अपनी बात

झारखण्ड में भाजपा की दुर्दशा देख एक लोकोक्ति उस पर फिट बैठ रहा है – किस्मत में लिखल बा लेढ़ा, तो कहां से खइब पेड़ा?

काश भाजपा अपने उन कार्यकर्ताओं के अंदर पल रहे टीस को समझ पाती, उनके सीने के दर्द पर मलहम लगाने का प्रयास करती, राष्ट्रीय स्तर के नेता प्रदेश में बैठे उन शोषकों पर लगाम लगाते, सोशल साइट पर अपने समर्पित कार्यकर्ताओं के शब्दों में आ रहे उनके दर्द को समझते हुए, पार्टी के अंदर उभर रहे शोषकों पर लगाम लगाते, तो कम से कम भाजपा की यह दुर्दशा तो नहीं ही होती। लेकिन एक लोकोक्ति है कि ‘किस्मत में लिखल बा लेढ़ा, तो कहां से खइब पेड़ा?’ वाली कहावत भाजपा पर चरितार्थ हो गई।

कल से विद्रोही24 के पास कई समर्पित भाजपा कार्यकर्ताओं के फोन आ रहे हैं। वे कह रहे हैं कि आपने जो भी कुछ लिखा। वो सही हुआ। लेकिन भाजपा के नेताओं ने आपकी लिखी बातों पर ध्यान ही नहीं दिया। जबकि मैं उन सारे भाजपा कार्यकर्ताओं को कह रहा हूं कि मैंने ऐसा कुछ नहीं लिखा जिसका श्रेय वे हमें देना चाहते हैं। हमने तो बस सिर्फ ये किया कि जनता के दिलों में जो भावनाएं बह रही थी। उसे जनता के ही सामने बड़ी ही ईमानदारी से रख दिया।

झारखण्ड की जनता तो उसी दिन से भाजपा के प्रदेशस्तरीय नेताओं के साथ-साथ राष्ट्रीय स्तर के नेताओं के क्रियाकलापों से बहुत ही नाराज हो चली थी। जब इन नेताओं ने 2019 में बनी हेमन्त सरकार को सत्ता से हटाने के लिए नये-नये षडयंत्र रचने शुरु किये। इस षडयंत्र का सर्वाधिक महत्वपूर्ण हिस्सा वो था – जब हेमन्त सोरेन को जेल में डाल दिया गया।

शायद उसी दिन जनता ने कसम भी खा लिया कि अब जब भी कभी चुनाव होंगे, तो हम फिर से हेमन्त सोरेन को ही अपना हीरो मानेंगे और इसकी पहली झलक मिल गई उस वक्त, जब हेमन्त के जेल में रहते, कल्पना सोरेन ने अपने घर से बाहर निकलकर राजनीति में कदम रख दिया और पहली सभा गिरिडीह में कर दी। उसी दिन विद्रोही24 ने ताड़ लिया कि अब कोई नहीं हैं टक्कर में, क्यों पड़े हो चक्कर में। अब कितना भी कर लो बाप रे बाप, अब जब भी चुनाव होगा, आयेगा वहीं तीर-धनुष छाप और लीजिये हुआ वहीं, जो विद्रोही 24 ने कहा।

हालांकि इसी बीच अपने पक्ष में माहौल बनाने के लिए भाजपा ने क्या-क्या नहीं किये। कभी आलीशान होटलों में पत्रकारों को पार्टियां दी। कभी उन्हें दिल खोलकर गिफ्ट दिये। कभी दिल खोलकर उन्हें विज्ञापनों से मालामाल कर दिया। तो कभी ये खुद ही अखबारों के कार्यालय में जाते और संपादकों तथा अखबारों के मालिकों के साथ सेल्फी लेते-लिवाते। लेकिन यही कुकर्म झामुमो ने नहीं किया। उनके किसी भी नेता ने किसी अखबार में न तो जाना पसंद किया और न ही किसी आलीशान होटलों में पार्टी दी। क्योंकि जिसको जनता ही आशीर्वाद दे चुकी हैं। उसे माहौल बनाने के लिए इस प्रकार की नौटंकी की क्या जरुरत?

