे में है। आउटबाउंडिंग कॉल के लिए एजेंसी का निर्धारण निविदा के आधार पर हुआ और यह निविदा विभाग ने नहीं बल्कि निदेशालय ने किया। जिस एजेंसी का चयन निदेशालय द्वारा हुआ वह काम करने लगा। इसके चयन में मेरा कोई सरोकार नहीं था। इस कार्य की अवधि पूर्ण हो गई तो मेरे पास अवधि विस्तार करने के लिए निदेशालय से आग्रह आया तो मैंने कुछ दिनों के लिए इसे अवधि विस्तार देने का निर्देश दे दिया।

पूर्व मुख्यमंत्री श्री रघुवर दास के नजदीकियों ने यह मामला जाँच के लिए भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो में भेजा। भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो के जाँचकर्ता ने कहा कि आवेदन में जो भी कागजात दिये गये वे सभी फोटोकॉपी है। इसका ऑरिजनल से मिलान करने के लिए पी.ई. दर्ज कर जाँच जरूरी प्रतीत होता है। इस मामले में खाद्य, सार्वजनिक वितरण एवं उपभोक्ता मामले विभाग ने भी अलग से भी जाँच किया है।

महोदय, मेरा आपसे आग्रह होगा कि आप संबंधित संचिका मंगाकर अपने स्तर से इसकी जाँच किसी भी एजेंसी से करवाये। मुख्य सचिव से इसकी जाँच करवाएं अथवा महाधिवक्ता से इस पर मंतव्य प्राप्त करें अथवा इसे सीबीआई को या एसीबी को जाँच के लिए भेज दें, ताकि इस मामले में दूध का दूध और पानी का पानी हो जाए। मुझे उम्मीद है कि आप मेरा आग्रह स्वीकार करेंगे।

सादर,

भवदीय

(सरयू राय)