वरिष्ठ पत्रकार सुनील तिवारी को रौंदकर विज्ञापन के लिए हेमन्त और उनके कनफूंकवों की गोद में बैठकर इठलाने को व्याकुल हुए कुछ अखबार/चैनल व पोर्टल के मठाधीश पत्रकार
सुनील तिवारी को रेप कांड में राज्य सरकार और उनके इशारे पर फुंदकती झारखण्ड पुलिस द्वारा फंसाने के बाद, इस पूरे मामले में पत्रकारों व संपादकों का धड़ा दो भागों में विभक्त हो गया हैं। एक इसी मौके का लाभ उठाते हुए राज्य के मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन और उनके कनफूंकवों के श्रीचरणों में लोटने को व्याकुल हो गये, वहीं इनमें से कुछ ऐसे भी हैं, जो पूरी तरह न्यूट्रल है, मतलब न तो सुनील तिवारी का खुलकर समर्थन कर रहे हैं और न ही उनका विरोध।
हालांकि सभी जानते है कि चूंकि सुप्रीम कोर्ट में राज्य के मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन का कुछ इसी तरह का मामला चल रहा है, जिसकी तारीख नजदीक है, उसी को लेकर एक सुनियोजित ढंग से सुनील तिवारी को फंसाया गया है। साथ ही उन्हें भी फंसाने की साजिश चल रही हैं, जो किसी न किसी रुप से राज्य सरकार के लिए सरदर्द बनकर जनहित याचिका उच्च न्यायालय या सुप्रीम कोर्ट में डाल चुके हैं या डालने की तैयारी कर रहे हैं।
राजनीतिक पंडितों की मानें तो समय जब खराब आता है, तो ऊंट पर बैठे हुए आदमी को भी कुत्ता काट लेता है, कुछ इसी तरह की हालत राज्य के मुख्यमंत्री व उनके कनफूंकवों का हो गया हैं। 2020 में जिस प्रकार से कोरोना काल में उन्होंने राज्य को हैंडल किया और जनता उनके साथ हो गई, ठीक 2021 में स्थिति बदल गई है।
कनफूंकवों ने उन्हें कहीं का नहीं छोड़ा हैं, जनता की नजरों में वे पूरी तरह से हवा-हवाई हो गये हैं, और कनफूंकवे सीएम हेमन्त सोरेन को ये बताने में लगे हैं, कि यहां सब कुछ ठीक है। हाल ही में कुछ दिन पहले सीएम आवास में ऐसे-ऐसे पत्रकारों/संपादकों को सीएम हेमन्त से मिलवाया गया, जिनकी कलम व बूम में कब के जंग लग चुके हैं, जो सिर्फ विज्ञापन के लिए काम करते हैं।
राजनीतिक पंडितों का मानना है कि उन्हें इस बात को लेकर आश्चर्य हो रहा है कि जिस राज्य की जनता ने बिना अखबार/चैनल को देखें, सीएम हेमन्त सोरेन को सत्ता सौंपी थी, आज वहीं सीएम हेमन्त सोरेन को अखबारों/चैनलों से इतना मोह क्यों हो गया? मोह तो यह होना चाहिए था कि कोई चरित्रवान पत्रकार उनसे अलग न हो जाये, पर यहां तो सब उलटा हो गया।
चालाक लोग सट गये। कोई बोर्ड का अध्यक्ष बन रहा है, कोई विज्ञापन के लिए कुछ भी करने को तैयार है, तो कोई अब भी जीभ लपलपा रहा हैं, पर इनमें से कोई ऐसा भी हैं, न तो उसे विज्ञापन से मतलब है, और न ही कोई किसी प्रकार का लालच। सत्ता मिलने के बाद भी वैसा पत्रकार मिला भी होगा तो वो एक या दो बार, वो भी न्यूज को लेकर।
कुल मिलाकर देखें, तो स्थितियां बदल चुकी है। सत्ता खो चुकी भाजपा के दरवाजे पर सत्ता आने की खुशियां दिखाई दे रही है। झारखण्ड पुलिस जो राजदुलारी बन चुकी है, उसका शौर्य कब का खत्म हो चुका है, लोग उसे गंदी नजरों से देख रहे हैं, इसके लिए जिम्मेवार भी खुद राजदुलारी ही हैं, क्योकिं जैसा चरित्र आप जनता की नजरों के सामने रखेंगे, जनता वैसे ही नजरों से आपको देखेगी।
राजनीतिक पंडितों का ये भी कहना है कि जैसे राज्य के हालात हैं, जिस प्रकार योग्य राजनीतिज्ञों/पत्रकारों/समाज सेवा में लगे लोगों को झूठे केस में फँसाने का काम शुरु किया गया हैं, आनेवाले समय में इसका दुष्परिणाम भी राज्य के महाराजा हेमन्त सोरेन और उनके कनफूंकवे भुगतने को तैयार रहे।
क्योंकि न्यूटन का तीसरा नियम तो यही कहता है कि “क्रिया तथा प्रतिक्रिया बराबर एवं विपरीत दिशा में होती है।” पर इस तीसरे नियम को सीएम हेमन्त और कनफूंकवों को बतलायेगा कौन? जो बतलानेवाले हैं उसे तो कनफूंकवों ने कब का दूर कर दिया है। मानकर चलिए, सता गई, हाथ से, कोई नहीं बचा पायेगा अब, न गिरे हुए संपादक, न गिरे हुए पत्रकार।
इस समाचार में रांची से प्रकाशित होनेवाले चार अखबारों के कटिंग दिये गये हैं, आप ध्यान देंगे तो पता लग जायेगा, कि कौन अखबार न्यूट्रल हैं और किस अखबार का विज्ञापन पूर्व में रुका हुआ था, जिसे ठीक कराने के लिए वो अखबार दिमाग लगा रहा है, मतलब हेमन्त और उनके कनफूंकवों की गोद में बैठने को बेकरार है।