काहे की सरकार, कौन सी सरकार, जब कोई परिवार आत्महत्या को मजबूर हो जाये
रोहतास का करगहर प्रखण्ड का वैशपुरा गांव। वहां पता चला कि एक ब्राह्मण परिवार की विधवा कंचन कुंवर और उसके बेटे ने आत्महत्या कर ली। पता चला कि न तो उसके पास खेत-बधार था, न ही राशन कार्ड था, न इंदिरा आवास था, न उसका बीपीएल में नाम था। वह अपने परिवार के भरण पोषण के लिए एक स्कूल में 1200 रुपये मासिक मानदेय पर मध्याह्न भोजन बनाया करती थी, और वह मानदेय भी सात महीने से उसे नहीं मिला था।
ऐसे में वह अपनी दो बेटियों का शादी कैसे करती, और परिवार कैसे चलाती, न तो उसे आगे बढ़ाने में समाज आगे आ रहा था और न ही सरकार, ऐसे में उसे लगा कि सबसे बढ़िया है कि मौत को गले लगा लो, सारा झंझट ही समाप्त और उसने अपने बेटे के साथ जहर खाकर अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली।
दूसरी हृदय विदारक घटना हजारीबाग की है, जहां एक कथित सुखी संपन्न परिवार, जो बाद में कई लाख रुपये का कर्जदार हो गया, अपने पूरे परिवार के साथ खुदकुशी कर ली, ये घटना बता रहा है कि हमारा समाज किधर जा रहा हैं और सरकार किसके लिए काम कर रही हैं। कुछ लोग तो इसे नोटबंदी से भी जोड़ रहे हैं, पर सच्चाई यह है कि इस घटना ने समाज और सरकार दोनों पर ऐसा करारा तमाचा जड़ा है कि सरकार और समाज कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं। जिस समाज में ये घटना घटी है, वह समाज आर्थिक रुप से बहुत ही सशक्त समाज माना जाता हैं, और उस समाज में ऐसी घटना घट जाये तो ये तो कालिख लगनेवाली बात हैं, जो समाज अनाप-शनाप कार्यों में लाखों-करोड़ों फूंक देता है, क्या वह अपने समाज के ही एक परिवार की आर्थिक मदद नहीं कर सकता, सबसे बड़ा सवाल यह हैं।
आखिर हम क्यों संकुचित होते जा रहैं हैं? आखिर हम अपने आस-पास में रहनेवालों की खोज-खबर, उनके दुख-दर्द में क्यों नहीं शामिल हो रहे हैं, अगर हम अपने समाज में घुल-मिलकर रह रहे होते, उनके दुख-दर्द को समझ रहे होते तो हम हजारीबाग में एक परिवार के कई सदस्यों की जिंदगी बचा चुके होते, पर यहां तो ऐसा हुआ नहीं, जो शर्मनाक हैं।
हम इसके लिए किसको दोष दें, क्या इसके लिए सरकार से ज्यादा समाज दोषी नहीं? हजारीबाग के व्यवसायी महावीर माहेश्वरी ने किसको मदद नहीं किया, उनकी मदद से कितने लोगों की दाल-रोटी चलती थी, पर जब इनको मदद की बात आई तो सभी ने हाथ खींच लिये, वाह री समाज, वाह री सरकार। 11 साल के यमन और 6 साल की यान्वी ने आत्महत्या नहीं की, उसकी हत्या की गई हैं, क्योंकि ये दोनों बच्चे क्या जाने की आत्महत्या क्या होती हैं, और जिस किसी ने भी हत्या की, जरा सोचिये, उस पर क्या गुजर रही होगी?
महावीर महेश्वरी के परिवार के एक सदस्य इस घटना के लिए नोटबंदी को जिम्मेवार मानते हैं, उनका कहना है कि इनका बहुत सारा पैसा बाजार में फंस गया था, नोटबंदी के बाद से ऐसे कई छोटी-छोटी दुकानें बंद हो गई, जिससे इनका पैसा फिर वापस नहीं आ सका, यहां तक की अपना कारोबार चलाने में भी परेशानी आनी शुरु हुई, फिर से कारोबार शुरु करने के लिए कर्ज लिये और फिर उसी कर्ज में डूबते चले गये, फिर जैसा होता है, समाज में बदनामी की डर से उन्होंने पूरे परिवार के साथ आत्महत्या कर ली।
या (यह भी हो सकता है कि इस पूरी घटना को आत्महत्या का रुप दे दिया गया हो, और इसमें किसी ऐसे व्यक्ति की विशेष भूमिका हो, जो इनके मृत्यु के बाद एक बहुत बड़ा लाभ उठाना चाहता हो, स्थानीय पुलिस को इस ओर भी ध्यान देना चाहिए, नहीं तो फिर इस प्रकरण का बंटाधार हो जायेगा, जांच व्यापक रुप से होना चाहिए, क्योंकि कभी-कभी दिखाई देता हैं कुछ, और निकल जाता हैं कुछ, इसलिए पुलिस को अपनी ओर से हर प्रकार से जांच जारी रखनी चाहिए।)
हमारे विचार से अगर ये आर्थिक मामलों से जुड़ी आत्महत्या की बात है तो इसके लिए सरकार और समाज ही दोषी हैं, जो निरन्तर अपने कर्तव्यों से हटकर, स्वयं की चाटुकारिता में मदमस्त होकर अपने दायित्वों का निर्वहण नहीं कर रहा, जिससे इतनी बड़ी-बड़ी घटनाएं घट जा रही हैं।
आश्चर्य यह भी हैं, कि हम कभी-कभी किसी के बारे में क्या सोच लेते है कि फलां व्यक्ति कितना आर्थिक रुप से सशक्त हैं, समाज में उसका कितना सम्मान हैं, पर उस परिवार के किसी सदस्य द्वारा जब ऐसी परिस्थितियों से समाज को दो-चार होना पड़ता हैं तो पता चलता है कि हमारा समाज आज कितना नीचे गिर चुका हैं, जहां लोग खोखली बुनियाद पर अपनी जमीन टिकाएं हुए हैं।
लोग बता रहे है कि परिवार के छह सदस्यों में दो सबसे बड़े बुजुर्ग पति-पत्नी ने फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। एक बच्चे को धारदार हथियार से मार डाला गया, जबकि एक बच्ची को जहर देकर मार डाला गया, एक महिला की गला दबाकर हत्या कर दी गई और एक व्यक्ति की टेरेस से गिरने से मौत हो गई, यानी जो टेरेस से कूदकर आत्महत्या की, उसका नाम नरेश अग्रवाल है। यानी एक ही परिवार के छह सदस्यों की मौत, वह भी हजारीबाग में, केन्द्रीय मंत्री जयंत सिन्हा के लोकसभा क्षेत्र में।