अपनी बात

शर्मनाक, 44 लाख सदस्यों वाली झारखण्ड भाजपा सचिवालय घेरने के लिए 15 हजार कार्यकर्ता भी नहीं जुटा पाई, आंदोलन पूरी तरह विफल

झारखण्ड में जिस भाजपा के 44 लाख सामान्य सदस्य और करीब 38 हजार सक्रिय सदस्य हैं। उस भाजपा के सचिवालय घेराव आंदोलन में पन्द्रह हजार कार्यकर्ता भी नहीं पहुंच पाये। तो ये क्या भाजपा प्रदेश अध्यक्ष दीपक प्रकाश के लिए डूब मरनेवाली बात नहीं हैं। जबकि इसी राज्य में झारखण्ड मुक्ति मोर्चा एक क्षेत्रीय राजनैतिक दल है, जो ये दावा भी नहीं करता कि उसके इतने भारी संख्या में सदस्य हैं, फिर भी शिबू सोरेन और हेमन्त सोरेन के एक हुंकार पर लाखों की फौज रांची कैसे आ जाती हैं। इस पर चिन्तन तो कम से कम आज भाजपा के शीर्षस्थ नेताओं को करना ही चाहिए।

कमाल है, भाजपा के नेता पिछले कई दिनों से पूरे राज्य का दौरा कर रहे थे। सचिवालय घेराव के लिए स्पेशल ट्रेन चलवाई। बसें और कई छोटी-मोटी फोर व्हीलर्स का सहारा लिया। भोज-भात का प्रबंध तक करवाया। विश्राम करने के लिए स्पेशल टेंट तक लगवा दिये। तब जाकर ये पन्द्रह हजार में सिमट गये। अब इससे भी ज्यादा कुछ करते क्या, भीड़ लाने के लिए।

राजनीतिक पंडितों की मानें तो चूंकि जिला प्रशासन व पुलिस प्रशासन को पहले से पता चल गया था कि भीड़ पन्द्रह हजार से ज्यादा नहीं हैं, ऐसे में पन्द्रह हजार की भीड़ को काबू में करना और गोलचक्कर पर ही ठीक कर देने में उन्हें कोई खास परेशानी नहीं होगी। इसलिए पुलिस प्रशासन ने अपने सारे संसाधनों से इस पन्द्रह हजार की भाजपाई भीड़ को समेट कर धर दिया।

लेकिन दूसरी तरफ राजनीतिक पंडित ये भी कहते है कि जितनी भाजपा दावा करती है कि उसके पास सामान्य व सक्रिय कार्यकर्ताओं की भीड़ हैं, वो सचमुच में आ जाती हैं, या इनकी संख्या पचास हजार और एक लाख के बीच में होती, तो पुलिस प्रशासन के लिए इतनी बड़ी भीड़ को नियंत्रित कर पाना मुश्किल होता। ऐसे में भाजपा का सचिवालय घेराव एक तरह से सफल हो जाता, क्योंकि फिर भीड़ को नियंत्रित करने के लिए पुलिस या प्रशासन के पास जितने संसाधन होते विफल होते दिखते और फिर यही पुलिस-प्रशासन के लोग बातचीत की मुद्रा में भाजपा के प्रदेशस्तरीय नेताओं के सामने खड़े होते।

पर मैंने कई बार कहा हैं कि भाजपा का प्रदेश कार्यालय मिट्टी की प्रतिमाओं जैसे नेताओं से भर गया हैं, जिसका कोई वजूद नहीं और केन्द्र के कुछ नेता भी इन्हीं मिट्टी की प्रतिमाओं में बेवजह प्राण-प्रतिष्ठा कराने में लगे हैं। इन मिट्टी की प्रतिमाओं में प्राण आ जाये, इसके लिए फूंक भी लगाते हैं। ऐसे में भाजपा के आंदोलन का क्या होगा। वहीं ढांक के तीन पांत। जैसा आज हुआ। बोली थी भाजपा, सचिवालय का घेराव करेंगे और पुलिस गोलचक्कर पर ही इन सबको सोटा से समेट कर रख दी और ये डर के मारे वहीं से पैदल अपने-अपने घरों के लिए निकल पड़े।

मैं तो आज भी दावे से कहता हूं कि भाजपा के सारे बड़े-बड़े नेता यहां तक की झारखण्ड के भाजपा प्रभारी लक्ष्मीकांत वाजपेयी भी अपने हृदय पर हाथ रखकर बोले कि वे जहां गये थे मीटिंग करने, वहां क्या भाजपा कार्यकर्ताओं की उपस्थिति भी संतोषजनक थी, अगर नहीं थी तो फिर आप क्यों नहीं समझने की कोशिश करते कि भाजपा को शून्य से यहां प्रारम्भ करने की जरुरत है, क्योंकि यहां अब ज्यादातर नेता भाजपा व मोदी के नाम पर अपनी जमीं ठीक करने में लगे हैं। भाजपा से इनको कोई लेना-देना नहीं और नहीं कार्यकर्ताओं से।