शर्म करो, रांची के पत्रकारों, अपने स्वार्थ के लिए गरीबों का मजाक उड़ाते हो, उन्हें जबर्दस्ती धरती चूमने को कहते हो
जरा देखिये, रांची के पत्रकार कर क्या रहे हैं? वे गरीबों का मजाक उड़ा रहे हैं, जो लोग रांची पहुंच रहे हैं, उन्हें दिशा-निर्देश दे रहे हैं। मुंबई के फिल्म निर्देशकों की तरह असहाय लोगों को पोज देने को कहते हैं, वे कहते हैं कि इधर आइये। जमीन पर बैठ जाइये। धरती को चूमिये। और जैसे ही ये गरीब लोग, इनके कहने में आकर वो सब कुछ करने लगते हैं, तो वे इन सबका विजूयल उतारते हैं, विडियो बनाते हैं, धड़ा-धड़ फोटो खींचने लगते हैं।
अब सवाल उठता है कि समाचार के लिए भी अब ये सब किया और कराया जायेगा? क्या अब समाचार भी क्रियेट किये जायेंगे या बिना क्रियेट समाचारों को जनता के समक्ष ईमानदारी से लाया जायेगा। हमारे पास एक विजुयल है, जो आज का है। रांची एयरपोर्ट का है। उस रांची एयरपोर्ट पर बड़ी संख्या में रांची के तथाकथित पत्रकार मौजूद है।
सभी अपने-अपने ढंग से दिमाग लगा रहे हैं, कैसे समाचार को लोगों के बीच परोसा जाये, इसी पर ज्यादा काम कर रहे हैं। किसी को इन गरीबों के प्रति हमदर्दी नहीं है, ये सब अपना काम निकालने में लगे हैं, कि कैसे अपने समाचार को बेहतर ढंग से बना सकें? और इसी बेहतरी में ये सबसे बड़ा गुनाह कर रहे हैं।
राज्य के मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन, राज्य के मुख्य सचिव सुखदेव सिंह व राज्य के पुलिस महानिदेशक एमवी राव को इस पर संज्ञान लेना चाहिए, क्योंकि किसी को भी अपने स्वार्थ के लिए गरीबों के सम्मान से खेलने का अधिकार नहीं है। हमारे पास जो विजुयल है, उसमें विडियो बना रहा एक पत्रकार कह रहा है, जिसकी आवाज स्पष्ट सुनाई पड़ रही है। वह दो बच्चों के साथ एयरपोर्ट पर उतरी दो महिलाओं को धरती को प्रणाम करने का आदेश देता है, वह बोलता है –
“एक बार झूककर प्रणाम किजियेगा, झूकके। झूकके, झूकके। फोटो खीचलो पहले। फोटो खीचों। चलिये हो गया।” और इस प्रकार दो महिला अपने दो छोटे-छोटे बच्चों को धरती को प्रणाम करने की मुद्रा में रांची एयरपोर्ट पर बैठ जाती हैं और ये पत्रकार, अपने स्वार्थ के लिए उक्त महिला व उसके बच्चों का तमाशा बनाकर रख देते हैं।
यानी एक तरफ सरकार और कई संगठन मिलकर इन गरीबों का सम्मान बढ़ा रहे हैं और ये रांची के पत्रकार उनके सम्मान से खेलने में कोई कोताही नही बरत रहे और अपना काम निकालने के लिए वे सब कर रहे हैं, जिसे पत्रकारिता धर्म इजाजत नहीं देता, लेकिन इन तथाकथित पत्रकारों को कौन समझाये? बेचारी गरीब जनता तो हर हाल में मूर्ख ही बन रही है।
पत्रकारिता का अंतिम कब्र खुद रहा है