धिक्कार है, ऐसी सोच पर और ऐसी सकारात्मक पत्रकारिता पर
आजकल मुख्यमंत्री रघुवर दास अपनी हर बातों में सकारात्मक पत्रकारिता की बात करते हैं, उनके आगे-पीछे चलनेवाले भारतीय प्रशासनिक सेवा से जुड़े अधिकारियों का दल तथा उनकी बातों में सिर्फ हां में हां मिलानेवाले पत्रकारों की टीम भी सकारात्मक पत्रकारिता की बात आजकल कुछ ज्यादा ही करने लगे है।
आखिर यह सकारात्मक पत्रकारिता क्या है? मुख्यमंत्री और उनके आगे-पीछे चलनेवाले अधिकारियों और पत्रकारों की माने तो राज्य सरकार और राज्य सरकार की जय-जयकार करना और उनकी खामियों पर जिसके कारण आम जनता को कष्ट उठाना पड़ता है, उन बातों को छुपाना तथा उसके बदले में आर्थिक फायदा तथा समय-समय पर स्वहित में अपनी बात मनवा लेना ही सकारात्मक पत्रकारिता है।
सकारात्मक पत्रकारिता में न्यूटन का तीसरा नियम बखूबी लागू होता है, जैसे न्यूटन का तीसरा नियम कहता है कि क्रिया तथा प्रतिक्रिया बराबर एवं विपरीत दिशा में होती है, ठीक उसी प्रकार सकारात्मक पत्रकारिता में राज्य सरकार और पत्रकारों तथा उससे जुड़े चैनलों और अखबारों को एक-दूसरे से बहुत बड़ा फायदा होता है, पर जनता को हमेशा नुकसान उठाना पड़ता है। आजकल विभिन्न राष्ट्रीय व क्षेत्रीयों चैनलों पर आधे घंटे का चला रहा विकास संबंधी स्लाट जो समाचार के रुप में प्रसारित हो रहा है, यह इसी की कड़ी है।
इतिहास साक्षी है, जिस राज्य में पत्रकारों और पत्रकारिता ने सरकार के आगे घूटने टेके, सरकार और उनके मातहत अधिकारियों की जय-जयकार की, उन पत्रकारों और उनकी पत्रकारिता धूल में मिल गई। अब सोचना पत्रकारों को हैं, पत्रकारिता से जुड़े लोगों को है, कि वे किस प्रकार की पत्रकारिता करना चाहते हैं?
क्या दो साल से सदन का नहीं चलना दुर्भाग्यपूर्ण नहीं हैं, जिस राज्य सरकार के खिलाफ उसके ही विधायक सदन में ही सरकार को घेरते हैं, जिस राज्य का मंत्री सीएम के क्रियाकलापों से असंतुष्ट है, वह सदन में बैठना नहीं चाहता, जहां विपक्ष की बातों को तरजीह नहीं दी जाती हो और उसके बाद भी कोई अखबार या चैनल, सिर्फ अपने फायदे के लिए उक्त सरकार की जी-हूजुरी करें तो क्या इसे सकारात्मक पत्रकारिता कहेंगे या क्या कहेंगे? वह खुद समझ लें।
सकारात्मक मल्लब..सरकारात्मक ।।