किसी ने धूम-धड़ाके, तो किसी ने सादगी, तो किसी ने इस बार होली खेली ही नहीं
आज होली है। होली यानी उमंग–उत्साह, धूम–धड़ाके का पर्व। कही ढोल–नगाड़े बज रहे हैं, कही झाल–करताल और सभी पर एक ही राग, फगुआ गीत–होली गीत। सभी मस्ती में है। घर के रसोई से लेकर बाहर के बातावरण तक मस्ती ही मस्ती है। मस्ती हो भी क्यों न? सालाना पर्व है, मस्ती का पर्व है, ऐसे में हम मातम क्यों मनाएं? क्यों न झूम जाये, क्योंकि सुप्रसिद्ध कवि हरिवंश राय बच्चन ने कहा है कि
जो बीत गई सो बात गई,
माना वह बेहद प्यारा था,
वह डूब गया तो डूब गया,
अम्बर के आनन को देखो,
कितने इसके तारे टूटे,
कितने इसके प्यारे छूटे,
पर बोलो टूटे तारों पर,
कब अम्बर शोक मनाता है,
जो बीत गई, सो बात गई
भाई बात तो सोलहो आने सही है, शायद यहीं कारण है कि देश नाना प्रकार के झंझावातों को सह रहा है, पर भारतवासियों को, इससे कोई मतलब ही नहीं, वे तो होली मनाने में डूबे हैं। वह भी तब जब दो दिन पूर्व ही चीन ने भारत को आंख दिखाई और कह दिया कि सोशल साइट पर तुम कितने भी नखरे दिखा दो, पर तुम्हें हमारे प्रोड्क्टस खरीदने ही पड़ेंगे, पर चीन के इस धमकी का जवाब किसी भारतीय या भारतीय नेताओं के होठों से नहीं निकला, ऐसे भी हमारे देश के खिलाफ चीन जितना भी आग उगले, संयुक्त राष्ट्र संघ में मसूद अजहर को बचाने के लिए वीटो का ही इस्तेमाल क्यों न कर दें, पर भारतीय, चीन के खिलाफ नहीं जाते, पता नहीं क्यों, चीन से डरते है, या चीन के नाम पर कुछ और ही इनके दिमाग में चलती है।
चलिये, होली है, कहां हम आपको देशभक्ति का पाठ पढ़ाने लगे, खूब होली मनाइये, भगवान का नाम लीजिये अथवा मत लीजिये, मस्ती में डूबे रहिये। गांव–गिरांव में शहर की चिल्लाहट वाली होली लगता है, नहीं पहुंची है। यहां आज भी रात को होलिकादहन का कार्यक्रम हुआ और दूसरे दिन ढोल–मंजीरों के साथ होली गीत गाये जा रहे हैं, तथा एक दूसरे को रंग–गुलाल लगाकर होली की बधाई दी जा रही है।
पर इसी गांव में कोई ऐसा भी परिवार है, जहां का एक युवा हाल ही में पुलवामा में अपना जीवन उत्सर्ग कर दिया है, शायद यही कारण है कि वहां होली की वो रौनक दिखाई नहीं पड़ती, इस बार होली के दिन मातम दिखता है, यह मातम सा दृश्य बताता है कि देश के गांवों में आज भी एक दूसरे के प्रति वही भाव हैं, जो पूर्व में था, इसे ही बचाने की जरुरत हैं, अगर ये बच गया तो समझ लो भारत जिंदा हैं, अगर नहीं बचा तो भारत कब का मर गया।
हमें खुशी हो रही है कि रांची शहर के कई इलाकों में एक–दो परिवार ऐसे भी हैं, जो बड़े ही धूम–धड़ाके के साथ होली मनाया करते थे, पर इस बार उन्होंने होली मनाई ही नहीं, घर में बंद रहे, उनके घरों में न तो पुड़ी बनी, न ही मालपुआ और न ही आलू–कटहल की सब्जी। पूछने पर वे बताते है कि उन्होंने पुलवामा घटना के बाद, ये संकल्प लिया था कि इस बार वे होली नहीं मनायेंगे और उन्होंने पूरा कर दिखाया, पुलवामा के शहीदों और उनके परिवार के साथ वे नजर आये।
कई स्थानों पर हमने स्वयं देखा कि रांची में एक समाजसेवी पत्रकार ललित मुर्मू तथा पुष्पगीत के निधन पर भी कई परिवारों ने होली नहीं मनाई तथा कइयों के घर में अगर होली मनी भी तो बहुत ही सादगी से, रंग–गुलाल को लोगों ने हाथ तक नहीं लगाया। अन्य स्थानों पर होली अभी भी अपने तरीके से चल रही है, कही–कहीं बड़े–बड़े साउंड बाक्स लगाकर होली को सेलीब्रेट किया जा रहा है। अश्लील गानों की पूरी सीडी लगा दी गई है, सुना था प्रशासन, इस बार सख्त है, पर हमें उसकी सख्ती कही दिखाई नहीं दी, शायद उन्होंने ने भी मान लिया कि होली है, होली में कुछ भी कर लीजिये, ये सब चलता है, चलिए होली शांति से बीत जाये, हम सब की यही कामना है, होली की बधाई और शुभकामनाएं।