अपनी बात

धिक्कार है भाजपाइयों, तुम्हारे पास ईमानदार-चरित्रवान कार्यकर्ताओं की लंबी सूची है, लेकिन जब भी चुनाव आया, दलबदलू, बेईमान, भ्रष्ट, अपनी सेवा में लगनेवाले लोग ही तुम्हे पहले दिखाई दिया

झारखण्ड भाजपा का गजब हाल है। बाबूलाल मरांडी इसलिये खुश है कि कांग्रेस के वे कार्यकर्ता जो मृतप्रायः है, भाजपा का दामन थाम रहे हैं। मतलब साफ है कि भागते भूत की लंगोटी काफी। लेकिन दुखी भी कि झामुमो का एक भी बड़ा नेता या कार्यकर्ता उनको भाव नहीं दे रहा। उधर बेचारे कर्मवीर सिंह इसलिए दुखी है कि उनका परम भक्त तथा उनका परिक्रमा करनेवाला व्यक्ति प्रदीप वर्मा जिसे वे महामंत्री बनाए हुए हैं। कही से भी लोकसभा की टिकट नहीं दिलवा पा रहे हैं, जबकि अभी भी वे चतरा से उसे लड़ाने के लिए एड़ी चोटी एक किये हुए हैं।

उधर भाजपा के बड़े नेताओं ने राज्य के छुटभैये नेताओं के साथ मिलकर प्रदेश की ग्यारहों लोकसभा सीटों के लिए उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है। लेकिन सच्चाई यह भी है कि ये सारे के सारे जीत ही जायेंगे, इस पर शक रांची से ज्यादा दिल्ली में बैठनेवालों की है। इधर कल ही संघ के सभी आनुषांगिक संगठनों की बैठक रांची में हुई और सभी को सारे काम छोड़कर अपने-अपने इलाकों से भाजपा उम्मीदवारों को जीताने का जिम्मा दे दिया गया। लेकिन उस मीटिंग से निकलनेवाले कुछ लोगों ने विद्रोही24 को बताया कि उस मीटिंग का लब्बो-लुआब यह था कि वे भी जीत के प्रति आश्वस्त नहीं हैं।

कमाल की बात है। पिछले दस वर्षों से मोदी के कार्यकाल की दुहाई देनेवालों के पास चाईबासा से एक उम्मीदवार तक नहीं मिला। जो दिन-रात भ्रष्टाचार को लेकर कांग्रेस और मधु कोड़ा को पानी पी-पीकर गरियाते थे। वे मधु कोड़ा के आगे, उनके चरण पकड़कर गीता कोड़ा को भाजपा के टिकट पर लड़ने के लिए तैयार करवाया। तब जाकर भाजपा को जान में जान आई और उनके नेता ने चाईबासा से गीता कोड़ा को टिकट देकर अपना उम्मीदवार बनाया। हालांकि राजनीतिक पंडित तो साफ कहते है कि कांग्रेस के लिए तो यह अच्छा हो गया। महागठबंधन के लिए तो और अच्छा हो गया। इस बार भी वहां से महागठबंधन का ही उम्मीदवार जीतेगा। चाहे भाजपा वहां कितना भी नाक रगड़ लें।

यही हाल पलामू का है। पलामू में हार-थककर भाजपा ने फिर से बीडी राम को ही टिकट दे दिया। जबकि उनके पास उम्मीदवारों की कमी नहीं थी। लेकिन भाजपा ने इस बार फिर से चाल चल दी और अपने पुराने समर्पित कार्यकर्ताओं को ठेंगा दिखाकर बीडी राम को फिर से चुनाव लड़ने का फैसला कर लिया। जबकि राजनीतिक पंडित कहते है कि बीडी राम को लेकर वहां जनता व भाजपा के कार्यकर्ताओं में अच्छी ओपनियन नहीं है, अगर महागठबंधन ने वहां से अपना अच्छा उम्मीदवार दे दिया तो भाजपा को वहां से लेने के देने पड़ सकते हैं।

ठीक इसी के सटे चतरा संसदीय क्षेत्र में पूर्व में सुनील कुमार सिंह सासंद बने थे। लेकिन इस बार इनको टिकट न देकर यहां पर भाजपा के लोग माथापच्ची कर रहे हैं। राजनीतिक पंडित कहते हैं कि जब पलामू में फिर से बीडी राम जिनका हारना इस बार तय हैं, उम्मीदवार बना दिया गया तो सुनील कुमार सिंह ने कौन सा पाप किया था। सूत्र बता रहे हैं कि यहां से झाविमो से भाजपा में आये योगेन्द्र प्रताप चुनाव लड़ने की सोच रहे हैं, लेकिन यहीं से रांची से टिकट नहीं मिल पाने की वजह से कर्मवीर के अतिप्रिय भक्त प्रदीप वर्मा भी चुनाव लड़ने का मन बना रहे हैं। कर्मवीर भी चाहते है कि रांची न सही, प्रदीप वर्मा को चतरा से ही लड़ा दिया जाये। ऐसे में कर्मवीर भारी पड़ते हैं कि कोई और। अभी कुछ कहा नहीं जा सकता।

