अपनी बात

तो क्या कर्मवीर ने धनबाद में सांसद पीएन सिंह के युग की अंत कर दी, आखिर भाजपा के नये प्रदेश पदाधिकारियों की सूची जारी होने के बाद भाजपा में इतना बवाल क्यों?

भाजपा के प्रदेश और दिल्ली में बैठे मठाधीश कितना भी जोर क्यों न मार लें। सच्चाई यह है कि इस बार भाजपा का लोकसभा चुनाव से जाना भी तय हो गया है। भाजपा कार्यकर्ता मौन रहकर ही मुस्कुराते हुए इस बार जोर का झटका धीरे से देने का मन बना चुके हैं। कई समर्पित भाजपा कार्यकर्ताओं ने विद्रोही24 को बताया कि इस बार बवाल दूसरे किस्म का है। 2019 के विधानसभा चुनाव में नारा था कि चुपेचाप चचा साफ, इस बार का नारा होगा, चुपेचाप भाजपा साफ।

धनबाद से हमारे विश्वसनीय सूत्र ने जानकारी दी है कि कल की जारी सूची से साफ लग रहा है कि भाजपा के प्रदेश संगठन मंत्री ने इस बार धनबाद के सांसद पीएन सिंह के युग की अंत कर दी है। धनबाद से जो चार लोग दिख रहे हैं, उनका सांसद पीएन सिंह से कभी भी संपर्क या संवाद नहीं रहा है और अगर किसी से रहा भी है तो वो न्यूनतम रहा है। ऐसे में यह तय हो गया कि धनबाद से इस बार सांसद पीएन सिंह की दावेदारी खत्म हो जायेगी और यहां फिर एक नारा चलेगा कि राजपूत का टिकट कटने के बाद राजपूत को ही टिकट मिले और इसके लिए कर्मवीर ने दो राजपूतों को पहले से ही यहां फिट कर दिया।

पहला राजपूत विनय सिंह और दूसरा सरोज सिंह है। कहने को तो सरोज सिंह धनबाद से हैं, लेकिन इनका ज्यादा समय रांची में ही गुजरता है, पर पार्टी ने इन्हें धनबाद में दिखाते हुए प्रदेश मंत्री बना दिया है। उसी प्रकार विनय सिंह पिछले चार सालों से कभी धनबाद में नहीं दिखा, न किसी पार्टी के कार्यक्रमों में नजर आया और इस बार पार्टी ने इन्हें धनबाद से दिखाकर प्रदेश प्रवक्ता बना दिया। मतलब दिल्ली में रहनेवाले व्यक्ति को हवाई लैंडिंग करवाकर प्रदेश में प्रतिष्ठापित करवा दिया।

स्थिति ऐसी है कि इन दोनों को कोई भाजपा कार्यकर्ता नहीं मिल रहा है, जिसे लेकर ये धनबाद के मीडिया हाउस में जाकर अपना थोड़ा चेहरा भी चमका सकें। धनबाद से ही गणेश मिश्रा को दिखाते हुए इन्हें प्रदेश मंत्री बना दिया गया, पर ये भी ज्यादातर रांची में ही रहते हैं। इसी प्रकार अमर झा जिन्हें आइटी संयोजक बनाया गया है, इन्हें धनबाद की आम जनता तो दूर, पार्टी का कोई सामान्य कार्यकर्ता या विशेष पदाधिकारी तक नहीं पहचानता। उन्हें धनबाद का बताया गया है, जबकि ये भी दिल्ली से लैंडिंग करवाये गये हैं।

राजनीतिक पंडित तो साफ कहते हैं कि प्रदेश की सूची को देखा जाये तो ऐसे-ऐसे लोगों को महत्व दे दिया गया है, पद दे दिया गया है, जिन्हें अंचल के लोग ही नहीं जानते, पर उन्हें प्रदेश की दावेदारी थमा दी गई। उन्ही में से एक दुमका से मुन्ना मिश्रा, जिन्हें प्रदेश मंत्री तो गिरिडीह से विकास प्रीतम है, जिन्हें प्रदेश उपाध्यक्ष बना दिया गया। कुल मिलाकर राजनीतिक पंडितों का कहना हैं कि राज्य में दस जिलों को तो इन्होंने ऐसे ही छोड़ दिया, तो भला कौन कार्यकर्ता इनके लिए काम करेगा।

ले-देकर भाजपा कार्यकर्ता, मौन रहकर, पार्टी का गड्ढा खोदेंगे और जिन-जिन पदाधिकारियों के मन में अभी लड्डू फूट रहे हैं कि उन्हें पदाधिकारी बना दिया गया, अब तो कर्मवीर की कृपा से सांसद व विधायक बन ही जायेंगे, उनके कर्म कूटने पर ज्यादा ध्यान लगायेंगे। राजनीतिक पंडितों की मानें तो भाजपा में पहली बार इस प्रकार का असंतोष देखा जा रहा हैं। लोकसभा चुनाव के पहले इस प्रकार का असंतोष हेमन्त सोरेन और उनकी पार्टी के लिए टॉनिक का काम करेगा। झामुमो गठबंधन मजबूत स्थिति में दिखेगी।

राजनीतिक पंडितों का यह भी कहना हैं कि झारखण्ड भाजपा की जो कल सूची जारी हुई। उस सूची को देखने से ही पता लग जाता है कि कर्मवीर सिंह ने पार्टी संविधान की धज्जियां उड़ा दी। पहली बात की झारखण्ड संगठनात्मक दृष्टिकोण से किस श्रेणी में आता हैं। इन्हें पता ही नहीं। इन्होंने ग्यारह उपाध्यक्ष और दस मंत्री बना दिये। जबकि सच्चाई यह है कि इतनी संख्या में कभी भी  न तो प्रदेश उपाध्यक्ष बनाये गये और न ही मंत्री।

इसका मतलब है कि पार्टी स्तर पर कितना असंतोष है और इस असंतोष को दबाने के चक्कर में कर्मवीर ने भाजपा का कर्म ही कूट दिया, साथ ही कार्यसमिति सदस्यों की सूची को लटका दिया। मतलब साफ है कि भाजपा ने जो कमेटी बनाई वो आधी-अधूरी है। अगर किसी को इस समाचार में संदेह दिखता है तो वो भाजपा का संविधान देख लें। इसके लिए उसे कही जाने की जरुरत भी नहीं। भाजपा का प्रदेश कार्यालय जहां कर्मवीर सिंह सोते-बैठते हैं, ठीक उसी के नीचे एक भाजपा का वस्तुक्रय भंडार हैं, जहां से आप भाजपा का संविधान खरीदकर पढ़ सकते हैं और अपना माथा ठोक सकते हैं।