शरीफ के घर में आग लगे तो गुंडा … सेंके, भारत कोरोना से कराहे तो दैनिक भास्कर, विदेशी अखबारों के संग मजा लेवे…
जी हां, एक लोकोक्ति है, जो भारत में खूब प्रचलित है, शरीफ के घर में आग लगे तो गुंडा … सेंके, ठीक उसी प्रकार मैं देख रहा हूं कि भारत कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर से कराहे, तो दैनिक भास्कर, विदेशी अखबारों के संग मजा लेने को बेकरार हो जाये, यहीं नहीं उन विदेशी अखबारों के प्रमुख वाक्यांशों को अपने स्थान में जगह दे दें, और भारत को पूरे विश्व में शर्मसार करें।
अब सवाल उठता है कि दैनिक भास्कर ने जिन विदेशी अखबारों के हवाले से भारत को शर्मसार करने की कोशिश की, क्या उन अखबारों ने कभी भारत का सम्मान किया है? क्या ये अखबारें बता सकती है कि जो हाल भारत का कोरोना ने इस समय किया है, यही कोरोना जब ब्रिटेन, अमरीका, कनाडा, इटली, ब्राजील यहां तक की चीन आदि देशों में अपना धमाल दिखा रहा था, उस वक्त भी इन अखबारों के वही तेवर थे जो अभी भारत के लिए दिखाई पड़ रहे हैं।
क्या ये सही नहीं है कि भारत ने उस वक्त इन देशों को हर संभव मदद की थी, जिस मदद की बात आज अमरीका के राष्ट्रपति जो बाइडेन भी यह कहकर कर रहे है कि भारत ने उस वक्त हमारी मदद की थी, आज भारत को हमारी जरुरत है, हम भारत की हरसंभव मदद करेंगे। क्या महामारी से कोई भी देश बचा है, या कोई देश यह दावा कर सकता है कि महामारी से वह शत प्रतिशत लड़ लेगा, चाहे वह कितना भी विकसित देश क्यों न हो?
अगर ऐसा संभव था, तो फिर अमरीका, इटली, ब्राजील जैसे देशों में लाखों लोग कैसे मर गये, जबकि ये सारे देश खुद को विकसित देश मानते हैं। क्या दैनिक भास्कर का संपादक या प्रबंधक बता सकता है कि उसके घर में जब एक साथ पचास की संख्या में लोग अचानक पांच दिनों के लिए आ जाये, तो वह उन पचास लोगों के लिए अचानक क्या प्रबंध करेगा, कहां उन्हें शौच करायेगा, कहां उन्हें सुलायेगा? ठीक उसी प्रकार जब अचानक हजारों-लाखों की संख्या में लोग किसी भी महामारी से प्रभावित होंगे तो वहां की सरकार (चाहे वो किसी की भी हो) आम जनता को क्या मदद कर पायेगी?
क्या ये सही नहीं है कि जिन विदेशी अखबारों का हवाला देकर दैनिक भास्कर ने खुशियां जाहिर की, क्या उन विदेशी अखबारों के देश में कोरोना महामारी के समय सब कुछ ठीक था, और जब ठीक नहीं था तो क्या वो अपने देश की ऐसी ही छवि विश्व के देशों में पेश कर रहा था, जैसा कि उसने भारत के साथ किया है?
अरे दैनिक भास्कर के लोगों, तुम तो चीन की सरकारी मीडिया से भी आगे निकल गये, जैसे वे अभी भारत में फैली कोरोना महामारी के कारण उपजी हालत पर खुशियां मना रहे हैं, भारत का मजाक बना रहे हैं, तुम भी वहीं कर रहे हो, यानी चीन की खुशियां में सम्मिलित हो रहे हो, चाहे देश की सरकार इस बात को माने या न माने, जनता की नजरों में तुम भी देश के गद्दार हो।
तुम्हें जब पता चला होगा कि चीन ने भारत के लिए कार्गों विमान सेवा 15 दिनों के लिए रोक दी हैं, तो तुम्हारी छाती को जरुर ठंडक मिली होगी, वह भी यह कहकर कि चलो इससे भारत में और मौते होंगी और हम इन मौतों का व्यापार करेंगे, इनसे शोक सभा अथवा श्रद्धांजलि का विज्ञापन लेंगे, ऑनलाइन विज्ञापन देनेवालों को दस प्रतिशत का छूट देंगे, जैसा कि तुमने अपने अखबारों में विज्ञापन देकर इस बात को जनता के सामने रखा, जिसे देख मानवीय मूल्यों में विश्वास रखनेवाले तुम्हारे उपर थूकते नजर आये, कि तुमने इस आपदा में भी कमाने का अच्छा नुस्खा निकाल लिया, आग लगे तेरी सोच को, देश से बड़ा तुमने विदेशी अखबारों को गिद्धों की तरह नोचने के लिए इस्तेमाल कर दिया।