इधर जमशेदपुर की हालत तो कुछ और बया कर रही है। कल तक जातिवाद के खिलाफ रहनेवाली भाजपा, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तो सिर्फ गरीब को ही अपनी जाति कल तक बता रहे थे। महतो के नाम पर विद्युत वरण महतो को फिर से टिकट थमा दी। सच्चाई यह भी है कि यहां पर भी, महतो के नाम पर टिकट देने के बावजूद विद्युत वरण महतो की स्थिति ठीक नहीं है। आम जनता इनके दस साल के परफार्मेंस से खुश ही नहीं है। लोग बताते है कि जनता से ये आज तक मिले ही नहीं। आज भी जमशेदपुर की कुछ डिमांड रही हैं, जिसको पूरा करने में ये असफल रहे हैं और लोगों को मानना है कि आगे भी असफल ही रहेंगे। ऐसे में इन्हें जीताना घाटे का सौदा होगा।

अगर महागठबंधन ने बढ़िया उम्मीदवार या भाजपा से ही नाखुश किसी व्यक्ति को खड़ा कर दिया तो भाजपा को लेने के देने पड़ सकते हैं। बताया जा रहा है कि भाजपा को जवाब देने के लिए झामुमो पर भारी दबाव भी है। राजनीतिक पंडित तो साफ कहते है कि अगर जाति के आधार पर ही जमशेदपुर से विद्युत वरण महतो को टिकट दे दिया गया तो फिर रामलहर व मोदी की करिश्माई अंदाज को भाजपा क्यों भुना रही है।

राजनीतिक पंडित तो साफ कहते है कि जैसे ही विद्युत वरण महतो का नाम जमशेदपुर सीट से घोषित हुआ। यहां ज्यादातर कार्यकर्ता शिथिल हो गये। उम्मीदवार का स्वागत तक नहीं किया गया। राजनीतिक पंडित की मानें जब जाति को ही आधार बना कर टिकट देना था तो फिर रायशुमारी और सर्वे कराने की जरुरत क्या थी। इसका मतलब भाजपा के स्वघोषित तीसमारखां नेताओं ने भाजपा कार्यकर्ताओं के आंखों में धूल झोंका।

इधर राजनीतिक पंडितों का यह भी कहना है कि विद्युत वरण महतो को यहां से टिकट दिलाने में नीरज सिंह की बड़ी भूमिका रही है। नीरज सिंह कर्मवीर सिंह के वर्तमान में जमशेदपुर में बहुत ही खास आदमी बने हुए हैं। ऐसे भी प्रदेश स्तर के जो भी भाजपा नेता या मठाधीश आते हैं, वे उसके ही होटल में ठहरते हैं। जहां नीरज सिंह उनका विशेष ख्याल रखते हैं। बताया यह भी जा रहा है कि भाजपा के मठाधीशों ने जमशेदपुर पश्चिम विधानसभा सीट से लड़वाने का मौखिक वरदान भी उन्हें दे दिया है।

इधर धनबाद की स्थिति तो और गड्मगड्ड हो गई। पलामू में बुढ़ा चलेगा और धनबाद मे बुढ़ा नहीं चलेगा। कमाल हो गया। पीएन सिंह में कौन सी बुराई है भाई। किसे दोगे ढुलू महतो को जिसके खिलाफ 46 केस हैं। जो अपने चिटाही गांव के लोगों से जीने का अधिकार छीन लिया है। जिसके खिलाफ धरने पर आज भी लोग धनबाद के रणधीर वर्मा चौक पर बैठे हुए हैं। किसे टिकट दोगे, सरोज सिंह जैसे लोगों को जिसका मकसद ही अपनी सेवा करनी है। किसे टिकट दोगे, ऐसे लोगों को जो कहता है कि हम मोदी की कृपा से नहीं, बल्कि अपनी बल-बुद्धि से विधानसभा चुनाव जीता है।

क्या आपके पास भाजपा का कोई समर्पित ईमानदार-देशभक्त कार्यकर्ता नहीं जो मां भारती की सेवा करने के लिए अपना सर्वस्व त्याग दें। जैसा कि मार्क्सवादी कोर्डिनेशन कमेटी के ए के राय ने किया। जो धनबाद से ही तीन-तीन बार सांसद व विधायक रहे पर उनके व्यक्तित्व व कृतित्व पर कोई सवाल नहीं उठा सका। धिक्कार है भाजपाइयों, तुम पर, तुम्हारे पास ऐसे ईमानदार, कर्तव्यनिष्ठ कार्यकर्ताओं की लंबी लिस्ट है। लेकिन जब-जब चुनाव आता हैं तुम्हें दलबदलू, बेईमान, भ्रष्ट, अपना और अपने परिवार की सेवा में लग जानेवाले लोग ही पहले दिखाई देते हैं। हमें तो भाजपा और अन्य दलों में कोई भेद दिखाई ही नहीं देता।