राजनीतिक भविष्य अंधकारमय होता देख बेचारे रघुवर दास नागपुर संघ मुख्यालय पहुंच फिर से स्वयंसेवक बनने की कोशिश में लगे, नितिन गडकरी को रिझाने में भी जुटे ताकि फिर से पार्टी में वहीं भाव मिले पर क्या …
झारखण्ड के पूर्व मुख्यमंत्री व ओडिशा के पूर्व राज्यपाल रह चुके रघुवर दास को अपने राजनीतिक भविष्य की चिन्ता सताने लगी है। उन्हें जहां से भी आस लग रही हैं कि वहां जाने से उनके राजनीतिक भविष्य को पर लग सकते हैं। वे दौड़ लगा दे रहे हैं। बेचारे दौड़ते-हांफते नागपुर तक की दौड़ लगा चुके हैं और अपने सोशल साइट के माध्यम से इसकी सूचना भी दे रहे हैं कि वे नागपुर की दौड़ लगाने में सफल हो चुके हैं। लेकिन राजनीतिक पंडितों का मानना है कि रघुवर दास की यह हनुमान कूद उन्हें राजनीति की अनिश्चितताओं में डूबाने के लिए बैचेन दीख रही है।
कभी नरेन्द्र मोदी व अमित शाह की परिक्रमा में ही परम आनन्द की डूबकी लगानेवाले अब नितिन गडकरी के नागपुर आवास जाकर उनकी चौखट पर नाक रगड़ने में लगे हैं। नितिन गडकरी को जाकर बूके दे रहे हैं। उनके पास बैठकर अपने भविष्य का रोना रो रहे हैं। रघुवर को लग रहा है कि अब नागपुर संघ मुख्यालय और नितिन गडकरी ही उनकी आस बंधा सकते हैं।
लेकिन जो रघुवर दास के भविष्य के बारे में जानते हैं, वे साफ कह रहे हैं कि बेचारे रघुवर दास की हालत ओडिशा के राज्यपाल पद से हटने के बाद उस कटी पतंग की तरह हो गई है कि जो पतंग कटने के बाद ऐसी डाल में जाकर उलझ जाती हैं, जहां जाकर उसका भविष्य का कोई अता-पता नहीं होता। मतलब कहा जा सकता है कि रघुवर दास फिल्म कटी पतंग के उस गाने की बोल के प्रतीक बन चुके हैं, जो उन पर इन दिनों फिट बैठ रही हैं। गीत के बोल है – ‘ना कोई उमंग है, ना कोई तरंग है, मेरी जिंदगी है क्या, एक कटी पतंग है…।’
जो लोग रघुवर दास के अतीत को जानते हैं, वे भूले नहीं है कि सत्ता प्राप्ति के बाद रघुवर दास ने कभी भी संघ को तवज्जो नहीं दी और न ही स्वयंसेवकों को सम्मान दिया। जब वे पहली बार झारखण्ड में उप मुख्यमंत्री बने थे, तभी से उन्होंने संघ से दूरी बनाना शुरु किया था और जब वे पूर्ण रुपेण मुख्यमंत्री बनें तो निवारणपुर स्थित राज्य संघ मुख्यालय जाना सदा के लिए बंद कर दिया था।
लोग तो यहां तक बताते हैं कि जब नितिन गडकरी पहली बार रघुवर दास (जब मुख्यमंत्री थे), को लेकर बिना बताये, संघ मुख्यालय निवारणपुर पहुंचे थे। तो वहां उपस्थित संघ मुख्यालय में कार्यरत पदाधिकारी और स्वयंसेवकों ने नितिन गडकरी के समक्ष प्रश्नों की झड़ी लगा दी थी। पूछा था कि नितिन गडकरी जी आपने इन्हें (रघुवर दास को) यहां क्यों लाया? इन्हें तो संघ और स्वयंसेवकों से चिढ़ हैं। लोग वो दिन आजतक भूले नहीं हैं। लोग तो यह भी कहते है कि रघुवर दास न तो नागपुर को जानते थे और न ही निवारणपुर को, वे तो सिर्फ और सिर्फ स्वयं को जानते थे और उस घमंड में चूर रहते थे कि जैसे उन्हें सत्ता में संघ और स्वयंसेवक नहीं, बल्कि उन्होंने खुद अपनी बदौलत सत्ता प्राप्त की हो।
जब 2019 में झारखण्ड में विधानसभा चुनाव हुआ था। तो धुर्वा में संघ से जुड़े पदाधिकारियों और सामान्य स्वयंसेवकों की बैठक बुलाई गई थी, जिसमें तत्कालीन मुख्यमंत्री के रूप में रघुवर दास ने भाग लिया था। इस बैठक में स्वयंसेवकों का इनके प्रति इतना आक्रोश था कि सारे स्वयंसेवकों ने संकल्प लिया कि चुपेचाप चचा साफ के तर्ज पर इस व्यक्ति यानी रघुवर दास को अकल ठिकाने लगा देनी है और लीजिये वहीं हुआ। रघुवर दास तक चुनाव हार गये। पार्टी पूरे प्रदेश में किनारे लग गई, सो अलग।
इधर फिर से स्वयंसेवक बनने की लगी ललक को देख, पुराने स्वयंसेवक हैरान हैं। वे रघुवर दास द्वारा खुद के सोशल साइट पर लगाये गये संघ मुख्यालय और नितिन गडकरी के आवास से संबंधित छायाचित्रों को देख हतप्रभ है। स्वयंसेवकों का कहना है कि रघुवर दास फिर से अपनी राजनीतिक भविष्य को सुदृढ़ करने के लिए पैतरा बदलने की कोशिश की है। अगर यह व्यक्ति फिर से अपने पैतरे में कामयाब हुआ तो उसकी भविष्य तो बर्बाद है ही, पार्टी का भी बंटाधार होना उतना ही तय है।
राजनीतिक पंडितो का कहना है कि आज का फोटो बताता है कि रघुवर दास देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह के नजरों से पूरी तरह उतर चुके हैं। उन्हें इस बात का ऐहसास हो चुका है कि नरेन्द्र मोदी और अमित शाह उन्हें ठिकाने लगाने को कमर कस चुके हैं। इसलिए वे अभी से नई संभावनाओं की तलाश में जुटे हैं। शायद उन्हें लग रहा है कि संघ मुख्यालय पहुंचने पर, संघ के राष्ट्रीय स्तर के पदाधिकारियों और नागपुर निवासी नितिन गडकरी के आशीर्वाद से वे फिर अपने मकसद में कामयाब होंगे।
लेकिन नितिन गडकरी को पता है कि रघुवर दास वर्तमान में झारखण्ड के किसी काम के नहीं और न ही भविष्य में पार्टी को इनसे कुछ फायदा पहुंचनेवाला है। इसलिए इस प्रकार के फोटो को देखकर मजे लीजिये, क्योंकि इनके यह फोटों को भी उतनी लाइक नहीं मिल रही हैं और न ही कमेन्ट मिल रहे हैं, जो बताने के लिए काफी है कि रघुवर दास की स्थिति कितनी हास्यास्पद हो गई है?