अपनी बात

शर्मनाक! भाजपा का एक MLA भानु प्रताप आदिवासी मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन का गट्टा पकड़ने की बात करता है, तो दूसरी ओर इसी पार्टी का MP ढुलू महतो एसपी से तू-तड़ाक में बात करता है

इससे बड़ी शर्मनाक की बात और क्या हो सकती है कि भाजपा का एक विधायक भानु प्रताप शाही झारखण्ड के एक आदिवासी मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन की गट्टा पकड़ने की बात करता है, तो दूसरी ओर इसी पार्टी का एक सांसद ढुलू महतो पुलिस अधीक्षक से तू-तड़ाक में बात करता है। आश्चर्य इस बात की है कि ये दोनों संवैधानिक पदों पर बैठे व्यक्ति का सम्मान नहीं करते और न ही सम्मानित पदों पर बैठे व्यक्ति से कैसे पेश आना चाहिए, इसकी सोच रखते हैं।

एक समय था। भाजपा नेताओं को लोग उनकी भाषा शैली, उनकी मर्यादा, उनकी संस्कारित बोलचाल के लिए जानते थे। कहीं भी भाजपा नेताओं की रैली या सभा या बैठकें होती, तो लोग बरबस चले जाते, उनके कार्यक्रमों में घंटो बिताते और फिर उनकी रैली या सभा या बैठकों के बारे में अपने मित्र-मंडली में चर्चा करते और ठीक दूसरे दिन अखबारों में उनके संभाषणों को बड़े चाव से पढ़ते।

लेकिन आज क्या है? स्थितियां बदली है। भाजपा में काफी परिवर्तन हुए हैं। एक से एक लोग भाजपा में दूसरे दलों से शामिल हुए हैं। जिन्होंने भाजपा का सत्यानाश करने तथा जनता की नजरों में भाजपा को सदा के लिए बर्बाद करने का शायद इन्होंने ठेका ले रखा है। इनके पार्टी में आने का प्रभाव है कि अब इन्हीं से प्रभावित होकर कुछ विशुद्ध भाजपाई विधायक/सांसद भी इसी प्रकार का भाषा बोलने लगे हैं, जो ये लोग बोला करते हैं।

सबसे पहले जरा भवनाथपुर के भाजपा विधायक भानु प्रताप शाही का ये विडियो देखिये। ये विडियो 20 जुलाई का है। जिस दिन भाजपा ने विस्तृत कार्य समिति की बैठक बुलाई थे। जिस सभा में शामिल होने के लिए देश के गृह मंत्री अमित शाह भी पहुंचे थे। जरा देखिये जनाब की क्या भाषा है। विडियो आपके सामने हैं।

ये जनाब बोल रहे हैं कि “और अबर बाद हेमन्त सोरेन जी का गट्टा पकड़ करके उनको कुर्सी से उतारेंगे, उतारेंगे की नहीं उतारेंगे, गट्टा पकड़ करके कुर्सी से उतारेंगे” क्या ये भाषा किसी सभ्य व्यक्ति की हो सकती है? क्या एक आदिवासी मुख्यमंत्री या आदिवासी न भी हो तो उस मुख्यमंत्री के लिए उसका गट्टा पकड़ने की हिमाकत करना सही है? ये मैं आप जनता पर छोड़ता हूं।

दूसरी ओर बोकारो की एक घटना पर बोकारो के पुलिस अधीक्षक पूज्य प्रकाश के साथ भाजपा सांसद ढुलू महतो का तू-तड़ाक करना सही है। क्या एक सांसद की भाषा यही है। क्या पं. दीन दयाल उपाध्याय और डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी के चित्र पर माल्यार्पण करते-करते इन भाजपा सांसदों/विधायकों की भाषा इसी प्रकार की परिष्कृत हुई है।

क्या भाजपा इस प्रकार की भाषा से राज्य की जनता का सहानुभूति प्राप्त कर लेगी। हमें तो नहीं लगता। हाल ही में लोकसभा चुनाव के दौरान जमशेदपुर में भाजपा के झारखण्ड प्रभारी लक्ष्मीकांत वाजपेयी के मुख से भी असंसदीय शब्द निकल गये थे। हमारा नेक सलाह है कि भाजपा को, खासकर केन्द्रस्थ नेताओं को कि वे अपने स्थानीय सांसदों व विधायकों पर खासकर उनकी भाषा पर लगाम लगाये, नहीं तो जो भी सीट अभी आने की बात हैं, उस पर भी ग्रहण लग जायेगा, क्योंकि झारखण्ड की जनता सब कुछ बर्दाश्त कर सकती है। असंसदीय भाषा तो उसे कभी स्वीकार ही नहीं हुई।