शर्मनाक – पद्मश्री छुटनी महतो को TMH पहुंचाने में सरायकेला प्रशासन ने लगा दिए 22 घंटे, जमशेदपुर प्रशासन ने भी नहीं दिखाई रुचि, टाटा स्टील ने ली छुटनी की सुध
डायन प्रथा के खिलाफ अपने कार्य को लेकर पद्मश्री से सम्मानित छुटनी देवी को सरायकेला से टी एम एच लाने में प्रशासन ने 20-22 घंटे लगा दिए जबकि एक घंटे की भी दूरी नहीं थी। इतना ही नहीं सरकारी एंबुलेंस से जब छुटनी देवी को टी एम एच लाया गया, तब कायदे से यहां जमशेदपुर प्रशासन का कोई प्रतिनिधि मौजूद रहना चाहिए था।
लेकिन अफसोस कि ऐसा कुछ नहीं हुआ और पैसे के अभाव में दाखिले को लेकर शुरुआती दिक्कतें आ गईं। अन्नी अमृता की तरफ से टाटा स्टील के पदाधिकारियों को सूचना दी गई और उन्होंने तुरंत टीएमएच के जीएम को दाखिले का निर्देश दिया। आखिर ये पूरा मामला क्या है, खुद देखिये, जिसे विद्रोही24 ने वरिष्ठ पत्रकार अन्नी अमृता के फेसबुक वॉल से लिया है।
पत्रकार संतोष से सूचना मिलते ही पत्रकारअन्नी अमृता की तरफ से कल दोपहर को ही डीसी सरायकेला अरवा राजकमल को पद्मश्री छुटनी देवी के संबंध में सूचना दे दी गई थी कि उनका चेहरा टेढ़ा हो गया है। संभवतया पैरालाईसिस अटैक था। डीसी के कहने पर बीडीओ और सीओ छुटनी महतो को देखने गए, मगर बगैर डॉक्टर के। अन्नी अमृता की ओर से बीडीओ से फोन पर बात की गई तो उन्होंने कहा कि वे फील्ड से ही छुटनी महतो के गांव बीरबांस चली गईं थी। वहां तय हुआ कि अगले दिन सदर अस्पताल से रेफर कराकर सरकारी अस्पताल से टीएमएच ले जाया जाएगा।
यहां सवाल ये है कि कैसे बीडीओ ने बगैर डॉक्टर के जान लिया कि छुटनी महतो को इमरजेंसी की जरुरत नहीं। यहां दूसरा सवाल यह भी है कि क्या एक पद्मश्री से सम्मानित व्यक्ति वो भी एक आदिवासी/मूलवासी महिला के लिए सरायकेला प्रशासन इतना नहीं कर सकता कि उसे अविलंब सबसे बढ़िया अस्पताल में पहुंचा दे। बीडीओ और सीओ भी तब पहुंचे जब पत्रकारों ने डीसी को छुटनी देवी के संबंध में सूचना दी।
खैर, मीडिया और ट्वीटर में खबर छाने के बाद छुटनी महतो को सरायकेला से जमशेदपुर के टीएमएच पहुंचाने की औपचारिकता पूरी कर दी गई। लेकिन इतना आसान कहां था। टीएमएच में आज आते ही पैसे के अभाव में दाखिले की दिक्कत होने लगी। ये जानकारी मिलते ही टाटा स्टील के पदाधिकारियों को अन्नी अमृता ने सूचना दी। उन लोगों ने बगैर देर किए छुटनी के दाखिले की पहल की और जीएम के निर्देश पर दाखिला हो गया।
यहां सवाल है कि क्या जमशेदपुर प्रशासन पद्मश्री से सम्मानित एक महिला को इतना सम्मान नहीं दे सकता था कि अपना एक प्रतिनिधि टीएमएच में रखता। क्या मीडिया में कल से हाई लाईट हो चुके मामले को लेकर सरायकेला और पूर्वी सिंहभूम के डीसी आपस में संपर्क स्थापित कर बेहतर कोआर्डिनेशन का उदाहरण नहीं पेश कर सकते थे। ये कैसी विडंबना है कि एक पद्मश्री सम्मानित महिला को स्वास्थ्य सेवा समय पर और सम्मान से हासिल करने को लेकर इतनी मशक्कत करनी पड़ी है।
बहरहाल जिस फ्लैक संस्था के लिए छुटनी काम करती है उसके संस्थापक अध्यक्ष प्रेम जी ने टाटा स्टील को धन्यवाद दिया है कि बगैर देर किए उन्होंने छुटनी का दाखिला लिया। उन्होंने पत्रकारों को भी धन्यवाद दिया। जो काम प्रशासन का था। वह पत्रकारों ने किया। प्रशासन का फर्ज था कि वह टीएमएच प्रबंधन को पद्मश्री छुटनी महतो के संबंध में जानकारी देकर दाखिला कराता। मगर काउंटर पर बैठा शख्स क्या जाने कौन आया? उसका काम है पैसे लेकर आगे दाखिला की प्रक्रिया बढ़ाना और जो पैसे न हो तो दाखिला मुश्किल होता है। वही हो रहा था। लेकिन मामला सामने आने पर टाटा स्टील ने संज्ञान लिया और बगैर पैसे लिए पेंडिंग पेमेंट शो करते हुए छुटनी का दाखिला लिया।
सवाल स्वास्थ्य मंत्री और परिवहन मंत्री से
कल ट्वीटर पर छुटनी महतो का मामला सुर्खियों में रहा जिसका मंत्री चंपाई सोरेन ने संज्ञान लिया लेकिन छुटनी को अविलंब टीएमएच में दाखिला कराने की कोई पहल नहीं हुई। स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता ने तो खामोशी ओढ़ ली। जो अफसोसजनक है।