सात दिन बीत गये, CM रघुवर की पुलिस को घटनास्थल तक जाने में छूट रहे पसीने
खूंटी के अड़की गैंग रेप के सात दिन बीतने को आये, पर पुलिस की हिम्मत नहीं कि वह उस स्थल पर पहुंच जाये, जहां दुष्कर्म की घटना घटी थी। राज्य के बड़े-बड़े पुलिस आलाधिकारी प्रतिदिन खूंटी पहुंचते हैं, पर उनकी इतनी हिम्मत नहीं कि वे खूंटी से आगे निकल सकें, जबकि जिन पर दुष्कर्म के मास्टरमाइंड होने का आरोप है, जिनके खिलाफ प्राथमिकी दर्ज हैं, वे आराम से उसी इलाके में सभा को संबोधित कर रहे हैं, सरकार और पुलिस को चुनौती दे रहे हैं।
इधर इतना तो तय है कि नक्सलियों और पत्थलगड़ी में लगे लोगों का समूह इस बात को स्वीकार कर चुका है कि उनके इलाके में दुष्कर्म की घटना घटी हैं, और ये दोनों अपने-अपने तरीके से दोषियों को सजा देने की बात कर रहे हैं, जबकि इस घटना में संलिप्तता का आरोप लगने पर स्वयं को बेकसूर तथा एक दूसरे पर दुष्कर्म का आरोप लगा रहे हैं।
राज्य के पुलिस महानिदेशक खूंटी जाते है, बैठके करते हैं, निर्धारित समय में दोषियों को सजा दिलाने की बात भी कहते हैं, पर घटना स्थल पर उनकी पुलिस कब पहुंचेगी? इसका जवाब उनके पास नहीं है। पुलिस को डर इतना है कि पूछिये मत। वे जानते है कि जैसे ही वे उस इलाके में पहुंचेंगे, ग्रामसभा के सदस्य और गांववाले उन्हें पूर्व की तरह घेर लेंगे तथा बंधक बना लेंगे, फिर उन्हें लेने के देने भी पड़ सकते हैं, इसलिए पुलिस फिलहाल वेट एंड वाच से काम चलाने को सोच रही है। इधर महिला आयोग के सदस्यों का समूह भी घटनास्थल पर जांच के लिए नहीं पहुंचा हैं, सभी को लगता है कि वहां जाने से कहीं अनिष्ट न हो जाये, सवाल यही हैं, जो बताता है कि राज्य में कानून-व्यवस्था का क्या हाल है?
इधर जहां-जहां पत्थलगड़ी हो रही है, उस-उस इलाके में सामान्य आदमी तक को जाने पर रोक लगा दिया है और ये रोक पत्थलगड़ी से जुड़े लोगों ने लगा रखा है। वे केन्द्र व राज्य सरकार के कानूनों तक को नहीं मान रहे। एक पंक्ति में कहे, तो ये समान्नातर सरकार चला रहे हैं, और इसके खिलाफ न तो सत्तापक्ष और न ही विपक्ष ही खुलकर बोल रहा हैं। आश्चर्य तो इस बात की भी है कि इतनी बड़ी घटना घट गई पर राज्य के विपक्षी दलों में से किसी भी बड़े नेता का बयान अब तक नहीं आया है और न ही इन्होंने सरकार से इस संबंध में पीड़िताओं को न्याय दिलाने की बात कही है।
सूत्र बताते है कि चूंकि इस मामले में चर्च से जुड़े एक पादरी की गिरफ्तारी हो चुकी है, और ज्यादातर आदिवासी ईसाइयत को मानने लगे है, ऐसे में उनका जनाधार न खिसक जाये, इसलिए वे चुप्पी साधे हुए है, आश्चर्य तो इस बात की भी है कि एक सामान्य दुष्कर्म को लेकर आसमान उठा लेनेवाला, रांची और मिशनरियों के स्कूल न तो इसके खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं और न ही जुलूस निकाल रहे हैं, इससे साफ पता लगता है कि लोग इसे धर्म से जोड़ कर देख रहे हैं, अगर दुष्कर्म के मामले में रांची का यह रवैया है तो ये दुर्भाग्यपूर्ण ही माना जायेगा।
आश्चर्य इस बात की भी है कि कोचांग दुष्कर्म प्रकरण पर सीबीसीआइ के महासचिव बिशप थियोडोर मास्करेन्हास का बयान भी हास्यास्पद है। उनका कहना है कि फादर पर नौ धाराएं लगा दी गई है, लगता है कुछ लोग उन्हें बाहर आने नहीं देना चाहते, वे यह भी कहते है कि सीबीसीआइ ने अपनी ओर से उस मामले की जांच नहीं करायी है, पर चर्च के दो अधिवक्ता व दो सिस्टर सुपीरियर्स मामले को देख रहे हैं, पर कोचांग दुष्कर्म की शिकार पांच पीड़िताओं के लिए उनके आंखों से न तो आंसू निकले और न ही दर्द दिखाई पड़ा, जो हैरान करनेवाली बात है। पूरे देश में जो धर्म के नाम पर दुष्कर्म के आरोपियों को बचाने का जो खेल चल रहा है, उसकी झलक अब रांची में भी देखने को मिल रहे हैं, जो खतरनाक है।