जबकि सच्चाई है कि इस मानवीय संवेदना को देखते हुए भारत की सहायता के लिए कई देश आगे आ गये। चीन तो हमारा दुश्मन है, चीन तो कोरोना वायरस का जन्मदाता है। चीन ने कब मानवता के लिए खुद को आगे किया, वो तो आदमखोर मुल्क है, इसलिए उसकी बात ही हम नहीं करना चाहते, पर क्या ये सही नहीं कि सउदी अरब इस संकट में भारत को आक्सीजन उपलब्ध कराने के लिए आगे आया, इसके पूर्व भारत ने भी सउदी अरब को काफी संख्या में वैक्सीन उपलब्ध कराये थे।
थाइलैंड से ऑक्सीजन कंटेनर्स की तीसरी खेप परसो तक पहुंच चुकी थी। अमरीकी कंपनी गिलियड ने भारत को 4.5 लाख रेमडेसिविर देने की घोषणा कर दी। ब्रिटेन से 100 वेंटिलेटर्स और 95 ऑक्सीजन कॉन्सन्ट्रेटर्स भारत पहुंच गये। एयर इंडिया का एक विमान न्यूयार्क से 318 ऑक्सीजन कॉन्सन्ट्रेटर्स लेकर रवाना हो चुका है। सिंगापुर से चार क्रायोजेनिक टैंकर समेत 250 ऑक्सीजन कॉन्सन्ट्रेटर्स लाया गया। यूएई ने ऑक्सीजन के सात टैंकर भारत को दिये।
अमरीकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने 135 टॉप सीइओ के साथ बैठक कर भारत को मदद का भरोसा दिलाया है। बहुत छोटा सा देश ताइवान ने भी भारत को मदद करने का आश्वासन दे चुका है। यूरोपीय आयोग भारत को ऑक्सीजन, दवा और उपकरणों की आपूर्ति जल्द करने का भरोसा दिलाया है।
फ्रांस के राष्ट्रपति मैक्रों ने भारत के लिए हिन्दी में मानवीय संवेदनाओं से भरा एक पोस्ट लिखा – “कोरोना से हम मिलकर जीतेंगे” इसका मतलब दैनिक भास्कर समझता है। अरे चीन को छोड़कर कौन ऐसा देश हैं या भारत में दैनिक भास्कर को छोड़कर कौन ऐसा अखबार हैं, जो इस कोरोना महामारी के फैलने के बाद ज्यादा खुश है और इसके लिए केन्द्र सरकार को दोषी ठहरा रहा है।
क्या यह समय केन्द्र सरकार को दोषी ठहराने का है, या कदम से कदम मिलाकर सरकार का सहयोग करते हुए, देश में जो ये आपदा आई है, उससे लड़ना है, क्या दैनिक भास्कर ये नहीं पढ़ा – विपत्काले विस्मय एव कापुरुषलक्षणम्। क्या दैनिक भास्कर ने अपना दीदा देखा है कि उसके यहां क्या होता है? आपने न्यूयार्क टाइम्स से समझौता किया हैं या कुछ और, उससे भारतीयों को क्या फायदा हो रहा हैं, फायदा तो आपको हो रहा हैं, आप भारत और भारतीयों को विश्वस्तर पर नंगा करने का प्रयास कर रहे हैं, जिसकी जितनी भर्त्सना की जाय कम है।
अरे आपके ही यहां काम कर रहे एक-दो पत्रकार झारखण्ड में कोरोना के शिकार हो गये, जाइये उनके परिवार को जाकर आंसू पोछिये, लेकिन आप ये करेंगे कैसे? उससे थोड़ी ही आपका दाल गलेगा, दाल तो गलेगा आपकी केन्द्र सरकार का गिरेबां पकड़ने में, आपको दाल गलेगा भारत और उसकी जनता को पूरे विश्व स्तर पर गाली दिलवाने में, वह भी यह कहकर देखों कि कोरोना फैल रहा था और ये लोग चुनाव करा रहे थे, कुंभ नहा रहे थे, जबकि इसी से मिलती-जुलती घटनाएं कई देशों में हो रही थी, जब कोरोना उत्पात मचा रहा था।
भाई, विधानसभा चुनाव में केवल केन्द्र में सरकार चला रही पार्टियां ही चुनाव लड़ रही थी कि उस चुनाव में देश की अन्य पार्टियां भी भाग ले रही थी, और उसका फायदा आप नहीं उठा रहे थे क्या? आपने क्यों नहीं कहां कि हम इसका फायदा नहीं उठायेंगे, क्योंकि देश कोरोना से कराह रहा है।
देश की जनता को हम कहेंगे कि देश से बड़ा कोई नहीं होता, जो भी अखबार व चैनल देश के साथ गद्दारी करता है, ऐसे चैनलों व अखबारों के खिलाफ मुहिम चलाएं, अपने घरों में ऐसे अखबारों को प्रवेश नहीं करने दें, क्योंकि ये अखबार देश के लिए ही नहीं, बल्कि समाज के लिए भी खतरनाक है।
फिलहाल दैनिक भास्कर को जो करना था कर दिया, आप याद रखे कि देश व राज्य में कोई भी सरकार हो, वह अपने ढंग से जो भी हो सकता है। आपकी बेहतरी के लिए कार्य कर रही हैं, अखबारों के चक्कर में आकर अपना तथा अपने देश की सेहत को न बिगाड़ें। ज्यादा पैनिक न हो, धैर्य रखे, अगर ये आपदा आई है तो जायेगी भी, कई देशों में इसका कहर थमता भी जा रहा है, यहां भी थमेगा, हम जीतेंगे, चाहे दैनिक भास्कर या विदेशी अखबारें कितना भी भारत व भारत के खिलाफ क्यों न गीत गा ले?