चलनी (हिमन्ता) दूसे सूप (हेमन्त) के जेहमे खुदे बहत्तर छेद, हिमन्ता सरकार द्वारा दूध व रसोई गैस महंगा किये जाने से असम की महिलाएं नाराज वहीं शराब सस्ता होने से शराबियों में खुशी की लहर
चलनी (हिमन्ता) दूसे सूप (हेमन्त) के जेहमे खुदे बहत्तर छेद यानी हिमंता बिश्वा सरमा के शासन से असम की जनता खुद त्राहिमाम् कर रही है और वे यहां आकर हेमन्त सोरेन सरकार में खामियां गिनाने में ज्यादा रुचि ले रहे हैं। स्थिति ऐसी है कि उन्होंने यहां रांची में प्रेस कांफ्रेस की शृंखला शुरु कर दी है। वे राज्य सरकार के खिलाफ मानवाधिकार आयोग तक जाने की बात कहते हैं। लेकिन वे ये नहीं कहते कि उनके बारे में कैग क्या कह रहा है। उनकी राज्य की जनता क्या कह रही है। असम के अखबार क्या कह रहे हैं?
आप खुद देखिये, असम से निकलनेवाली अखबार पूर्वांचल प्रहरी की कटिंग हैं। अखबार क्या कह रहा है। दूध के दाम तीन रुपये बढ़े और शराब का दाम तीस प्रतिशत हुआ कम। अखबार कह रहा है कि राज्य में दूध व रसोई गैस सिलेंडर के दाम बढ़ गये हैं। दूध और रसोई गैस के दाम बढ़ जाने से आम गृहणियां और जनता नाराज है। रविवार से दूध की कीमत तीन रुपये प्रति लीटर यानी असम में अब दूध का दाम 67 रुपये प्रति लीटर हो चुका है। जबकि रविवार को विदेशी शराब और बीयर की कीमतों में ब्रांड के हिसाब से 33 फीसदी की गिरावट आई है। अखबार लिखता है कि सरकार ने शराब के दाम में तीस प्रतिशत की कमी लाकर शराबियों के चेहरे पर मुस्कान ला दी है।
दूसरी ओर इसी अखबार ने उधार ली गई धनराशि से ऋण पर ब्याज देना शुभ संकेत नहीं नाम से समाचार छापी है। जिसमें लिखा है कि राज्य सरकार ने अपनी क्षमता से अधिक उधार लिया है। उधार ली गई धनराशि का उपयोग पूंजी निर्माण और विकास के लिए नहीं किया गया है। कैग ने चेतावनी देते हुए कहा है कि उधार लिया गया पैसा बेकार चीजों पर खर्च करना और ऋण पर ब्याज देना शुभ संकेत नहीं हैं।
अखबार ने असम के चाय बागानों में श्रमिकों की मजदूरी कम नाम से समाचार छापकर बताया है कि कैग की रिपोर्ट में कहा गया है कि असम के चाय बागानों में काम करनेवाले श्रमिकों का वेतन कम है और श्रम कानूनों एवं श्रमिक कल्याण प्रावधानों के क्रियान्वयन में कई कमियां है। कैग ने न्यूनतम मजदूरी अधिनियम के अनुसार मजदूरी सुनिश्चित करने में राज्य सरकार के हस्तक्षेप को भी अपर्याप्त बताया है, साथ ही कहा है कि श्रमिकों के जीवन को बेहतर बनाने के प्रयास कोई भी ठोस बदलाव लाने में असफल रहे हैं।