धर्म

रांची में श्रीमद्भागवत की अविरल भक्ति धारा को बहा रहे हैं महाराष्ट्र के संत मणीषभाई

रांची के चुटिया अयोध्यापुरी स्थित नवनिर्मित वृंदावनधाम में महाराष्ट्र से आये भागवताचार्य मणीषभाई जी महाराज ने संध्या वेला में कपिल चरित, ध्रुव चरित और प्रह्लाद चरित से भागवत भक्तों का परिचय कराया। इन चरित्रों के द्वारा भक्ति की ऐसी अविरल धारा बही की लोग सुध-बुध खो बैठे। मणीषभाई जी महाराज ने कपिल चरित के माध्यम से जहां भारत के गौरव का भान कराया, वहीं महिलाओं के सम्मान की भी बातें कहीं।

उन्होंने कहा कि संपूर्ण भारत को जो शून्य मिला है, वह शून्य भगवान कपिल की ही देन है। भागवत में इसका सुंदर वर्णन हैं। उन्होंने इस शून्य के माध्यम से अपनी मां देवहूति को बताया कि गणित के जो चार सिद्धांत है – जोड़, घटाव, गुणा, भाग। ये चारों सिद्धांतों में अगर आप शून्य को शून्य से जोड़े, या शून्य को शून्य से घटाएं, या शून्य को शून्य से गुणा करें या शून्य को शून्य से भाग दें, परिणाम शून्य ही आयेगा। ये सिद्धांत बताता है कि आप अपने जीवन में कुछ भी जोड़ ले, या कुछ भी खो दे, या कुछ भी गुणात्मक परिवर्तन कर लें या आपके द्वारा कमाये गये धन या संपत्ति का कोई बंटवारा ही क्यों न कर लें, अंत में आपके पास शून्य ही आयेगा, ऐसे में हरिनाम संकीर्तन ही आपके उद्धार हेतु काम आयेगा, इसलिए देर न करें, भगवान में लीन होने का प्रयास करें।

मणीषभाई जी महाराज ने कहा कि भगवान कपिल ने अपनी मां देवहूति जो अपने बेटे भगवान कपिल को ही अपना गुरु मानकर, ज्ञान पाने की इच्छा जागृत की, तब ऐसे में भगवान कपिल ने अपनी मां की इच्छा पूरी करते हुए ज्ञान का सागर बहाते हुए अपनी मां को सांख्य प्रदान किया। उन्होंने बताया कि जैसे गया में पितरों को पिंड देने के लिए लोग जाते हैं, वैसे ही गुजरात में देवहूति का जहां प्राणांत हुआ, वो जगह का नाम सिद्धपुर है, जहां मातृशक्तियों को मोक्ष मिलता हैं।

उन्होंने कहा की प्रकृति परिवर्तनशील है। बहुत तेजी से युग परिवर्तन हो रहा हैं, आप स्वयं में परिवर्तन लाएं, ईश्वरीय कृपा तेजी से बरसे, इसके उपाय करें, सत्संग में जाये, संतों को खोजे, संत खोजना भी आसान नही हैं, आजकल संत विरले मिलते है। हर को संत मिल जाये कोई जरुरी भी नहीं है, क्योंकि संतों को जानने व समझने के लिए विशेष आंखे चाहिए। संतों में तितिक्षा अर्थात् समर्थ रहने के बावजूद सहन करने की क्षमता जैसे संत एकनाथ और संत तुकाराम में थी,  करुणा जैसे संत जयदेव में था, अजातशत्रु जैसे कबीर थे, और शांता अर्थात् जिसे देखते ही मन शांत हो जाये, जिसे देखते ही देवत्व का बोध हो जाये, ये गुण होने चाहिए।

ये ध्यान रखे कि संत कभी चमत्कार नहीं करते, प्रकृति के साथ खिलवाड़ नहीं करते, जो चमत्कार दिखाते हैं, दरअसल वे जादूगर या मदारी होते हैं, भला संत कब से चमत्कार दिखाने लगे, वे तो सच्ची राह दिखाते हैं। संत अपने भक्तों को असत्य से सत्य की ओर, अंधकार से प्रकाश की ओर और मृत्यु से अमरता की ओर ले जाते हैं। उन्होंने लोगों को बताया कि संसार माया है, माया से दूर रहे।

उन्होंने ध्रुव चरित और प्रह्लाद चरित की व्याख्या करते हुए कहा कि ध्रुव की भक्ति सकाम भक्ति है और प्रह्लाद की भक्ति निष्काम है, इसलिए प्रह्लाद की भक्ति को ध्रुव की भक्ति से भी श्रेष्ठ माना गया है। उन्होंने कहा कि श्रीमद्भागवत में दोनों बालक ध्रुव और प्रह्लाद की उम्र पांच वर्ष हैं। ध्रुव मनुष्य के घर में जन्म ले रहे हैं, पर प्रह्लाद दैत्य के घर में जन्म ले रहे हैं, दोनों बालकों पर नारायण की कृपा है, भक्ति के मार्ग पर चलकर दोनों ने अपना उद्धार कर लिया है, इसलिए सभी को ध्रुव और प्रह्लाद के चरित से सीख लेनी चाहिए तथा भगवान को अपना उद्धारक समझ हरिस्मरण में, भगवान की भक्ति में बिना देर किये लग जाना चाहिए। इसमें ही प्रत्येक जीवात्मा की भलाई है।