कई राष्ट्रीय स्तर के तथाकथित फायरब्रांड नेता तो एक ऐसे विवादास्पद लोकल चैनल के मालिक के घर भी चले गये। जो हाल ही में जेल की शोभा बढ़ाकर आये हुए थे। हद तो तब हो गई कि ये नेता उनके घर पर जाकर भोग भी लगाये और उस भोग को प्राप्त कर धन्य-धन्य होने का दिखावा भी किया। ताकि लोग जान सकें कि उक्त चैनल के मालिक पर भाजपा नेताओं की कृपा है। अब इस प्रकार की नौटंकी का फायदा भाजपा को मिला या उक्त चैनल को मिला, ये तो अब भाजपा को पता चल ही गया होगा।

कमाल है जिस भाजपा कार्यालय में जिन नेताओं के आगे-पीछे भाजपा नेता/कार्यकर्ता कर रहे थे। कल चुनाव परिणाम के दिन भाजपा कार्यालय में वे सारे नेता/कार्यकर्ता ऐसे गायब हो गये, जैसे गधे के सिर से सींग। यानी जो नेता, विपरीत परिस्थितियों में भी कार्यालय में न दिखे, वो क्या दल को नई दिशा या ऊंचाई पर ले जायेगा। क्या किसी के घर में दुख का पहाड़ टूटेगा तो वो व्यक्ति उस दुख को देखकर भाग खड़ा होगा या उसका सामना करेगा। यहां तो भाजपा के अर्श से लेकर फर्श तक के नेता गायब दिखे। जो 22 नवम्बर तक लोकल चैनल को वन टू वन दे रहे थे। वे भी 23 नवम्बर को नहीं दिखे।

कमाल तो यह भी था कि जिन पत्रकारों की बीट भाजपा हुआ करती थी। वे भी कल भाजपा कार्यालय नहीं पहुंचे। शायद जानते थे कि वहां जाने पर क्या मिलेगा, क्योंकि जो मिलना था वो तो मतदान के पहले ही मिल चुका था। इधर भाजपा कार्यकर्ता आग-बबूला हैं। वे इसके लिए खुलकर प्रदेश के उन नेताओं पर भड़के हुए हैं, जिनके कारण भाजपा की ये दुर्दशा हुई हैं। कई तो ऐसे नेताओं का नामकरण भी कर दिया हैं और उन पर ऐसी-ऐसी टिप्पणी कर रहे हैं कि भाजपाइयों की नींद उड़ी हुई हैं। एक सोशल साइट पर भाजपा के ही एक कार्यकर्ता ने कुछ लिखा हैं, आप खुद देखिये –

यहीं नहीं ऐसे कई कार्यकर्ता हैं, जो प्रदेश के नेताओं के खिलाफ आग उगल रहे हैं। लेकिन इनकी हिम्मत नही कि उक्त भाजपा कार्यकर्ता के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई करेंगे, क्योंकि अब वे भी जान चुके हैं कि ऐसे कार्यकर्ताओं पर कार्रवाई करेंगे तो उसका परिणाम क्या आयेगा। कई भाजपा के कट्टर समर्थक भी भाजपा के प्रदेश नेताओं पर फायर हैं और अपना दर्द फेसबुक जैसे सोसल साइट पर अभिव्यक्त कर रहे हैं। अब प्रदेश व राष्टीय स्तर के नेता ऐसे कार्यकर्ताओं की बात अब भी अनसुनी करेंगे तो जान लीजिये। अभी तो 2019 और 2024 में झटका लगा है। 2029 में भी इसी प्रकार से झटका लगेगा और दिल्ली में बैठे भाजपा के लोग कुछ नहीं कर पायेंगे।

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