अपनी बात

कभी-कभी भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष व झारखण्ड के मुख्यमंत्री रह चुके रघुवर दास भी अच्छा बोल जाते हैं, जैसा कि इस बार उन्होंने राहुल गांधी के बारे में बोला

कभी-कभी झारखण्ड के पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास भी अच्छा सवाल कर लेते हैं। जैसा कि इस बार उन्होंने कांग्रेस पार्टी के एक बहुत ही नादान, भोले-भाले, सीधे-सादे, कुंआरे, संसद में कनखी मारनेवाले नेता राहुल गांधी से उन्होंने पूछा है। रघुवर दास ने राहुल गांधी पर ट्विट किया है और ऐसे सवाल कर दिये है, जिसका जवाब राहुल गांधी क्या, उनके पदचिह्नों पर चलनेवाले उनके पदानुगामियों के पास भी नहीं होगा।

रघुवर दास ने ट्विट किया है – राहुल जी कहते हैं – जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी। अच्छा है, चलिए हिसाब लगाते हैं। क्या आप ब्राह्मण हैं या अपने दादा की तरह पारसी हैं या अपने ननिहाल की ओर से ईसाई हैं। अब आप बताइए राहुल जी आप किस कैटेगरी में आते हैं? एक बार इनकी संख्या के आंकड़े देख लीजिए।

पिछड़ों के हिमायती बनने का दिखावा करने वाले राहुल जी आपको अपने कथनानुसार प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवारी पर किसी ओबीसी समाज के व्यक्ति के नाम की घोषणा कर देनी चाहिए। वहीं भाजपा ने न केवल पिछड़े समुदाय के व्यक्ति को प्रधानमंत्री बनाया, बल्कि 27 OBC मंत्री भी केंद्र सरकार में बनाए। अपने शासनकाल में कांग्रेस ने कितने पिछड़ों को सम्मान दिया, यह भी बताइए।

ठीक इसी प्रकार का सवाल ब्राह्मणों के खिलाफ अपशब्द बोलनेवाले, उनके खिलाफ आग उगलनेवाले, हर समस्याओं के लिए ब्राह्मणों को जिम्मेवार ठहरानेवाले खुद को पत्रकार व एक्टिविस्ट कहकर संबोधित करनेवाले दिलीप मंडल ने किया है, जरा इनका भी ट्विट भी देख लीजिये – ओबीसी के लिए कौन बेहतरः कांग्रेस और बीजेपी?

  • मनमोहन सिंह की कैबिनेट में 2014 आते-आते सारे ओबीसी मंत्रियों को निकाल दिया गया था। वीरप्पा मोइली एकमात्र ओबीसी कैबिनेट मंत्री रह गए थे।
  • लालू यादव के खिलाफ चारा घोटाले में कोर्ट का पहला फैसला मनमोहन सिंह सरकार में आया। जो वाजपेयी नहीं कर पाए, वह कांग्रेस ने अपने समय में किया।
  • लालू प्रसाद कभी चुनाव न लड़े, इसका बंदोबस्त राहुल गांधी ने किया। कैबिनेट में पारित बिल को संसद में आने नहीं दिया। वह बिल पास होता तो आज लालू संसद में होते।
  • मुलायम सिंह यादव पर आय से अधिक संपत्ति का मुकदमा चला।
  • डीएमके नेताओं को जेल कांग्रेस ने भेजा, जबकि वह सहयोगी पार्टी थी।
  • ओबीसी आरक्षण देनेवाले अर्जुन सिंह को कैबिनेट से बाहर निकाला गया। उनका टिकट काट दिया गया।
  • उनके पद पर आरक्षण विरोधी कपिल सिब्बल को लाया गया।
  • 2011 की जनगणना से जाति का कॉलम प्रणव मुखर्जी और चिदम्बरम ने आखिरी समय में हटवाया।

ओबीसी बहुत मजबूरी में यूपीए से दूर गया था, अभी कांग्रेस की राज्य सरकारें ओबीसी को ऐसा कुछ ऑफर नहीं कर रही हैं कि वह कांग्रेस में लौटे। मतलब दिलीप मंडल के अनुसार कोई भी पिछड़ा या दलित या दिलीप मंडल का समर्थक वह देश को नुकसान पहुंचानेवाला ही क्यों न हो, उसे देश को नुकसान पहुंचाने का मौका मिलना चाहिए और यह मौका राहुल गांधी और कांग्रेसियों को देना चाहिये था, जो उसने नहीं दिया।

अब समझ लीजिये अपने देश में किस तरह के घटिया सोच के पत्रकारों का ये युग चल रहा है। न्यूजक्लिक के समर्थन से अपना कारोबार चलानेवाले पत्रकारों को तो आप देख ही रहे हैं कि वे कैसे चीन के इशारों पर अपना कारोबार चला रहे हैं और जब देश का प्रमुख एजेंसियों ने इन पत्रकारों पर दबिश बनाई तो स्वयं को असहाय बताने लगे और अपने उपर हो रही कार्रवाई को लोकतंत्र पर हमला बता दिया। मतलब गजब है।

आजकल कुछ लोग यह कहकर भी उछल रहे हैं कि जिसकी जितनी भागीदारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी। भाई बात तो सही है। जिनकी जितनी भागीदारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी। लेकिन केवल आप हिस्सेदारी ही लेंगे और देश को मजबूत बनाने के लिए जो और लोग दे रहे हैं, जिनकी संख्या अंगूलियों पर भी गिनने लायक नहीं हैं। मैं बात कर रहा हूं, उस पारसी समाज की, जिसने देश को बहुत कुछ दिया, क्या कोई बता सकता है कि उन्होंने कभी ऐसी घटियास्तर की बात की या उन्होंने जो देश को दिया है, किस जाति के लोगों ने वैसा देश को दिया, जरा छाती पर हाथ धर कर लोग बताये।

जाति की आग से मत खेलो, उस आग में तुम भी नहीं बचोगे। एक ने खेला था। आज उसका नाम लेनेवाला भी कोई नहीं हैं। जो लोग उसके द्वारा दी गई सुविधाओं का आज लाभ ले रहे हैं, उन्हें भी नहीं पता कि उस व्यक्ति का जन्मतिथि या मौत की तिथि कब है और न ही उन्हें याद करते हैं। अंत में गांधी और जिन्ना एक ही समय में थे।

आज गांधी कहां हैं, जिन्ना कहां हैं, तुलनात्मक विश्लेषण कर लीजिये, पता लग जायेगा। इसलिए यह भी याद कर लीजिये, जो नीतीश व लालू और लालू के बेटे जातीय जनगणना पर अभिमान कर रहे हैं, यही जातीय जनगणना उन्हें ही खा जायेगी, बस थोड़ा वक्त का इंतजार करिये। नीतीश को तो यह जातीय जनगणना 90% निगल गई।

उन्हें इसका ऐहसास भी हो रहा होगा, वो जिस जाति से आते हैं, उनकी ही हवा निकल गई है। जिस जाति से वे आते हैं, इस बार की लोकसभा चुनाव में वहीं उनको वोट दे दें तो समझ लेंगे कि जातीय जनगणना के वे महानायक सिद्ध हो गये। रही बात नरेन्द्र मोदी की तो, उन्हें नीचा दिखाने के चक्कर में सभी नंगे होते जा रहे हैं और उन्हें पता भी नहीं चल पा रहा। तो इसे क्या कहा जाये …